प्रिंटर क्या है और कितने प्रकार के होता है?

प्रिंटर क्या है

 प्रिंटर एक इलेक्ट्रोमेकेनिकल उपकरण होता है । इसमें इलेक्ट्रॉनिक सर्किट व मेकेनिकल ऐसेम्बलीस होती है । यह ऐसेम्बलीस , इलेक्ट्रॉनिक सर्किट के द्वारा नियंत्रित की जाती है । इसलिये इस इलेक्ट्रॉनिक सर्किट को कंट्रोल इलेक्ट्रॉनिक्स या प्रिंटर इलेक्ट्रॉनिक्स कहते है ।

 प्रिंटर इलेक्ट्रॉनिक्स निम्न कार्य करता है : 

( 1 ) कमांडस् को डिकोड ( समझना ) करना 

( 2 ) कंट्रोल सिग्नलस् पैदा करना 

( 3 ) प्रिंट मेकेनिक्स को एक्टिव ( प्रेरित ) करना 

जिससे वह कम्प्यूटर से प्राप्त होने वाले डेटा को प्रिंट कर सके ।

 मेकेनिकल ऐसेम्बली में निम्न अवयव होते हैं – 

( 1 ) प्रिंट हेड ऐसेम्बली 

( 2 ) प्रिंट केरिएज मोटर 

( 3 ) रिबन ऐसेम्बली 

( 4 ) पेपर मूवमेंट ऐसेम्बली 

( 5 ) सेन्सर ऐसेम्बलीस् , इत्यादि ।

प्रिंटरस् की  कौन कौन सी विशेषताएँ  है

( 1 ) स्पीड ( गति ) : 

गति यह दर्शाती है कि प्रिंटर कितना तेज कार्य करता है । सामान्यत : प्रिंटर की गति CPS ( केरेक्टर सेकण्ड ) या LPM ( लाईन / मिनिट ) में नापी जाती है ।

( 2 ) क्वालिटी ( उत्तमता ) : 

इससे तात्पर्य प्रिंट हुए अक्षर के आकार – प्रकार से होता है । जैसे ड्राफ्ट , NLQ ( नियर लेटर क्वालिटी ) या LQP ( लेटर क्वालिटी प्रिंटर ) । 

( 3 ) केरेक्टर सेट ( अक्षर समूह ) : 

इससे तात्पर्य होता है । कि कुल कितने अक्षरों का समूह ( जिसमें डेटा केरेक्टर व कंट्रोल केरेक्टरस् शामिल है ) प्रिंटर पहचान सकता है । 

( 4 ) इन्टरफेस ( आदान – प्रदान ) : 

इससे तात्पर्य होता है कि प्रिंटर को किस तरह की इंटरफेसिंग प्रदान की गई है अर्थात् उसे डेटा ( केरेक्टरस् ) सिरिअल या पेरेलल रूप में मिलेंगे । 

( 5 ) बफर साईज : 

इससे तात्पर्य होता है कि कोई प्रिंटर प्रिंट करने से पूर्व कितने डेटा केरेक्टरस् अपनी बफर मेमोरी में रख सकता है । 

( 6 ) प्रिंट मेकेनिज्म ( प्रिंटिग की तकनीक ) : 

इससे तात्पर्य होता है कि कौन सा प्रिंटिग का तरीका प्रिंट करने के लिये उपयोग किया गया है । जैसे – डॉट मेट्रिक्स , इम्पेक्ट डेजी व्हील , इम्पेक्ट गोल्फबाल , इलेक्ट्रो सेन्सीटिव डॉट मैट्रिक्स , बैण्ड , बेल्ट , इंकजेट , लेजर इत्यादि । 

( 7 ) प्रिंट मूड ( प्रिंटिंग का प्रकार ) : 

इससे तात्पर्य यह है कि प्रिंटिग सिरिअल हो रही है या पेरेलल हो रही है । 

( 8 ) प्रिंट साइज : 

यह बताता है कि एक लाइन में कितने केरेक्टरस् ( प्रिंट होने वाले कुल कालमों की संख्या ) होंगे व उनका आकार क्या होगा । 

( 9 ) प्रिंट डायरेक्शन :

 यह बताता है कि प्रिटिंग की दिशा किस तरह की होती है । जैसे यूनिडायरेक्शन ( एक ही दिशा में ) या बायंडायरेक्शनल ( दोनों दिशा में ) या रिवर्स ( उल्टी दिशा में ) इत्यादि । 

प्रिंटर कितने प्रकार के होता है?

प्रिंटरस् को हम सामान्यत : दो तरीकों के आधार पर विभाजित कर सकते हैं । वे इस प्रकार हैं : 

( 1 ) प्रिटिंग सिक्वेन्स के आधार पर : 

( i ) केरेक्टर / सिरिअल प्रिंटर : ऐसे प्रिंटर जो एक बार में एक ही अक्षर प्रिंट करते हो । 

( ii ) लाईन / पेरेलल प्रिंटर : ऐसे प्रिंटर जो एक बार एक लाईन प्रिंट करते है । 

( 2 ) प्रिंटिंग तकनीक के आधार पर : 

( 1 ) इम्पेक्ट प्रिंटर : ये इलेक्ट्रोमेकेनिकल प्रिंटरस् होते हैं , जिनमें या तो हेमर ( हथौड़ा ) या पिन्स होती हैं , जिनके रिवन व पेपर पर स्ट्राइक ( ठोककर ) से टैक्स प्रिंट होता है । 

( ii ) नान इम्पेक्ट प्रिंटर : इनमें पिटिंग के लिये इलेक्ट्रोमेकेनिकल पद्धति का उपयोग न करते हुए ( अर्थात् हेड व रिबन का सीधे संबंध न होते हुए ) विभिन्न अस्पृश्य पद्धतियों जैसे थर्मल , केमिकल , इलेक्ट्रोस्टेटिक , लेजर बीम या इंकजेट का उपयोग करते है । 

 केरेक्टर इम्पेक्ट प्रिंटर क्या है

( i ) DMP ( डॉट मेट्रिक्स प्रिंटर ) : 

इस तरह के प्रिंटर में किसी केरेक्टर को प्रिंट करने के लिये डॉट मैट्रिक्स ( जैसे 5×7 या 7×9 डॉट मैट्रिक्स सिंगल प्रिंट हेड के साथ ) में से कुछ डॉट चुनते है । किसी एक केरेक्टर की प्रिटिंग के लिये एक समय में एक डॉट कॉलम का उपयोग करते है । फिर इसमें

से जरूरी डॉट प्रिंट होने के बाद अगले डॉट कॉलम को और इसी तरह से पूराकेरेक्टर प्रिंट करते है इस प्रिंटर की प्रिटिंग गति 30 से 600 CPS ( केरेक्टर पर सेकण्ड ) के बीच होती है । ये बायडायरेक्शनल ( अर्थात् एक लाईन बांये से दांयी ओर व दूसरी लाईन दांये से बांयी ओर प्रिंट करते है ) प्रिंटरस् होते है । इनका कोई निश्चित केरेक्टर फान्ट ( अर्थात् उपलब्ध केरेक्टर समूह ) नहीं होता है परंतु यह बोल्ड , इटालिक , ग्राफिक व अलग – अलग आकार के अक्षर प्रिंट कर सकते है । 

( ii ) डेज़ी व्हील प्रिंटर या LQP ( लेटर क्वालिटी प्रिंटर ) 

डेज़ी व्हील एक LQP ( लेटर क्वालिटी प्रिंटर ) होता है तथा LQP का उपयोग वहाँ पर किया जाता है जहाँ पर प्रिटिंग की क्वालिटी बहुत ज्यादा जरूरी होती है । यह DMP से बहुत धीमा होता है क्योंकि इसकी गति 10-90 CPS होती है । इनके कुछ निश्चित फान्ट पेटर्न होते है जो प्रिटिंग में उपयोग किये जाते है तथा ये ग्राफिक्स को सपोर्ट नहीं करते है । ये बहुत मँहगे होते है ।

केरेक्टर नान – इम्पेक्ट प्रिंटरस् क्या है

( i ) थर्मल प्रिंटर ( Thermal printer ) क्या है

इनमें एक विशेष हीट सेन्सीटिव ( उष्मा संवेदनशील ) पेपर का उपयोग किया जाता है । प्रिंट हेड में कुछ हीटिंग अवयव होते है तथा केरेक्टर वही मैट्रिक ऑफ डाट्स की मदद से प्रिंट होता है । जब किसी विशेष हीटिंग अवयव को स्वीच ऑन करते है तब पेपर पर उससे संबंधित स्पॉट गरम हो जाता है जिससे वह डार्क ( काला ) हो जाता है । इस प्रकार से पेपर पर कोई डाट्स जल जाता है जिससे केरेक्टर या ग्राफिक्स का निर्माण होता है । कुछ थर्मल प्रिंटर में पेपर तो सामान्य होता है परन्तु रिबन हीट सेन्सीटिव होता है और जब रिबन का कोई स्पॉट गरम किया जाता है तब पेपर के स्पॉट पर इंक की डॉट का फायर ( बारिश ) होता है । 

( ii ) इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रिंटरस् क्या है

( Electrostatic printer )

यह भी प्रिटिंग के लिये डॉट मैट्रिक्स का ही उपयोग करता है । इसमें पेज लगातार घूमता रहता है तथा इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रिंटर की प्रिटिंग पिन्स् इस पेज पर स्माल इलेक्ट्रिक चार्ज छोड़ती है । इसके बाद जब वह पेपर विपरीत चार्जड् टोनर पारटिकल्स ( कणों ) के संपर्क में आता है तो पेपर के चार्जड् पारटिकल्स् इन विपरीत चार्जड् पारटिकल्स को पकड़ लेते है । ( अर्थात् पेपर टोनर को उस स्पॉट पर चुनता है जहाँ पर प्रिंटिंग पिन ने उसे चार्ज किया था । ) इसके बाद पेपर को फ्यूजिंग प्रोसेस ( गलाने की प्रक्रिया ) से गुजारा जाता है जिससे टोनर , पेपर पर मेल्ट ( पिघलना ) हो जाता है व इस प्रकार केरेक्टर बनता है । 

( iii ) इंकजेट प्रिंटर ( Ink jet printer ) क्या है

ये प्रिंटर भी डॉट मैट्रिक्स का ही उपयोग करते है किन्तु साथ ही इन दो में से कोई एक विधि का उपयोग जरूर करते है : 

( 1 ) स्टेडी स्ट्रीम इंकजेट या 

( 2 ) ड्राप – आन – डिमांड इंकजेट 

इस विधि में प्रिंट हेड के एक या अधिक नोजल्स् ( छेद ) छोटे छोटे से इंक ड्राप्स ( बूंदे ) का एक लगातार फव्वारा छोड़ते हैं । इस इंक में बहुत अधिक आयरन के अवयव होते है जोकि मैग्नेटिक फील्ड ( चुम्बकीय क्षेत्र ) अर्थात् डिफ्लेक्टिंग प्लेटस् से प्रभावित होते है । ये प्लेटस् इंक की बूंदों को पेपर पर उचित दिशा देने के लिये उन्हें डिफ्लेक्ट ( इधर – उधर ) करती है , जिससे केरेक्टर बनता है । 

इस विधि में बहुत अधिक नोजल्स् उपयोग किये जाते हैं तथा इंक ड्राप्स् तब छोड़ी जाती है जब जरूरत होती है । इंक जेट प्रिंटर की प्रिटिंग गति 40 से 300 CPS के बीच होती है ।

( iv ) लेजर प्रिंटर ( Lase printer ) क्या है

 यह भी डॉट मैट्रिक्स का उपयोग करता है किन्तु इसमें हादस इतने अधिक पास होते है कि वह एक ही अक्षर दिखाई देता है । – इसकी प्रिटिंग इलेक्ट्रोस्टेटिक या आप्टिकल विधि पर आधारित होती है व इसमें लेजर बीम और इलेक्ट्रोग्राफिक तकनीक का संयुक्त उपयोग किया जाता है । यह बिलकुल जेराक्स ( फोटोकॉपी ) मशीन के समान होता है । ओटोसेंसिटिव ड्रम पर लेजर के द्वारा इमेज ( चित्र ) बनायी जाती है । इस प्रक्रिया को करने के लिये लेजर को ऑन व ऑफ करना होता है , जब यह ड्रम पर आगे व पीछे जाती है । इस इमेज को इंक देने के लिये टोनर के ड्रम की इमेज पर एप्लाय ( ले जाया जाता है ) किया जाता है । फिर यह इमेज इलेक्ट्रोस्टेटिकली ड्रम से पेपर पर स्थानांतरित हो जाती है । साथ साथ हीटिंग की प्रक्रिया भी चलती रहती है जिससे कि इंक्ड इमेज को पेपर पर फ्यूज ( पिघलने ) किया जाता है । इसकी प्रिटिंग गति लगभग 20,000 लाइन प्रति मिनट है । 

 लाईन इम्पेक्ट प्रिंटर (line impact printer)

( 1 ) ड्रम प्रिंटर ( Drum printer ) क्या है

इसमें एक ठोस सिलेंडर आकार का ड्रम होता है जिसमें उसकी सतह पर उठे हुए अक्षर बैंड ( पट्टों ) के रूप में होते है । बैंड की संख्या प्रिटिंग पोजिशन ( कितने क्षेत्र में प्रिटिंग करना है ) पर निर्भर करती है तथा प्रत्येक बैंड में सभी अक्षर होते है । ड्रम के प्रत्येक बैंड के लिये विपरीत दिशा में स्थित एक हेमर ( हथौड़ा ) होता है जोकि बैंड के किसी स्थान विशेष पर केरेक्टर की प्रिटिंग तय करता है । ड्रम एक निश्चित गति से घूमता है तथा हेमर इंक्ड रिबन के साथ पेपर पर स्ट्राईक ( टकराना ) करता है , जब ड्रम का उचित अक्षर  पेपर के सामने से निकलता है तो ड्रम के प्रत्येक घुमाव पूर्ण होने पर एक लाईन प्रिंट होती है । ड्रम प्रिंटर की गति 200 से 2000 LPM ( लाईन पर मिनट ) होती है ।  

( ii ) चेन प्रिंटर ( Chain printer)  क्या है

इस प्रिंटर में एक चेन होती है जिसमें वे सभी केरेक्टरस् होते . हैं , जो प्रिंटिंग के लिये आवश्यक हैं । इस चेन को प्रिंट चेन कहते है जो बहुत तीव्र गति से घूमती है । चेन की प्रत्येक लिंक ( कड़ी ) में एक अक्षर होता है । प्रत्येक प्रिंट पोजिशन ( प्रिंट क्षेत्र ) पर मैग्नेट से चलने वाला हेमर होता है तथा जितने भी केरेक्टरस् प्रिंट किये जाते हैं वे प्रोसेसर ( Chip ) की मदद से प्राप्त करता है , जब उचित अक्षर प्रिंट पोजिशन स्ट्राइक ( टकराना ) करता है । इस प्रकार से एक बार में ( एक चक्र में ) एक लाइन प्रिंट होती है । यह बहुत आवाज करता है तथा इसकी गति 400 से 2400 LPM ( लाइन पर मिनट ) होती है ।

( iii ) बैंड प्रिंटर  (Band printer)  क्या है : 

यह बिलकुल चेन प्रिंटर की तरह ही होता है सिर्फ अंतर इतना होता है कि इसमें चेन की जगह में स्टील का एक बैंड होता है जिस पर सभी अक्षरों का समूह उठे अक्षरों के रूप में होता है । केरेक्टरस् की प्रिटिंग के लिये हेमर का भी उपयोग ठीक उसी तरह होता है । इसकी गति 300 से 3000 LPM ( लाइन पर मिनट ) होती है ।

हमें उम्मीद है कि आपको मेरा article जरूर पसंद आया होगा!प्रिंटर क्या है और कितने प्रकार के होता है?  हमे कोशिश करता हूं कि रीडर को इस विषय के बारे में पूरी जानकारी मिल सके ताकि वह दूसरी साइड और इंटरनेट के दूसरे article पर जाने की कोशिश ही ना पड़े। एक ही जगह पूरी जानकारी मिल सके।

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