कोशिका किसे कहते हैं संरचना, प्रकार ,भाग और खोज | What is cell structure, types, parts and search in hindi

 कोशिका किसे कहते हैं 

जीव विज्ञान की वह शाखा , जिसमें कोशिका की संरचना एवं उसके कार्यों का अध्ययन किया जाता है , कोशिका विज्ञान ( Cytology ) कहलाती है । 

संसार के समस्त जीव छोटी – छोटी कोशिकाओं से मिलकर बने हैं । यह जीवधारियों की रचनात्मक एवं कार्यात्मक इकाई है । यह अर्द्धपारगम्य झिल्ली ( Semi permeable membrane ) से ढँकी रहती है और इसमें स्वतः जनन की क्षमता होती है । 

जीवधारियों में कोशिकाओं की संख्या 

• एक कोशिकीय जीवधारी एक ही कोशिका से बने होते हैं , लेकिन जटिल जीवधारियों में कोशिकाओं की संख्या समय – समय पर बदलती रहती है । 

• कोशिकाओं की संख्या विभिन्न जीवों में भिन्न – भिन्न होती है 

 • हाथी के शरीर में कोशिकाओं की संख्या चूहे की अपेक्षा बहुत – बहुत अधिक होती है । ये कोशिकाएँ इतनी सूक्ष्य होती हैं कि इन्हें आँखों से देखने के बजाय सूक्ष्मदर्शी से देखा जाता है । 

•संसार की सबसे बड़ी कोशिका शुतुरमुर्ग का अण्डा ( 170mm x 135mm ) है । 

• मानव शरीर की सबसे लम्बी कोशिका तंत्रिका कोशिका ( Neuron ) होती है

कोशिका सिद्धांत के प्रमुख बिंदु कौन कौन से हैं

कोशिकाओं की संख्या के आधार पर जीवधारियों ( जंतुओं ) का वर्गीकरण ( Classification ) 

जीव मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं 

1. एककोशिकीय ( Unicellular ) :-पोटोजोआ संघ के सभी प्राणो एककोशिकीय होते हैं , जैसे – अमीबा आदि ।

 2. बहुकोशिकीय ( Multicellular ) :- एक कोशिकीय जन्तु के अतिरिक्त सभी जन्तु बहुकोशिकीय होते हैं , जैसे मेड़क , बिल्ली OL आदि । 

श्वान ( प्राणिशास्त्री ) एवं श्लाइडेन ( वनस्पतिशास्त्री ) द्वारा कोशिका सिद्धांत ( cell theory ) निम्न प्रकार से दिया गया ( i ) सभी प्राणियों का शरीर कोशिकाओं का समूह है । 

( ii ) यह जैविक क्रियाओं या मेटाबोलिक क्रियाओं की इकाई को प्रदर्शित करती है । 

( ii ) कोशिकाएँ आनुवांशिक इकाई ( Hereditary unit ) हैं तथा इनमें आनुवांशिक गुण भी उपस्थित रहते हैं । 

( iv ) नवीन कोशिकाएँ पूर्ववर्ती कोशिकाओं से ही बन सकती हैं । 

( v ) किसी भी जीव में होने वाली सभी क्रियाएँ उसकी घटक कोशिकाओं में होने वाली विभिन्न जैव क्रियाओं के कारण ही होती है । 

कोशिका का इतिहास

राबर्ट हुक ने 1665 ई ० में कॉर्क को काटकर सूक्ष्मदर्शी ( Micro scope ) से इसमें अनेक chamber देखा जिसे उसने कोशिका कहा । Quarcus subber ( Oak ) नामक वृक्ष से ‘ कॉर्क ‘ प्राप्त किया जाता रॉबर्ट हुक का अध्ययन निर्जीव कोशिका पर था । 

1676 ई ० में सर्वप्रथम एंटनी वॉन ल्यूवेनहॉक द्वारा सजीव कोशिका का अध्ययन किया गया ।  ल्यूवेनहॉक को father of Bacteriology कहा जाता संसार की सबसे छोटी कोशिका माइकोप्लाज्मा गैलेप्सिटिकम ( माप -0.1 माइक्रोमीटर ) नामक जीवाणु है । 

दो जर्मन वैज्ञानिक श्वान ( 1838 ) एवं श्लाइडेन ( 1839 ) ने कोशिका सिद्धांत ( cell theory ) प्रस्तुत किया । 

विज्ञान ” पादप कोशिकाओं की आकृति एवं आकार ( Shape and Size of Plant Cells )

• अधिकतर कोशिकाओं का व्यास 0.1 Micron ( 1μ  = 1 / 100mm ) तथा 1mm होता है । 

• कोशिका – अंगक तथा कोशिकाद्रव्य के घटक बहुत छोटे होने के कारण इन्हें मिलीमाइक्रोन ( mp ) , नैनोमाइक्रोन ( nu ) या ऐंग्स्ट्रम ( Angstrom , A ) में मापा जाता है । 

• 0.1μ  से छोटी वस्तुओं को मनुष्य द्वारा नहीं देखा जा सकता 

• अतः इन्हें देखने के लिए इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी ( Electron Micro scope ) का प्रयोग किया जा सकता 1 

आकृति ( Structure ) 

• कोशिकाओं की आकृतियाँ लम्बी , गोलाकार , चपटी , आयताकार , बहुभुजी आदि सभी प्रकार की होती हैं । 

• साधारणत : इनकी लंबाई , चौड़ाई और मोटाई 10μ-200μ के बीच होती है । ( 1μ = 1/10⁶ मीटर ) 

आकार ( Size ) 

• कोशिका का आकार 1μ से लेकर 1.5 मीटर तक होता है । 

• जीवाणु ( Bacteria ) = 0.2μ से 20μ  तक 

• मनुष्य का अंडा ( Human Egg ) = 200μ  व्यास 

• कपास के तन्तु = 55.6cm ( लंबाई ) 

• तंत्रिका कोशिकाएँ ( Nerve Cells ) = 1-1.5 मीटर लंबे 

• प्लूरोनिमोनिया = 0.25μ  

 कोशिका कितने प्रकार की होती है

 रचना के आधार पर कोशिकाएँ दो प्रकार की होती हैं 

1. प्रोकैरियोटिक कोशिका ( Procaryotic Cells ) 

 इसका शाब्दिक अर्थ है , Pro = प्राचीन , Karyon कोशिकाओं के क्रिस्टॉन प्रोटीन नहीं होती जिसके कारण केंद्रक , इन क्रोमैटिन नहीं बन पाती । 0 ● 0 9 सामान्य 

• केवल DNA का सूत्र अन्य कोई दूसरा आवरण इसे घेरे नहीं रहता । 

• अतः केंद्रक नाम का कोई विकसित कोशिकांग इसमें नहीं होता ।

•  जीवाणुओं ( Bacteria ) व नील – हरित शैवालों ( blue – gree algae ) में ऐसी ही कोशिकाएँ मिलती हैं ।

 2.यूकैरियोटिक कोशिका ( Eucaryotic Cell ) 

• इसका शाब्दिक अर्थ है- Eu = वास्तविक , Karyon = केन्द्रक 

• इन कोशिकाओं में दोहरी झिल्ली के आवरण , केन्द्रक आवरण ( Nuclear envelope ) से घिरा सुस्पष्ट केंद्रक पाया जाता है , जिसमें DNA व हिस्टोन प्रोटीन के संयुक्त होने से बनी क्रोमैटिन तथा इसके अलावा केंद्रक ( Nucleus ) होते हैं । 

कोशिका की संरचना ( Structure of Cell ) 

जंतुओं में जंतु कोशिका तथा पौधों में पायी जाने वाली कोशिका पादप कोशिका ( Plant Cell ) कहलाती है । ‘ नॉल ( Knoll ) एवं रस्का ( Ruska ) ‘ नामक वैज्ञानिकों ने वस्तु को 1 लाख गुना बड़ा करके दिखाने वाली इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप की खोज की । कोशिकाओं की संरचना का विस्तृत अध्ययन इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप द्वारा ही किया जाता है । इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप से पादप एवं जन्तु कोशिका की निम्न तस्वीरें प्राप्त होती हैं

जीव द्रव ( Protoplasm ) 

 हक्सले ( Huxley ) के अनुसार जीवद्रव्य जीवन का भौतिक आधार ( Physical Basis of Life ) है । सन् 1839 में पुरकिंजे ने सर्वप्रथम ‘ प्रोटोप्लाज्म ‘ ( Protoplasm ) शब्द का प्रयोग किया है ।

• रासायनिक दृष्टि से जीवद्रव कार्बनिक एवं अकार्बनिक पदार्थों का एक जटिल मिश्रण है ।  

• जीवद्रव में जल सबसे अधिक मात्रा में उपस्थित रहता है 

• जलीय पौधों में 95 प्रतिशत तक जल रहता है । बीज तथा स्पोर में जल 10-15 % तक होता है । जीवद्रव्य का लगभग 80 % भाग जल होता है । 

• कार्बोहाइड्रेट जीवद्रव का आवश्यक भाग है ।  

• कोशिका द्रव केन्द्रक एवं कोशिका झिल्ली के बीच का जीव – द्रव होता , जबकि केंद्रक द्रव केंद्र के अंदर का जीवद्रव होता है । 

जीवद्रव को दो भागों में बाँटा गया है –

1 . कोशिकाद्रव ( Cytoplasm )

2. केन्द्रक द्रव ( Nucleoplasml ) 

कोशिकाभिति ( Cell wall ) 

• कोशिकाभिति केवल पादप कोशिकाओं ( plant cell ) में पायी जाती है । 

• यह , जन्तु कोशिका में अनुपस्थित रहती है । 

• यह पादप कोशिका की सबसे बाहरी परत है , इसका निर्माण सेल्युलोज नामक पदार्थ से होता है । 

• यह निर्जीव ( non – living ) रचना है , यह काफी दृढ़ होती है । 

• कोशिका – भित्ति के निम्न प्रमुख कार्य है 

( i ) यह कोशिका को निश्चित आकृति प्रदान करती है । 

( ii ) यह कोशिकाओं को सुरक्षा देती है । 

प्लाज्मा झिल्ली ( Plasma Membrane ) 

•  प्लाज्मा झिल्ली पादप कोशिका ( Plant cell ) एवं जंतु कोशिका ( Animal cell ) दोनों में पायी जाती है । 

• पादप कोशिका में कोशिका भित्ति के नीचे तथा जंतु कोशिका में सबसे बाहरी भाग है ।

• यह एक सजीव झिल्ली है , इसकी मोटाई 75Å है । यह अर्द्धपारगम्य झिल्ली ( serni permeable membrane ) है ।

•  इसका निर्माण मुख्यतः प्रोटीन एवं फॉस्फोलिपिड से होता है , किन्तु कुछ मात्रा में कार्बोहाइड्रेड भी उपस्थित होता है । 

• प्लान्मा झिल्ली के निर्माण संबंधी अनेक मत दिए गए हैं । किन्तु 1972 ई ० में ‘ सिंगर एवं निकाल्सन ने fluid mosaic model प्रतिपादित किया , जो कि सर्वाधिक मान्य है ।

• प्लाज्मा झिल्ली कोशिका को निश्चित आकार प्रदान करती है 

•  प्लाज्मा झिल्ली कोशिकांगों को सुरक्षा प्रदान करती है । 

• प्लाज्मा झिल्ली के द्वारा चयनात्मक पदार्थों का परिवहन होता है । 

माइटोकॉण्डिया ( Mitochondria )

• माइटोकॉण्ड्रिया की खोज सर्वप्रथम कोलिकर नामक वैज्ञानिक में 1880 ई ० में किया । उन्होंने इसे कीटों के मांस – पेशियों में देखा था । 

• इसकी औसत लंबाई 3.5mμ ( milli micron ) तथा व्यास 0.2 से 2 mμ तक होता है । यह कोशिका द्रव्य में पाई जाने वाली गोलाकार , सूत्राकार या छड़ जैसी रचना है । 

● यह पादप कोशिका एवं जन्तु कोशिका दोनों में पायी जाती है , प्रोकैरियोट्स में अनुपस्थित होती है ।

•  इसकी संख्या 50 से 50,000 तक होती है ( chaos chaos में 50,000 ) ।

•  Mitochondria ; Power House of the Cell कहते हैं 

• माइटोकॉण्डिया कोशिकाद्रव्य में पाया जाने वाला गोलाकार या सूत्राकार रचना है । 

• इसमें बहुत से श्वसनीय एन्जाइम हैं , जिनकी सहायता से इलेक्ट्रॉन के ट्रान्सफर के द्वारा ATP बनते हैं , जिनमें ऊर्जा रासायनिक ऊर्जा के रूप में संचित रहती है । 

• ‘ यह ऑक्सी- श्वसन से भी सम्बन्धित होता है तथा एडीनोसिन ट्राइफॉस्फेट ( ATP ) के अणुओं के रूप में ऊर्जा का उत्पादन करता है ।

• अत : ऊर्जा उत्पन्न करने के कारण इसे ऊर्जा का बिजलीघर अथवा कोशिका का ऊर्जाघर ( Power House of the Cell ) कहा जाता है ।

  लवक ( Plastid ) 

अधिकांश पादप कोशिकाओं में एक प्रकार की रचना पाई जाती हैं , जिसे लवक ( Plastid ) कहते हैं । 

यह चपटी या वृत्ताकार हो सकती है । लवक मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं- 

1. अवर्णीलवक ( Leucoplast ) , 

2. वर्णीलवक ( Chromoplast ) 

3. हरितलवक ( Chloroplast ) 

1 .अवर्णीलवक ( Leucoplast ) – 

 ये रंगहीन तथा अनियमित आकार के होते हैं । आन्तरिक बाहरी झिल्ली झिल्ली ( माइटोकॉण्डिया की रचना ) इसमें कोई वर्णक नहीं होता है । ये पौधों की जड़ों में एवं भूमिगत तनों में पाये जाते हैं । इनमें खाद्य पदार्थ संग्रहित रहते हैं । ल्यूकोप्लास्ट तीन प्रकार के होते हैं 

( a ) एमाइलोप्लास्ट ( Amyloplast ) – यह मण्ड ( starch ) को संचित करता है । 

( b ) एलोइयोप्लास्ट ( Elasioplast ) – यह बीज में पाया जाता है तथा यह वसा को संचित करता है । है 

( c ) प्रोटीनोप्लास्ड ( Proteinoplast ) – यह बीज में पाया जाता तथा प्रोटीन को संचित करता है ।

2. वर्णीलवक ( Chromoplast )

• इसमें रंगीन वर्णक द्रव्य होता है । ये नीले , लाल एवं नारंगी रंगों के लवक है । 

• इन वर्णकों के आपसी मिश्रण से क्रोमोप्लास्ट और भी रंग बनाते हैं । ये पुष्प के दलों तथा फलों के छिलकों में अधिक मात्रा में मिलते हैं । ।

• लाल नारंगी रंग के वर्णक कैरोटीन , पीले रंग के वर्णक जैथोफिल आदि में होते हैं

• टमाटर में लाइकोपिन तथा गाजर में कैरोटीन पाया जाता है  • चुकन्दर में बिठानिन पाया जाता है । 

3. हरितलवक ( Chloroplast ) 

  हरितलवक हरे रंग के लवक हैं , जिनमें हरे रंग का पर्णहरित या क्लोरोफिल ( Chlorophy // ) उपस्थित होता है , जिसके कारण पौधे के कुछ भाग अर्थात् पत्तियाँ हरी दिखाई देती हैं । 

क्लोरोफिल के द्वारा ही प्रकाश संश्लेषण की क्रिया होती है ।  क्लोरोफिल के केन्द्र में मैग्नीशियम का एक परमाणु होता है । क्लोरोफिल प्रकाश में बैंगनी , नीला तथा लाल रंग को ग्रहण करता है । अतः हरितलवक प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा भोजन निर्माण करता है , इसलिए इसे पादप कोशिका का रसोईघर ( Kitchen of cell ) भी कहते हैं । यह दोहरी झिल्ली की बनी रचना होती है । इसमें द्रव्य होता है , जिसे stroma कहते हैं । स्ट्रोमा में sac – like रचना पाई जाती है , जिसे थैलेक्वॉयड कहा जाता है । 

थैलेक्वॉयड के समूह को ग्रैना ( Grana ) कहा जाता है । प्रत्येक क्लोरोप्लास्ट में ‘ ग्रैना ‘ की संख्या 40-60 तक होती है  ग्रैना को जोड़ने वाली रचना को स्ट्रोमा लमेली कहते है । थैलेकॉयड की झिल्ली पर क्लोरोफिल के अणु लगे होते हैं । क्लोरोफिल के सिर ( Head ) में Mg पाया जाता है । क्लोरोफिल प्रकाश – संश्लेषण में सहायक होता है 

केंद्रक

केंद्रक की खोज 1831 ई ० में रॉबर्ट ब्राउन ने की । केंद्रक को कोशिका का दिमाग ( brain of cells ) अथवा कोशिका का नियंत्रण केंद्र ( controll centre ) कहते हैं । केंद्रक अंडाकार , गोलाकार , चपटे आदि विभिन्न आकृतियों के होते हैं ।

 केंद्रक के निम्नलिखित चार भाग होते हैं

 1. केंद्रक फिल्ली ( Nuclear Membrane )  इसकी खोज ओ ० हटविंग ने की थी । केंद्रक के चारों ओर एक महीन कला होती है , जिसे केंद्रक कला कहते हैं ।

 यह दो परतों या झिल्लियों से निर्मित है । प्रत्येक झिल्ली एक यूनिट मेंम्ब्रेन को प्रदर्शित करती है और 75 Å मोटी होती है । 

 2. केंद्रकद्रव( Nucleoplasm ) 

केंद्रक कला के अंदर केंद्रक में एक पारदर्शी अर्द्ध – तरल एवं कणिकीय मैट्रिक्स होता है , जिसे केंद्रकद्रव या केंद्रक – रस ( Nuclear sap ) कहते हैं 

इसमें RNA , DNA , प्रोटीन , एंजाइम , खनिज लवण आदि पाए जाते हैं । 

3. क्रोमैटिन ( Chromatin ) 

 यह केंद्रक का सबसे महत्वपूर्ण भाग है । यह धागे के रूप में एक – दूसरे के ऊपर फैलकर एक जाल – सा बनाता है । इसे क्रोमैटिन रेटिकुलम ( Chromatin Reticulum ) कहते हैं । कोशिका विभाजन के समय ये धागे सिकुड़कर छोटे एवं मोटे हो जाते हैं । अब इन्हें गुणसूत्र ( Chromosomes ) कहते हैं । 

4. केंद्रिका ( Nucleolus ) 

● इसकी खोज फॉण्टेना ने की थी । 

●  क्रोमैटिन के अलावा केंद्रक में एक या अधिक ) सघन गोल रचनाएँ दिखाई पड़ती हैं , इसे केंद्रिका कहते हैं । 

● इसमें राइबोजोम ( Ribosome ) के लिए RNA का संश्लेषण होता है ।

 गॉल्जीकाय ( Golgibody ) 

 इसकी खोज कैमिलो गॉल्जी द्वारा 1898 ई ० में किया गया ।बेकर द्वारा इसे ‘ लाइपोकाड्रिया ‘ नाम दिया गया । ।   पादप कोशिका में इसे डिक्ट्योजोम्स ( Dictyosomes ) कहा जाता है । इसका निर्माण लिपिड एवं प्रोटीन से होता है । 

प्रत्येक गॉल्जीकाय में 4-10 चपटी , थैली रचना मिलती है , जिसका सिरा फुला हुआ होता है । इसे सिस्टनी ( cisternae ) कहते हैं । Cisternae के निकट छोटी – छोटी एवं गोलाकार रचना पायी जाती है , जिसे vesicle कहते हैं तथा बड़ी गोल रचना को vacuole कहते हैं । सभी रचनाओं को मिलाकर golgicomplex कहते हैं । यह कार्बोहाइड्रेट के संश्लेषण में सहायक होता है । गॉल्जीकाय , प्रोटीन का secretion ( स्त्रावण ) करता है । गॉल्जीकाय , लाइसोजोम के निर्माण में सहायक होता है । गॉल्जीकाय , एक्रोजोम के निर्माण में सहायक होता है । गॉल्जीकाय , कोशिका प्लेट के निर्माण में सहायक होता है । इसे अणुओं का यातायात प्रबंधक भी कहते है । 

लाइसोसोम ( Lysosome ) 

 इसकी खोज डी – डूबे ( De – duve ) द्वारा 1958 ई ० में किया । लाइसोजोम एक थैलीनुमा रचना है , जो कि membrane द्वारा घिरी होती है ।

आत्महत्या की थैली ( Suicidal Bag ) 

इसका व्यास 0.21µ-0.8µ तक होता है , इसका मुख्य कार्य अंत कोशिकीय पाचन है । यह कोशा – विभाजन में भी सहायता करता है ।इसमें बहुत से अम्लीय अपघट्य एन्जाइम भी पाए जाते हैं , जो कभी – कभी भोजन की कमी के कारण कोशिकाओं का विघटन कर देते हैं अर्थात् विनष्ट कर देते हैं । अतः इसे ‘ आत्महत्या की थैली ‘ भी कहते हैं । 

अंतःद्रव्यीय जलिका ( Endoplasmic Reticulum – ER ) 

इसकी खोज पोर्टर द्वारा 1945 ई ० में की गई थी । यह कोशिकाभित्ति तथा केंद्रक में भरे कोशिकाद्रव्य में जालनुमा ढंग से फैला हुआ होता है ।    यह जाल परस्पर समांतर ढंग से लगी चपटी नलिकाओं से बना होता है । नलिकाओं के अंदर तरलद्रव्य और इनके बाहर जीवद्रव्य होते हैं । इन नलिकाओं द्वारा प्रोटीन , खनिज लवण , एन्जाइम , शर्करा एवं जल का परिवहन होता है । यह एक कोशिका से दूसरी कोशिका में पदार्थों के परिवहन में सहायक होता है । केंद्रक से कोशिकाद्रव्य में पदार्थों का परिवहन इसी के द्वारा होता है । यह प्रोटीन संश्लेषण में सहायता करता है । यह कोशिका को यांत्रिक सहारा प्रदान करता है , इसलिए इसे कोशिका का कंकाल ( endoskeleton of cell ) कहते हैं । अंतःद्रव्यीय जलिका के कुछ भागों पर किनारे – किनारे छोटी – छोटी कणिकाएँ लगी होती हैं जिन्हें राइबोजोम कहा जाता है । 

इस प्रकार दो तरह की अंतर्द्रव्यीय जलिकाएँ ( Endoplasmic Re ticulum , ER ) पाई जाती हैं

 ( 1 ) खुरदरी अंतर्द्रव्यीय जालिका ( Rough Endoplasmic Re ticulum – RER ) जिनकी बाहरी सतह पर राइबोजोम लगे रहते हैं । वे कोशिकाएँ जिनमें प्रोटीन संश्लेषण , आदि होता है , उनमें RER को मात्रा काफी अधिक होती है । 

( II ) चिकनी अंतर्द्रव्यीय जालिका ( Smooth endoplasmic reticulum – SER ) – जिन पर राइबोसोम नहीं होता हैं । 

राइबोसोम ( Ribosome ) 

 यह पादप एवं जन्तु कोशिका दोनों में उपस्थित रहता है I यह अंतः द्रवीय जालिका से जुड़ा होता है या कोशिका द्रव में बिखरा होता है या समूह में रहता है । जब साइटोप्लाज्म में राइबोजोम समूह में पाया जाता है , तब उसे पॉलीजोम ( Polysome ) कहा जाता है । कोशिका में सबसे छोटा कोशिकांग राइबोसोम है । साइबोसोम झिल्लीविहीन रचना है । इसका आकार 150A – 200Ä होता है । राइबोसोम को प्रोटीन का फैक्ट्री भी कहा जाता है । । राइबोसोम का निर्माण RNA एवं प्रोटीन से होता है । 

राइबोसोम दो प्रकार के होते हैं 

( i ) 70s राइबोजोम- यह दो उप – इकाई 50s एवं 30s बना होता है । यह प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में पाया जाता है । 

( ii ) 80s राइबोजोम- यह दो उप – इकाई 60s एवं 40s का बना होता है । यह यूकैरियोटिक कोशिकाओं में पाया जाता है । 

FAQ

1. कोशिका की खोज किसने की और कब की?

Ans:-राबर्ट हुक ने 1665 ई ० में कॉर्क को काटकर सूक्ष्मदर्शी ( Micro scope ) से इसमें अनेक chamber देखा जिसे उसने कोशिका कहा ।

2. मनुष्य के शरीर में कितनी कोशिकाएं होती हैं?

 Ans:-आदमी के शरीर लगभग 60-90 ट्रिलियन सेल से बना होता है।

3. कोशिका झिल्ली के कौन कौन से कार्य हैं?

Ans:- कोशिकाओं में प्रवेश करने वाले एवं बाहर जाने वाले पदार्थों का नियंत्रण करती है।

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