Internet addressing क्या है और कितने प्रकार के होते हैं ? | What is Internet addressing and how many types are there in hindi?

Internet  addressing क्या है

इन्टरनेट के अंतर्गत ऐड्रेस के बहुत से अर्थ होते हैं । परन्तु इन्टरनेट एड्रेसिंग एक बहुत ही अनिवार्य पद है । जैसे कि हमारे दैनिक जीवन में पोस्टल ऐड्रेस । इन्टरनेट एड्रेसिंग किसी व्यक्ति , कम्प्यूटर या अन्य इन्टरनेट रिसोर्सेस को पहचानने का एक बहुत ही क्रमबद्ध तरीका है । इस एड्रेसिंग को हम निम्न प्रकार से वर्गीकृत कर सकते हैं : 

 ( 1 ) IP ऐड्रेस 

( 2 ) डोमेन नेम ऐड्रेस 

( 3 ) इलेक्ट्रॉनिक मेल ऐड्रेस 

( 4 ) URL ऐड्रेस 

( 1 ) IP ( इन्टरनेट प्रोटोकॉल ) ऐड्रेस क्या है

IP ऐड्रेस एक अद्वितीय नंबर होता है । इसकी मदद से इन्टरनेट पर किसी कम्प्यूटर को पहचाना जाता है । प्रत्येक इन्टरनेट से जुड़े हुए कम्प्यूटर का एक IP ऐड्रेस होता है । IP ऐड्रेस में चार नम्बरस् होते हैं जोकि डाटस् ( . ) के द्वारा अलग – अलग होते हैं । प्रत्येक नम्बर 0 से 255 के बीच होता है । 

 ऐड्रेस को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है : एक नोड ऐड्रेस व दूसरा लॉजिकल नेटवर्क ऐड्रेस । 

नोड ऐड्रेस , नेटवर्क में किसी एन्टिटी या उपकरण का ऐड्रेस होता है जबकि लॉजिकल नेटवर्क ऐड्रेस , नेटवर्क का वह भाग होता है जिससे वह नोड या उपकरण जुड़ा होता है । 

TCP / IP एक अद्वितीय नम्बर स्कीम का उपयोग करके नेटवर्क व ऐड्रेस को नम्बरों के समूह के द्वारा दर्शाता है । ये नम्बर ही IP ऐड्रेस कहलाते हैं । नेटवर्क पर वे सभी उपकरण जो TCP / IP प्रोटोकॉल सूट का उपयोग करते हैं , का एक अद्वितीय TCP / IP ऐड्रेस होता है । 

यदि हम किसी दूसरे कम्प्यूटर से जुड़ना चाहते हैं या फाइल का आदान – प्रदान करना चाहते हैं या ई – मेल भेजना चाहते हैं , तब सबसे पहले हमें यह जानना जरूरी है कि दूसरा कम्प्यूटर कहाँ है अर्थात् उसका ऐड्रेस क्या है । 

IP ऐड्रेस किसी विशेष नेटवर्क पर विशेष मशीन का परिचायक होता है तथा यह इन्टरनेट पर कम्प्यूटर को पहचानने की स्कीम का भाग होता है । IP ऐड्रेस को IP नम्बर या इन्टरनेट ऐड्रेस भी कहते है । 

IP ऐड्रेस , चार नम्बरस् या आक्टेटस् का समूह होता है जिनका मान 0 से 255 के बीच होता है । प्रत्येक आक्ट निम्नलिखित तरीके से पृथक  होता है 

 ये चारों भाग स्वयं मशीन या होस्ट व उस नेटवर्क जिस पर कि यह होस्ट है , को प्रदर्शित करते हैं । IP ऐड्रेस का नेटवर्क वाला भाग InterNIC ( जोकि IANA इन्टरनेट एसाइन्ड नम्बरस् अथॉरिटि के अंतर्गत है ) के द्वारा ISPs ( इन्टरनेट सर्विस ) प्रोवाइडर ) को दिया जाता है । फिर ISPS , IP ऐड्रेस का होस्ट वाला भाग उस मशीन को देते है जिसे वे नेटवर्क पर ऑपरेट करते है ।

 IP ऐड्रेस का कौन – सा भाग नेटवर्क व कौन सा भाग मशीन ऐड्रेस को प्रदर्शित करेगा , यह इस बात पर निर्भर करता है कि नेटवर्क का IP ऐड्रेस की कौन सी ‘ क्लास ‘ दी गई है । 

ip address के क्लास

IP ऐड्रेस की मुख्य रूप से पाँच क्लास होती हैं :

 क्लास A , क्लास B , क्लास C , क्लास D , व क्लास E. क्लासेस या तो नेटवर्क ( अर्थात् नेटवर्क कितने होस्ट को सपोर्ट करता है ) के आधार पर या फिर निर्धारित उद्देश्यों के लिये जैसे मल्टिकास्टिंग व प्रयोग के लिये आरक्षित रहती है । 

क्लास

क्लास A – IP ऐड्रेस में पहले डॉट के पूर्व का नम्बर 1 से 127 के बीच में होता है ।

क्लास A ऐड्रेस में , प्रथम आक्टेट नेटवर्क ऐड्रेस को दर्शाता है व अंतिम तीन आक्टेट नोड या होस्ट नम्बर को दर्शाते हैं । अतः IP ऐड्रेस 5.12.3.7 , नेटवर्क 5 पर होस्ट नम्बर 12.3.7 को दर्शाता है । 

क्लास

क्लास B – IP ऐड्रेस में पहले डॉट से पूर्व का नम्बर 128 से 191 के बीच होता है परन्तु यहाँ पर प्रथम दो आक्टेट मिलकर नेटवर्क ऐड्रेस का निर्माण करते है और अंतिम दो आक्टेट होस्ट ID का । 

 क्लास

क्लास C – IP ऐड्रेस में पहले डॉट के पूर्व का नम्बर 192 से 223 के बीच होता है परन्तु यहाँ पर शुरू के तीन आक्टेट मिलकर नेटवर्क ID का निर्माण करते हैं ।   

इसके अलावा क्लास D व क्लास E ऐड्रेसेस् जिनमें कि प्रथम डॉट से पूर्व का नम्बर 223 से बड़ा होता है । इन ऐड्रेसेस का सामान्यत : उपयोग नहीं होता है । ये विशेष उद्देश्यों के लिये आरक्षित हैं । 

What is my ip address

 आपके माइंड में अभी सवाल आ रहा होगा कि हम अपने मोबाइल लिया कंप्यूटर का  ip address कैसे चेक कर सकते हैं इसके लिए आपको अपने मोबाइल या अपने कंप्यूटर स्क्रीन में क्रोम ब्राउजर में जाकर गूगल में my ip address सर्च करना होगा ऐसे तो इस स्क्रीन पर आपको  ip address दिखा दिया जाएगा और नीचे दी गई वेबसाइट पर जाकर भी अपने ip address देख सकते हैं

IP Addresses को मैनेज कौन करता है ?

आपके माइंड में अभी सवाल आ रहा होगा कि IP Addresses को मैनेज कौन करता है ? इसके लिए IANA ( Internet Assigned Numbers Authority ) जिम्मेदार होता है ।  आईपी एड्रेसेज को Distribute करने के लिए अलग – अलग में Regions के हिसाब से अलग – अलग इकाईयाँ काम करती है ।  पूरी दुनिया में 5 Regional Internet Registries ( RIRs ) में बांटा गया है

1. ARIN ( American Registry For Internet Numbers ) 

2. LACNIC ( Latin American And Caribbean Internet Addresses Registry ) 

3. AFRINIC ( African Network Information Centre ) 

4. APNIC ( Asia – Pacific Network Information Centre ) 

5. RIPE NCC ( Reseaux IP Europeens Networks Coordination Centre )

 IP ऐड्रेसेस के  गुण

( 1 ) IP ऐड्रेसेस अद्वितीय होते है । 

( 2 ) दो मशीन के एक समान IP ऐड्रेस नहीं हो सकते है । 

( 3 ) IP ऐड्रेसेस सार्वभौमिक व स्टैंडर्ड हैं । 

( 4 ) जितनी भी मशीन इन्टरनेट से जुड़ी हुई होती हैं , वे सभी एक ही स्कीम का उपयोग ऐड्रेस निर्धारण के लिये करती हैं ।

( 2 ) डोमेन नेम ऐड्रेस क्या है

डोमेन , इन्टरनेट से जुड़े हुए कम्प्यूटर की ऐड्रेसिंग करने का एक और तरीका होता है । इसके द्वारा हम कम्प्यूटर की पहचान सकते हैं । किसी भी डोमेन नेम में दो या अधिक अवयव होते हैं । जोकि डाट ( . ) के द्वारा पृथक – पृथक होते हैं । 

डोमेन के सबसे सीधे तरफ का भाग ” टॉपलेवल डोमेन ” , दूसरा सीधे तरफ का भाग ( अर्थात् प्रथम डॉट के बाद ) , ‘ ‘ सेकण्ड लेवल डोमेन ” कहलाता है , और इसी तरह से आगे क्रम चलता है । डोमेन के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं : yahoo.com , ignou.edu , davv.ac.in इत्यादि । दो आर्गेनाइजेशन के कभी भी एक जैसे डोमेन नेम नहीं हो सकते हैं । जब डोमेन प्राप्त हो जाता है तो हम इसके ” सवडोमेन ” भी बना सकते है । सबडोमेन निम्न स्ट्रक्चर के आधार पर बना सकते हैं : 

hostname.subdomain.second-leveldomain.top – level domain 

उदाहरण के लिय naik.com एक बड़े आर्गेनाइजेशन का डोमेन नेम है और इसकी ब्रांच आफिसेस के लिये ऊपर दिये गये स्ट्रक्चर के आधार पर सबडोमेन इस प्रकार बना सकते हैं

 nitesh.indore.naik.com 

यहाँ naik.com आर्गेनाइजेशन की indore ब्रांच म ” nitesh ” एक होस्ट कम्प्यूटर का नाम है । इस प्रकार से हम कई सबडोमेनस् बना सकते हैं । परंतु यह जरूरी नहीं होता है कि प्रत्येक डोमेन में सिर्फ सबडोमेन व होस्टनेम ही हो । टॉपलेबल डोमेन यह बताता है कि उस आर्गेनाइजेशन का प्रकार क्या है । 

इन्टरनेट पर कम्प्यूटर को पहचानने के लिये डोमेन का नाम सबसे आसान तरीका है । इस कार्य के लिये डोमेन नेम सिस्टम का उपयोग होता है जो कि बहुत से डेटाबेस का संग्रह होता है तथा इन डेटाबेस में सभी डोमेन व उनसे सम्बन्धित IP ऐड्रेसेस की जानकारी होती है । डोमेन नेम सरवरस ऐसे कम्प्यूटरस् होते हैं जोकि डोमेन नेम को उनसे सम्बन्धित IP ऐड्रेसेस में परिवर्तित करते हैं । 

एल्फान्यूमेरीक डोमेन नेम बहुत आसानी से पहचाना व याद रखा जाता है परंतु इन्टरनेट पर वास्तविक प्रक्रिया में IP ऐड्रेस ही जरूरी होता है , इसलिये डोमेन नेम सिस्टम का उपयोग करते हैं । दिये गये उदाहरण में डोमेन नेम www.microsoft .com है परंतु इसे ढूढ़ने के लिये इसका IP ऐड्रेस 207.68.156.49 जरूरी होगा , जोकि DNS के द्वारा प्राप्त होगा । 

 ( 3 ) मेल ऐड्रेस क्या है

हमारे ई – मेल मैसेजेस् उनके उचित गंतव्य तक पहुँच सके , इस हेतु कई प्रकार के ऐड्रेसस का उपयोग करते हैं । किसी भी ई – मेल ऐड्रेस में ऐसी सूचनाएं पर्याप्त रूप से होनी चाहिये ताकि वह उसके प्राप्तकर्ता तक पहुंच सके । ई – मेल ऐड्रेस के कई प्रारूप अलग – अलग ई – मेल सिस्टम्स् के आधार पर उपयोग किये जाते हैं । प्रत्येक ई – मेल के प्रारूप में विशेष रूप से में दो भाग अवश्य होते हैं

• यूजर से संबंधीत जानकारी जो कि यूजर का नाम या एलाईज दर्शाता है जिसे मैसेज भेजा जाता है 

• रूट से संबंधीत जानकारी जो यह बताती है कि यूजर के मेल मैसेज को भेजने के लिए किसी मेल सिस्टम का प्रयोग होता है जिस पर उसका मेल बॉक्स है

( 4 ) यूनिवर्सल रिसोर्स लोकेटर ( URL ) क्या है

www पर किसी डाक्यूमेंट को ढूंढने के लिये एक अद्वितीय ऐड्रेस जिसे यूनिफार्म रिसोर्स लोकेटर ( URL ) कहते है , का उपयोग करते है । जब कोई बेव ब्राऊजर में लिंक पर क्लिक करता है तब ब्राऊजर URL में दिये गये साईट के नाम को ओपन करता है । जिसमें तीन भाग होते है :  

( 1 ) प्रोटोकॉल 

( 2 ) सरवर ऐड्रेस 

( 3 ) सरवर स्पेस में डाक्यूमेंट की स्थिति 

ये नाम हमेशा हायपर टैक्स्ट प्रोटोकॉल ( http ) से शुरू होते हैं , जिसके बाद कॉलन ( 🙂 व दो फारवर्ड श्लेश ( // ) का उपयोग करते हैं । इसके बाद सरवर का ऐड्रेस आता है और अंत में फाईल की स्थिति । उदाहरण के लिये http : // www / christian eminent.com/faculty एक बेव साईट का ऐड्रेस है । यहाँ ” christianeminent.com ” एक सरवर ऐड्रेस है और ” faculty ” इस सरवर पर एक डाक्यूमेंट की स्थिति है । URLs , बेव पेज पर एक लिंक का कार्य करती है और ये लिंक अधिकांशतः हाईलाईटेड टैक्स्ट के पीछे अदृश्य रूप से होती है । 

 URL यह भी बताती है कि डाक्यूमेंट को किस तरह से एक्सेस किया जाय । या तो http की मदद से या फिर दूसरे प्रोटोकॉल जैसे ftp ( फाइल ट्रांसफर प्रोटोकॉल ) की मदद से डाक्यूमेंटस् ट्रांसफर करना ।

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