नैनोटेक्नोलॉजी क्या है और इसका उपयोग कहां किया जाता है?

नैनो टेक्नोलॉजी क्या है ?

प्रोद्मौगिकी में नैनो टेक्नोलॉजी को एक नए युग के सूत्रपात के रूप में देखा जा रहा है नैनो टेक्नोलॉजी अतिसूक्ष्म दुनिया है, जिसका दायरा एक मौटर के अरबवें हिस्से या उससे भी छोटा है । चौकाने वाली बात मह है कि जितनी यह सूक्ष्म है उतनी हो ज्यादा संभावनाएँ अपने में समेटे हुए है। नैनो टेक्नोलॉजी से बने अनुठे उत्पादों का दायरा बढ़ता जा रहा है।

नैनो टेक्नोलॉजी

नैनो टेक्नोलॉजी की शुरुआत कैसे हुई थी

नैनो टेक्नोलॉजी शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के शब्द नैनों से हुई है जिसका सीधा अर्थ होता है बौना या सूक्ष्म।यह नाम जापान के वैज्ञानिक नौरिया तानीगुगूची ने वर्ष 1976 में दिया था वर्ष 1986 में नैनो टेक्नोलॉजी के प्रति बैज्ञानिक वर्ग की रूचि उस समय अचानक बढ़ गई जब जर्मनी के वैज्ञानिक गार्ड बिनिग व स्विटजरतैंड के हैनरिच रोगर के संयुक्त प्रयास से तैयार ‘स्कैनिंग टानलिंग माइक्रोस्कोप’ बना। यह वही माइक्रोस्कोप था जिसकी मदद से वैज्ञानिक पहली बार अणु व परमाणु को सहजता से देख पाए इस आविष्कार के लिए इन वैज्ञानिकों को नोबल सम्मानित किया गया था नैनोटेक्नोलॉजी एक यूनिट है जो एक मीटर के अरबबे हिस्से के बराबर होता है। एक से लेकर सौ नैनोमीटर को ‘नैनोडोमेन’ कहा जाता है जब अणु और परमाणु नैनो क्षेत्र को प्रभावित् करते हैं तो इनमें नबीन तब्दीलियाँ होनी आरंभ हो जाती हैं। ये तब्दीलियाँ अद्भुत होती हैं, जिसमें वस्तु के मूल गुण तक बदल जाते हैं। इस बदलाव की तकनीक को ही नैनो टेक्नोलॉजी कहा जाता है।

नैनो टेक्नोलॉजी के तहत मटेरियल का साइज छोटा कर उसे नैनोडोमेन बना लिया जाता है। ऐसा करने पर उस इलेक्टिकल, मैकेनिकल, थर्मल व ऑप्टीकल – हर स्तर पर बदलना शुरु हो जाते हैं। यह एक नया विज्ञान है जो कि बेहद आश्चर्यचकित कर देने वाले परिणाम देता है। जैसे-जैसे परमाणु का साइज छोटा होगा उसकेअंदर दूसरी धातुओं व पदार्थों में आपसी प्रतिक्रिया की क्षमता बढ़ जाएगी इस विशेषता का इस्तेमाल कर नैनो मटेरियल‌से एकदम नया उत्पाद आसानी से तैयार किया जा सकता है। नैनो मटेरियल तैयार करने के लिए हमेशा दो पद्धतियों का इस्तेमाल किया जाता है – पहली बड़े से छोटा करने की पद्धति और दूसरी छोटे से बड़े करने की तकनीक इस तकनीक की मदद से एक आश्चर्यचकित कर देने वाला नैनो मटेरियल तैयार किया जा सकता है। अगर देखा जाए तोसंसार की हर चीज का निर्माण अणु से हुआ है । हर वस्तु की प्रकृति अब अणु के साथ जुड़ी विभिन्न रासायनिक वस्तुओ की प्रकृति पर निर्भर करती है। यह प्रकृति बार-बार बदल सकती है, बस जरूरत है तो आपसी प्रतिक्रिया में कुछ मामूली फेरबदल करने की। नैनो पदार्थ अणु से भी बहुत छोटा होता है इसलिए इसकी आकर्षण क्षमता कहीं अधिक ज्यादा होना स्वाभाविक है। यही वजह है कि नैनो मटेरियल बेहद हल्के, मजबूत, पारदर्शी एवं अपने मूल मटेरियल से पूरी तरह से अलग होते हैं। एक नैनो मीटर का साइज मानव बाल के 50 हजारवें हिस्से के बराबर होता है।

नैनी टेक्नोलॉजी उपयोग कहां किया जाता है?

 अमेरिका के बाजारों में पैठ बना लेने के पश्चात् अब नैनो टेक्नोलॉजी ने भारतीय बाजार पर भी कब्जा जमाना शुरू कर दिया है हालांकि अभी भारतीय बाजारों में नैनो उत्पादों की संख्या बहुत कम है मगर वह दिन दूर नहीं जब वह नैनोटेक्नोलॉजी के उत्पादों का बोलबाला होगा भारतीय विशेषज्ञ भी अब इस क्षेत्र में शोध करने में जुट गए हैं फिलहाल अगर देखा जाए तो नैना टेक्नोलॉजी चिकित्सा  के क्षेत्र से लेकर उद्योगों तक कहीं ना कहीं अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है

चिकित्सा क्षेत्र

नैनो टेक्नोलॉजी का वर्तमान समय मैं सर्वाधिक पवार चिकित्सा के क्षेत्र में भी देखने को मिल रहा है वैज्ञानिक तकनीकी का इस्तेमाल कर गोल्ड पार्टिकल बैक्टीरिया ट्यूमर सेल्स का निर्माण कर रहे हैं जो की कैंसर की समूची प्रक्रिया को ही बदल देगा जिससे ट्यूमर के खतरनाक तत्व को ही खत्म कर दिया जा सकता है इसके अलावा विशेषज्ञ ऐसी कला इकाई के रूप में नैनोटेक्नोलॉजी आधारित डिवाइस का विकास करने में लगी है जिसके माध्यम से आप ही अपने शरीर की तमाम बीमारी का पता लगाएं पाए रोग उत्पादन है होते ही उसका पता लग जाने और इलाज हो जाने से व्यक्ति की औसत आयु में प्रति होना स्वाभविक है

कंप्यूटर के क्षेत्र में

इस पद्धति का प्रभाव कंप्यूटर के क्षेत्र में काफी क्रांतिकारी बदलाव लाया है सुपर कंप्यूटर का नाम तो सभी ने सुना होगा यह ऐसी नैनोटक्नोलॉजी का ही परिणाम है बस इसके लिए आपको कंप्यूटर में कनेक्टर के रूप में नैनोवयर का सम्मान करना होता है स्क्वायर की लगते ही कंप्यूटर की मेमोरी 10 लाख गुना बढ़ जाती है। साथ ही इस तकनीकी का इस्तेमाल केसर के निर्माण में किया जाने लगा है जो कि अनुचित के मुकाबले अधिक अच्छे परिणाम देती है इस तकनीकी के उद्देश्य कंप्यूटर ज्ञान को एक नई गति मिली है।

उद्योग में

इस क्षेत्र में भी तकनीकी अपनी पेड़ बनाती जा रही है जैसे तीते नियम डाई ऑक्साइड पेंट‌ । यदि इस नैनो मटेरियल बनाकर पेट में मिला दिया जाए तो उसकी चमक और हाडर्नेस और बढ़ जाएंगी और इस तरह तैयार पेंट सामान्य पेंट के मुकाबले ज्यादा दिन चलेगा। इसके अलावा कपड़ा उद्योग में भी इस पद्धति का इस्तेमाल कर नैनोबेस्ड क्लाथ बनाए जाते हैं। इस तकनीकी से तैयार कपड़े पसीने आसानी से सोख लेता है इतना ही नहीं यह कपड़ा बाजार में उपलब्ध अन कपड़े के मुकाबले कहीं अधिक टिकाऊ है।

जल शोधन में

नैनो टेक्नोलॉजी के माध्यम से पानी में मौजूद हानिकारक आर्सेनिक तत्व समाप्त कर दिए जाते हैं क्या एकत कर निकाल दिए जाते हैं इसके लिए नैनो मिनरल नैनो गोल्ड नैनो सिल्वर मैट्रिक का प्रयोग किया जाता है।

टीवी डिस्प्ले में

टेलीविजन पर नजर आने वाली पिक्चर की ब्राइटनेस व कलर को बेहतर बनाने के लिए नैनो टेक्नोलॉजी का प्रयोग किया जाता है इस पद्धति में नैनो फास्टर मटेरियल का सम्मान किया जाता है इसके अलावा भी संदेह प्रसाधन कॉपर वायर का निर्माण व प्रदूषण नियंत्रण के क्षेत्र में नैनो टेक्नोलॉजी के अद्भुत प्रयासों की धूम है या ऐसी टेक्नोलॉजी है जो कि नए युग की शुरुआत का कारण बनेगी।

योगिता प्रति

भारत में नैनो टेक्नोलॉजी के शिक्षक शिक्षक में अभी बहुत कम निजी व सरकारी संस्थान आगे आई है अगर भारत की बात की जाए तो नैनोटेक्नोलॉजी से संबंध केवल एमटेक नैनोटक्नोलॉजीपाठ्यक्रम ही उपलब्ध है जिसके लिए निर्धारित इंजीनियर की डिग्री और स्नातकोत्तर डिग्री (फिजिकल केमिस्ट्री बायोटेक्नोलॉजी) अनिवार्य है एम टेक प्रोग्राम 2 वर्ष का है जिसमें प्रशिक्षकों को 6 माह का प्रशिक्षण उपलब्ध कराया जाता है इस तकनीकी के तेजी से हो रहे विकास को देखते हुए जल्द ही भारतीय विश्वविद्यालय वाह इंस्टिट्यूट में नैनो टेक्नोलॉजी से संबंधित पाठ्यक्रम पढ़ाई जाने लगेंगे।

FAQ


नैनो टेक्नोलॉजी का जनक कौन है?

प्रो. सी. एन. राव 

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