3 – फेज प्रेरण मोटर क्या है
यह 3 – फेज ए . सी . स्त्रोत पर कार्य करता है । यह प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है । इसके मुख्यतः दो भाग होते हैं ।
1. स्टेटर
2. रोटर
1. स्टेटर ( Stator ) :
यह मोटर का नहीं घूमने वाला भाग है । स्टेटर में ही अंदर की तरफ से स्टेटर कोर लगाये रहते है जो सिलिकॉन इस्पात ( Silicon Steel ) का बना होता है । स्टेटर कोर को लेमिनेटेड ( 0.35mm to 0.5 mm ) करने से एडी धारा क्षति कम होती है तथा सिलिकॉन इस्पात का हिस्टेरेसिस गुणांक कम होने के कारण हिस्टेरेसिस क्षति कम होती है । स्टेटर कोर पर ही 3 – Phase स्टार या डेल्टा winding की जाती है । जिसके दूसरे सिरे से मोटर को 3 – Phase A.C. सप्लाई दी जाती है । स्टेटर को ए.सी. सप्लाई देने से वह घुमने वाला चुम्बकीय क्षेत्र स्थापित करता है ।घूमने वाले चुम्बकीय क्षेत्र की घूर्णन गति तुल्यकालिक गति ( Synchronous speed ) कहलाता है जिसे N , से निरूपित करते है ।
Ns=120×f /P जहाँ ,
Ns = स्टेटर की तुल्यकालिक गति ( R.PM. में )
f = सप्लाई फ्रिक्वेंसी ( Hz में )
P स्टेटर पोल्स की संख्या
उपरोक्त सूत्र से स्पष्ट है कि ध्रुवों की संख्या बढ़ाने से मोटर की गति कम की जा सकती है । इसके विपरीत कम करने से गति बढ़ जाती है ।
रोटर ( Rotor ) :
यह मोटर का घूमने वाला भाग है । यह हल्की स्टील का बना होता है । प्रेरण मोटर के रोटर कुण्डलन का किसी सप्लाई स्रोत से सीधा कोई संबंध नहीं रहता है । रोटर परिपथ में आवश्यक वोल्टता तथा धारा , स्टेटर कुण्डलनों द्वारा विद्युत चुम्बकीय प्रेरण द्वारा उत्पन्न की जाती है । यह तीन प्रकार के होते हैं
( a ) पिंजरा वेष्ठित रोटर ( Squirrel – Cage Wound rotor )
( b ) दुहरा पिंजरा वेष्ठित रोटर ( Double – Squirrel – Cage Wound rotor )
( c ) फेज वेष्ठित रोटर ( Phase Wound rotor )
पिंजरा वेष्ठित रोटर ( Squirrel – Cage Wound rotor ) :
पिंजरा वेष्ठित रोटर के कोर में बने स्लॉट में ताँबा , एल्युमीनियम या मिश्रधातु की छड़ें स्थापित की जाती है । यह छड़ें रोटर के दोनों तरफ ताँबे या एल्युमीनियम के छल्लों ( rings ) द्वारा आपस में लघु पथित ( short circuit ) कर देते हैं ।ये छड़ें रोटर की कुंडली का कार्य करती है प्रेरण मोटर में प्रायः खांचों को तिरछा रखा जाता है ऐसा करने में स्टेटस तथा रोटर के मध्य चुंबकीय पकड़ तथा चुंबकीय भनभनाहट कम होती है
( b ) दुहरा पिंजरा वेष्ठित रोटर ( Double – Squirrel Cage Wound rotor ) :
दो पिंजरा होता है इसलिए इसे दुहरा पिंजरा रोटर कहते हैं । इस प्रकार के मोटर का प्रारम्भिक बलाघूर्ण ( starting torque ) पहले वाले रोटर से अच्छा होता है ।
(c) फेज वेष्ठित रोटर (Phase wound rotor)
इस प्रकार के प्रयोग हुए रोटर वाले मोटर को स्लिप रिंग इण्डक्शन मोटर कहते हैं । इस रोटर के कोर में बने समांतर स्लॉट में 3 – फेज वाइंडिंग की जाती है जिसका एक सिरा स्टार या डेल्टा कनेक्शन में जुड़ा रहता है और दूसरा सिरा रोटर के चाल नियंत्रण के लिए स्लिप रिंग्स से जुड़ा रहता है । रोटर शाफ्ट पर ही रोटर वाइंडिंग्स के बगल में स्लिप रिंग्स बने होते हैं जो ताँबे के होते हैं । बड़े मोटर में फास्फार जोन्ज का होता है । रोटर में ध्रुवों की संख्या स्टेटर के ध्रुवों के संख्या के समान होती है ।
3 – फेज प्रेरण मोटर का कार्य सिद्धान्त Working Principle of 3 – Phase Inductio
3 – फेज इण्डक्शन मोटर में मुख्यत : एक स्टेटर ( stator ) एवं एक रोटर ( rotor ) होता है । स्टेटर में 3 के गुणक में तीन फेज वाइण्डिग्स स्थापित की जाती हैं और रोटर में सामान्यत : शॉर्ट – सर्किट किये हुए चालक स्थापित किए जाते हैं । जब स्टेटर को 3 – फेज सप्लाई दी जाती है तो वह घूमने वाला चुम्बकीय क्षेत्र ( rotating magnetic field ) स्थापित करता है । वास्तव में चुम्बकीय क्षेत्र घूमता नहीं है अपितु उसके पोल इतनी तीव्रता से चक्रीय क्रम में उत्तेजित होते हैं कि वे घूमते हुए प्रतीत होते हैं , ठीक मूविंग लाइट की भाँति । यह क्रिया एक – फेज वाली सप्लाई पर नहीं होती ; इसके लिए न्यूनतम दो – फेज की सप्लाई आवश्यक होती है ।
घूमने वाला चुम्बकीय क्षेत्र , रोटर चालकों द्वारा छेदित होता है और उनमें वि . वा . ब . पैदा कर देता है । माना रोटर चालक A. स्टेटर के N पोल के प्रभाव में है जबकि चुम्बकीय क्षेत्र दक्षिणावर्त दिशा ( clockwise ) में गतिमान है ,
इस स्थिति में रोटर की सापेक्ष गति वामावर्त दिशा ( anticlockwise ) में होती है , प्रेरित वि.वा.ब. के कारण रोटर चालक में प्रेरित विद्युत धारा प्रवाहित होती है और वह बामावर्त दिशा में अपना चुम्बकीय क्षेत्र स्थापित करती है । क्योंकि , स्टेटर तथा रोटर के चुम्बकीय क्षेत्र , एक ही स्थान पर कार्यरत हैं अत : परिणामी चुम्बकीय क्षेत्र की भाँति होता है । इस परिणामी चुम्बकीय क्षेत्र के प्रभाव से रोटर , ‘ घूमने वाले चुम्बकीय क्षेत्र ‘ की दिशा में ही गतिमान हो जाता है । ‘ घूमने वाले चुम्बकीय क्षेत्र ‘ की घूर्णन गति , तुल्यकालिक गति ( synchronous speed ) कहलाती है ।
रोटर स्लिप Rotor Slip
रोटर की घूर्णीय गति सदैव स्टेटर के चुम्बकीय क्षेत्र की घूर्णीय दिशा में होती है परन्तु इसका मान , स्टेटर की तुल्यकालिक गति से सदैव कम होता है । यह आवश्यक भी है क्योंकि , दोनों की घूर्णीय गति समान होने पर उनकी सापेक्ष गति ( relative motion ) शून्य हो जायेगी । फलत : न तो रोटर चालको में वि.वा.ब. पैदा होगा और न ही रोटर में टॉर्क पैदा होगा । इस प्रकार , तुल्यकालिक गति तथा रोटर गति का अन्तर एब्सोल्यूट स्लिप या स्लिप कहलाता है ।
अंशीय स्लिप Fractional Slip
जब स्लिप को तुल्यकालिक गति के अंश के रूप में व्यक्त किया जाता है तो यह अंशीय स्लिप कहलाती है ।
यहाँ , S- अशीय स्लिप , R.P.M. में ,
Ns , = तुल्यकालिक गति , R.P.M. में तथा Nr , = रोटर गति , R.P.M. में ।
प्रतिशत स्लिप Percentage Slip
जब स्लिप को प्रतिशत के रूप में व्यक्त किया जाता है तो वह प्रतिशत स्लिप कहलाती है
महत्वपूर्ण पॉइंट :-अधिकांश स्क्विरल केज 3 – फेज मोटर्स में प्रतिशत स्लिप का मान 2 % से 5 % तक होता है ।
रोटर फ्रीक्वेन्सी Rotor Frequency
रोटर चालकों में प्रेरित हुआ वि.वा … रोटर वोल्टेज कहलाता है । इस रोटर वोल्टेज की फ्रीक्वेन्सी , रोटर फ्रीक्वेन्सी कहलाती है ।
रोटर फ्रोक्वेन्सी ( fr ) = अंशीय स्लिप ( s ) x स्टेटर फ्रीक्वेन्सी (f) ।
यहाँ , S = अंशीय स्लिप R.P.M. में तथा f = स्टेटर फ्रीक्वेन्सी ( सप्लाई फ्रीक्वेन्सी ) , हर्ट्ज में ।