सच्चाई उपहार की कहानी
एक राजा बड़ा न्यायप्रिय और दयालु था । उसके न्याय और दयालुता के चर्चे दूर – दूर तक फैले हुए थे । वह पूरी कोशिश करता था कि मेरे राज्य में कोई दु : खी नहीं रहे , अत : समय – समय पर राज्य कर्मचारियों को अपने राज्य का जायजा लेने भेजता रहता और किसी को भी कष्ट हो तो हर सम्भव कोशिश करता कि लोग दुःखी न रहे । कभी – कभी उसे लगता कि मेरे कर्मचारी कामचोर हो रहे हैं या जरूरतमन्द को सहायता नहीं पहुँचा रहे हैं तो खुद कोई न कोई युक्ति भिड़ाकर रास्ता निकाल लेता ।
राजा के बेटे राजकुमार का जन्मदिन आया तो उसने पूरे राज्य में ऐलान करवा दिया कि जो भी मेरे बेटे के लिए सबसे सुन्दर उपहार लेकर आएगा उसे दस हजार स्वर्ण मुद्राएँ इनाम में दी जाएँगी ।
पूरे राज्य में हलचल मच गई । हर कोई सुन्दर से सुन्दर उपहार खरीदने में लग गया । बड़े – बड़े सेठ – साहूकारों ने सोने – चाँदी के सुन्दर – सुन्दर खिलौने या अन्य चीजें बनवाईं । बहुत से लोगों ने राजकुमार के लिए नए – नए कपड़े सिलवाए । सभी कोशिश कर रहे थे कि उनका ही उपहार सर्वश्रेष्ठ हो । दीनू जो बहुत गरीब था उसने भी सोचा कि मैं राजकुमार के लिए क्या लेकर जाऊँ ? घर में आटे के सिवाय कुछ था ही नहीं , सो उसने पत्नी से कहा- “ तुम इस आटे की रोटियाँ बना दो तो मैं राजकुमार के लिए रोटियों का उपहार लेकर जाऊँ ।
” पत्नी ने कहा- ” क्या पागल हो गए हो ? हमारे जैसे गरीब की रोटियाँ तो उनके कुत्ते भी नहीं खाते । लोग सोने – चाँदी और हीरे – मोती से बनी वस्तुएँ ले जा रहे हैं , ऐसे में तुम्हारी इन सूखी रोटियों को कौन पूछेगा ?
” दीनू ने कहा- ” अरे भाग्यवान् , यह तो मैं भी समझता हूँ लेकिन उपहार के बहाने मैं भी राजा और राजकुमार के दर्शन कर लूँगा । उनका आलीशान महल भी देख लूँगा । ”
” दीनू की पत्नी ने सारे आटे की रोटियाँ बना दीं । दीनू उन्हें पोटली में बाँधकर उस ओर निकल पड़ा “जहाँ राजा का भव्य राजमहल था । चलते – चलते रास्ते में उसे एक भिखारी मिला । दीनू ने सोचा बेचारा भूख से कितना कमजोर हो गया है । मेरे पास जो रोटियाँ हैं उनमें से चार इसको दे दूँगा तो क्या फर्क पड़ जाएगा उसने यह सोच कर चार रोटियाँ भिखारी को दे दीं । भिखारी इतनी रोटियाँ देखकर खुश हो गया और दीनू पर आशीर्वादों की झड़ी लगा दी ।
दीनू कुछ दूर आगे बढ़ा कि उसने देखा दो कुत्ते कचरे के ढेर से ढूँढ़कर कुछ खा रहे थे । भूख से उनके पेट चिपके हुए थे । दीनू ने दो – दो रोटियाँ दोनों कुत्तों के आगे डाल दीं । अब उसके झोले में तीन रोटियाँ ही बची थीं । कुछ दूर चलने पर उसे एक गाय मिली और एक बछड़ा भी साथ था जो लगातार माँ के थन खींच रहा था , लेकिन उनमें दूध नहीं था । दीनू गाय को हमेशा ही श्रद्धा से गो – माता के रूप में देखता था सो उसने गो – माता को नमस्कार किया और एक रोटी उसे खिला दी । एक रोटी बछड़े को भी दे दी । सोचा एक रोटी है मेरे पास । कौन ये मेरी रोटी खा ही लेंगे ! अतः उपहार के लिए एक रोटी ही काफी है ।
राज दरबार में पहुँचकर वह हक्का – बक्का रह गया । वहाँ की भव्यता देखकर उसे अपने कपड़ों और अपनी रोटी पर शर्म आने लगी । बड़े – बड़े लीग सुन्दर से सुन्दर उपहार लाए थे । राज दरबार में जगमग करते उपहारों का ढेर लग गया । दीनू ने अपना झोला कस कर पकड़ लिया और एक कोने में खड़ा हो गया । अचानक राजा की नजर उस पर पड़ गई । राजा ने कहा- ” भाई आगे आओ , तुम क्या उपहार लाए हो मेरे बेटे के लिए ? और तुम्हारा नाम क्या है ?
” दीनू सकुचाता हुआ आगे बढ़ा । नर्म सुन्दर कॉलीन पर अपने मैले पाँव रखने में भी उसे संकोच हो रहा था ।
राजा ने कहा- ” आगे आ जाओ , डरने की कोई बात नहीं है । ” दीनू ने आगे बढ़कर राजा को प्रणाम किया और बोला- “ हुजूर मेरा नाम दीनू है । यहाँ से चार को की दूरी पर मैं रहता हूँ ।
राजा ने कहा- ” लाओ क्या उपहार लाए हो ? निकालो झोले से । ” दीनू ने सकुचाते हुए झोले से रोटी निकाली और राजा के सामने रख दी । दरबार में उपस्थित सभ लोग खिलखिला कर हँस पड़े
राजा ने कहा- ” सेब खामोश रहें । फिर दोन की तरफ हाथ बढ़ा कर रोटी ले ली और पूछा ‘ ‘ भाई दीनू एक ही रोटी ? एक रोटी से मेरा और राजकुमार का क्या होगा ? “
उसने रास्ते का सारा वृत्तान्त कह सुनाया और बोला- “ हुजूर मुझमें आपके लिए उपहार लाने की हैसियत कहाँ है । यह तो जो कुछ मेरे पास था वही लेकर आ गया हूँ ताकि आपके दर्शन कर सकूँ । रास्ते में जरूरतमन्दों को मैंने रोटियाँ बाँट दीं । एक रोटी इसलिए बचाई थी कि इसी बहाने मैं आपके दर्शन कर पाऊँगा ।
राजा ने उसे कुर्सी पर बैठाया और सभी जनों के बीच ऐलान किया कि आज सबसे अच्छा उपहार दीनू लाया है । सोने – चाँदी की हमारे खजाने में भी कमी नहीं है । दीनू जो उपहार घर से लेकर चला था । उसमें से रास्ते में जिन – जिन भूखों की भूख इसने बुझाई है , उनकी दुआएँ भी वह राजकुमार के लिए लाया हैं , अत : दस हजार स्वर्ण मुद्राएँ दीनू को दी जाती हैं , साथ ही जीवन भर के लिए इसका और इसके परिवार का भरण – पोषण भी राजकोष से होगा । इसे राजाज्ञा समझा जाए । इसे दस एकड़ जमीन भी दी जाती है , जिस जामन्त लोगों को रोटी देश राजा के इस निर्णय से सभा में उपस्थित सभी हतप्रभ और आश्रर्य चकित थे ।