आपातकाल’ का क्या अर्थ है और कहां से लिया गया है और कितने प्रकार के होता है | What is the meaning by emergency?

 आपातकाल’ का क्या अर्थ है?

आपातकाल भारतीय संविधान में एक ऐसा प्रावधान है, जिसका इस्तेमाल तब किया जाता है, जब देश को किसी आंतरिक, बाहरी या आर्थिक रूप से किसी तरह के खतरे की आशंका होती है.

भारतीय संविधान में आपातकाल कहाँ से लिया गया है?

 भारतीय संविधान में आपातकाल  जर्मनी के संविधान से लिया गया है। यह संविधान के भाग 18 में है। इसके अनुसार जब देश को किसी आंतरिक, बाहरी या आर्थिक रूप से किसी तरह के खतरा हो तो राष्ट्रपति पूरा देश अपने हाथ में ले सकता है। 

आपातकाल कितने प्रकार के होते है?

आपात उपबन्ध भारतीय संविधान में तीन प्रकार के आपात काल की व्यवस्था की गयी है

1.राष्ट्रीय आपातकाल (नेशनल इमरजेंसी)( अनुच्छेद -352 ) 

2.राष्ट्रपति शासन (स्टेट इमरजेंसी) ( अनुच्छेद -356 )

3.आर्थिक आपातकाल (इकनॉमिक इमरजेंसी) ( अनुच्छेद -360 )

  1. राष्ट्रीय आपातकाल ( अनुच्छेद -352 ) : 

इसकी घोषणा निम्नलिखित में से किसी भी आधार पर राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है – 1. युद्ध , 2. बाह्य आक्रमण और 3. सशस्त्र विद्रोह । राष्ट्रीय आपात की घोषणा राष्ट्रपति मंत्रिमंडल की लिखित सिफारिश पर करता है । राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा को न्यायालय में प्रश्नगत किया जा सकता है । 

44 वें संशोधन द्वारा अनुच्छेद -352 के अधीन उद्घोषणा सम्पूर्ण भारत में या उसके किसी भाग में की जा सकती है । राष्ट्रीय आपात के समय राज्य सरकार निलंबित नहीं की जाती है ; अपितु वह संघ की कार्यपालिका के पूर्ण नियंत्रण में आ जाती है । राष्ट्रपति द्वारा की गई आपात की घोषणा एक माह तक प्रवर्तन में रहती है और यदि इस दौरान इसे संसद के दो – तिहाई बहुमत से अनुमोदित करवा लिया जाता है , तो वह छह माह तक प्रवर्तन में रहती है । 

संसद इसे पुनः एक बार में छह महीने तक बढ़ा सकती है । यदि आपात की उद्घोषणा तब की जाती है , जब लोकसभा का विघटन हो गया हो या लोकसभा का विघटन एक मास के अंतर्गत आपात उद्घोषणा का अनुमोदन किये बिना हो जाता है , तो आपात उद्घोषणा लोकसभा की प्रथम बैठक की तारीख से 30 दिन के अंदर अनुमोदित होना चाहिए , अन्यथा 30 दिन के बाद यह प्रवर्तन में नहीं रहेगी । यदि लोकसभा साधारण बहुमत से आपात उद्घोषणा को वापस लेने का प्रस्ताव पारित कर देती है , तो राष्ट्रपति को उद्घोषणा वापस लेनी पड़ती है ।

संविधान आपात उद्घोषणा पर विचार करने के लिए लोकसभा का विशेष अधिवेशन तब आहूत किया जा सकता है , जब लोकसभा की कुल सदस्य संख्या के 1 10 सदस्यों द्वारा लिखित सूचना लोकसभा अध्यक्ष को जब सत्र चल रहा हो या राष्ट्रपति को जब सत्र नहीं चल रहा हो , दी जाती है । लोकसभा अध्यक्ष या राष्ट्रपति सूचना प्राप्ति के 14 दिनों के अन्दर लोकसभा का विशेष अधिवेशन आहूत करते हैं ।

 आपातकाल की उद्घोषणा के प्रभाव 

जब कभी संविधान के अनुच्छेद 352 के अन्तर्गत आपातकाल की उद्घोषणा होती है , तो इसके ये प्रभाव होते हैं 

1 . राज्य की कार्यपालिका शक्ति संघीय कार्यपालिका के अधीन हो जाती है । 

2. संसद की विधायी शक्ति राज्य सूची से संबद्ध विषयों तक विस्तृत हो जाती है । अर्थात संसद को राज्य सूची में वर्णित विषयों पर कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है । अतः केन्द्र तथा राज्यों के मध्य विधायी शक्तियों के सामान्य वितरण का निलंबन हो जाता है , यद्यपि राज्य विधायिका निलंबित नहीं होती । संक्षेप में संविधान संघीय की जगह एकात्मक हो जाता है । संसद द्वारा आपातकाल में राज्य के विषयों पर बनाये गये कानून आपातकाल की समाप्ति के बाद छह माह तक प्रभावी रहते हैं । 

3. जब राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा लागू हो तब राष्ट्रपति केन्द्र तथा राज्यों के मध्य करों के संवैधानिक वितरण को संशोधित कर सकता है । इसका तात्पर्य यह है कि राष्ट्रपति केन्द्र से राज्यों को दिये जाने वाले धन ( वित्त ) को कम अथवा समाप्त कर सकता है । ऐसे संशोधन उस वित्त वर्ष की समाप्ति तक जारी रहते हैं जिसमें आपातकाल समाप्त होता है । 

4 . राष्ट्रीय आपातकाल की स्थिति में लोकसभा का कार्यकाल इसके सामान्य कार्यकाल ( 5 वर्ष ) से आगे संसद द्वारा विधि बनाकर एक समय में एक वर्ष के लिए ( कितने भी समय तक ) बढ़ाया जा सकता है । किन्तु यह विस्तार आपातकाल की समाप्ति के बाद छह माह से ज्यादा नहीं हो सकता । उदाहरण के लिए पाँचवीं लोकसभा ( 1971-77 ) का कार्यकाल दो बार एक समय में एक वर्ष के लिए बढ़ाया गया था । 

5. अनुच्छेद -358 एवं 359 राष्ट्रीय आपातकाल में मूल अधिकार पर प्रभाव का वर्णन करते हैं । अनुच्छेद -358 , अनुच्छेद -19 द्वारा दिये गये मूल अधिकारों के निलंबन से संबंधित है , जबकि अनुच्छेद -359 अन्य मूल अधिकारों के निलंबन ( अनुच्छेद -20 एवं 21 द्वारा प्रदत्त अधिकारों को छोड़कर ) से संबंधित है । अनुच्छेद -358 के अनुसार जब राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा की जाती है तब अनुच्छेद -19 द्वारा प्रदत्त छह मूल अधिकार स्वतः ही निलंबित हो जाते हैं । दूसरे शब्दों में , राज्य अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त 6 मूल अधिकारों को कम करने अथवा हटाने के लिए कानून बना सकता है अथवा कोई कार्यकारी निर्णय ले सकता है । ऐसे किसी कानून अथवा कार्य को , इस आधार पर कि यह अनुच्छेद -19 द्वारा प्रदत्त 6 मूल अधिकारों का उल्लंघन है , चुनौती नहीं दी जा सकती । जब राष्ट्रीय आपातकाल समाप्त हो जाता हैं , अनुच्छेद -19 स्वतः पुनर्जीवित हो जाता है । 1978 के 44 वें संशोधन अधिनियम ने अनुच्छेद -358 की संभावना पर दो प्रकार से प्रतिबंध लगा दिया है । प्रथम अनुच्छेद -19 द्वारा प्रदत्त छह मूल अधिकारों को युद्ध अथवा बाह्य आक्रमण के आधार पर घोषित आपातकाल में ही निलंबित किया जा सकता है न कि सशस्त्र विद्रोह के आधार पर । दूसरे , केवल उन विधियों को जो आपातकाल से संबंधित हैं , चुनौती नहीं दी जा सकती है । तथा ऐसे विधियों के अन्तर्गत दिये गये कार्यकारी निर्णयों को भी चुनौती नहीं दी जा सकती है ।

अनुच्छेद -358 और 359 में अन्तर 1. अनुच्छेद -358 केवल अनुच्छेद -19 के अन्तर्गत मूल अधिकारों से संबंधित हैं , जबकि अनुच्छेद -359 उन सभी मूल अधिकारों से संबंधित है , जिनका राष्ट्रपति के आदेश द्वारा निलंबन हो जाता है । अनु . 358 स्वतः ही , आपातकाल की घोषणा होने पर अनु . – 19 के अंतर्गत के मूल अधिकारों का निलंबन कर देता है । दूसरी ओर , अनु 359 मूल अधिकारों का निलंबन स्वतः नहीं करता । यह राष्ट्रपति को शक्ति देता है कि वह मूल अधिकारों के निलंबन को लागू करें । अनुच्छेद -358 केवल बाह्य आपातकाल ( जब युद्ध या बाहरी आक्रमण के आधार पर आपातकाल घोषित हो ) में लागू होता हैं न कि आंतरिक आपातकाल ( जब सशस्त्र विद्रोह के कारण आपातकाल घोषित हो ) के समय दूसरी ओर अनुच्छेद -359 बाह्य तथा आन्तरिक दोनों आपातकाल में लागू होता है । 2 . अन्य मूल अधिकारों का निलंबन : अनुच्छेद -359 राष्ट्रपति को आपातकाल में मूल अधिकारों को लागू करने के लिए न्यायालय जाने के अधिकार को निलंबित करने के लिए अधिकृत करता है । अतः 359 के अन्तर्गत मूल अधिकार नहीं अपितु उनका लागू होना निलंबित होता है । वास्तविक रूप में ये अधिकार जीवित रहते हैं केवल इनके तहत उपचार निलंबित होता है । यह निलंबन उन्हीं मूल अधिकारों से संबंधित होता है , जो राष्ट्रपति के आदेश में वर्णित होते हैं । जब राष्ट्रपति का आदेश प्रभावी रहता है तो राज्य उस मूल अधिकार को रोकने व हटाने के लिए कोई भी विधि बना सकता है या कार्यकारी कदम उठा सकता है । ऐसी किसी भी विधि या कार्य को इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती है कि यह संबंधित मूल अधिकार से साम्य नहीं रखता । इस विधि के प्रभाव में किये गये विधायी व कार्यकारी कार्यों को आदेश समाप्ति के उपरांत चुनौती नहीं दी जा सकती है । 44 वाँ संविधान संशोधन अधिनियम 1978 , अनुच्छेद -359 के क्षेत्र में दो प्रतिबंध लगाता है । प्रथम राष्ट्रपति अनुच्छेद -20 तथा 21 के अन्तर्गत दिये गये अधिकारों को लागू करने के लिए न्यायालय में जाने के अधिकार को निलंबित नहीं कर सकता है । यानी अपराध के लिए दोष सिद्धि के संबंध में संरक्षण का अधिकार ( अनुच्छेद -20 ) तथा प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार ( अनुच्छेद -21 ) , आपातकाल में भी प्रभावी रहता है । द्वितीय केवल उन्हीं विधियों को चुनौती से संरक्षण प्राप्त है जो आपातकाल से संबंधित है , उन विधियों व कार्यों को नहीं जो इनके तहत बनाये गये हैं । 

4 . अनुच्छेद -358 , अनुच्छेद -19 को आपातकाल की सम्पूर्ण अवधि के लिए निलंबित कर देता है जबकि अनुच्छेद -359 मूल अधिकारों के निलंबन की राष्ट्रपति द्वारा उल्लेख की गयी अवधि के लिए लागू करता है । यह अवधि सम्पूर्ण आपातकालीन अवधि या अल्पावधि हो सकती है । 

5. अनुच्छेद -358 संपूर्ण देश में तथा अनुच्छेद -359 सम्पूर्ण देश अथवा किसी भाग विशेष में लागू हो सकता है । 

6 . अनुच्छेद -358 , अनुच्छेद -19 को पूर्ण रूप से निलंबित कर देता है जबकि अनुच्छेद 359 , अनुच्छेद -20 व 21 के निलंबन को लागू नहीं करता है । 

7. अनु . 358 राज्य की अनु . – 19 के अन्तर्गत मूल अधिकारों से साम्य नहीं रखने वाले नियम बनाने का अधिकार देता है जबकि अनु . 359 केवल उन्हीं मूल अधिकारों के संबंध में ऐसे कार्य करने का अधिकार देता है , जिन्हें राष्ट्रपति के आदेश द्वारा निलंबित किया गया है । 

 अनुच्छेद -352 के अधीन बाह्य आक्रमण के आधार पर आपात की प्रथम घोषणा चीनी आक्रमण के समय 26 अक्टूबर , 1962 ई . को की गयी थी । यह उद्घोषणा 10 जनवरी , 1968 ई . को वापस ले ली गई । दूसरी बार आपात की उद्घोषणा 3 दिसम्बर , 1971 ई . को पाकिस्तान से युद्ध के समय की गई ( बाह्य आक्रमण के आधार पर ) । > तीसरी बार राष्ट्रीय आपात की घोषणा 26 जून , 1975 ई . को आन्तरिक गड़बड़ी की आशंका के आधार पर जारी की गयी थी । > दूसरी तथा तीसरी उद्घोषणा को मार्च , 1977 ई . में वापस ली गई ।

राज्यों में राष्ट्रपति शासन का क्या अर्थ है? ( अनुच्छेद -356 )  

 अनुच्छेद 356 के अधीन राष्ट्रपति किसी राज्य में यह समाधान हो जाने पर कि राज्य में सांविधानिक तंत्र विफल हो गया है अथवा राज्य संघ की कार्यपालिका के किन्हीं निर्देशों का अनुपालन करने में असमर्थ रहता है , तो आपात स्थिति की घोषणा कर सकता है । 

राज्य में आपात की घोषणा के बाद संघ न्यायिक कार्य छोड़कर राज्य प्रशासन के कार्य अपने हाथ में ले लेता है । राज्य में आपात उद्घोषणा की अवधि दो मास होती है । इससे अधिक के लिए संसद से अनुमति लेनी होती है तब यह छह मास की होती है । अधिकतम तीन वर्ष तक यह एक राज्य के प्रवर्तन रह सकती है । इससे अधिक के लिए संविधान में संशोधन करना पड़ता है ।

भारत में राष्ट्रपति शासन कितनी बार लगाया गया?

राष्ट्रपति शासन पहली बार 1951 में लगा था आजादी के बाद पंजाब वह राज्य था, जहां राष्ट्रपति शासन लगाया गया था। कांग्रेस में फूट की वजह से यहां 20 जून 1951 से 17 अप्रैल 1952 के बीच राष्ट्रपति शासन लगाया गया। आपातकाल के बाद 24 मार्च 1977 को मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने।

देश में अब तक 132 बार राष्ट्रपति शासन लगाया जा चुका है। इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते सबसे ज्यादा 51 बार राष्ट्रपति शासन लगाया गया था। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री रहते अब तक 10वीं बार राष्ट्रपति शासन लग चुका है। वहीं, रामनाथ कोविंद चौथी बार राष्ट्रपति शासन लागू कर चुके हैं।

मोदी के प्रधानमंत्री रहते कब कब लगा राष्ट्रपति शासन

 सर्वप्रथम 20 जुलाई , 1951 ई . में पंजाब राज्य में अनुच्छेद -356 का प्रयोग किया गया । ( भार्गव मंत्रीमंडल के पतन का कारण ) नोट : सर्वाधिक समय तक अनुच्छेद -356 का प्रयोग जम्मू – कश्मीर राज्य में रहा ( 19.07.1990 ई . से 09.10.1996 ई . तक ) । 

वित्तीय आपातकाल कहाँ से लिया गया?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 360 वित्तीय आपातकाल से संबंधित है। भारतीय संविधान ने वीमर संविधान (जर्मनी) और भारत सरकार अधिनियम, 1935 से आपातकालीन प्रावधानों को लिया।

 वित्तीय आपात ( अनुच्छेद -360 ) : 

अनु . 360 के तहत वित्तीय आपात की उद्घोषणा राष्ट्रपति द्वारा तब की जाती है , जब उसे विश्वास हो जाय कि ऐसी स्थिति विद्यमान है , जिसके कारण भारत के वित्तीय स्थायित्व या साख को खतरा है । 

वित्तीय आपात की घोषणा को दो महीनों के भीतर संसद के दोनों सदनों के सम्मुख रखना तथा उनकी स्वीकृति प्राप्त करना आवश्यक है । वित्तीय आपात की घोषणा उस समय की जाती हैं , जब लोकसभा विघटित हो , तो दो महीने के भीतर राज्यसभा की स्वीकृति मिलने के उपरांत वह आगे भी लागू रहेगी । किन्तु नवनिर्वाचित लोकसभा द्वारा उसकी प्रथम बैठक के आरंभ से 30 दिन के भीतर ऐसी घोषणा की स्वीकृति आवश्यक है ।  

वित्तीय आपातकाल की अधिकतम अवधि कितनी होती है?

इसकी अधिकतम समय – सीमा निर्धारित नहीं की गयी है । यानी एक बार यदि इसे संसद के दोनों सदनों से मंजूरी प्राप्त हो जाये तो वित्तीय आपात अनिश्चित काल के लिए तब तक प्रभावी रहेगा जब तक इसे वापस न लिया जाये ।  राष्ट्रपति वित्तीय आपात की घोषणा को किसी समय वापस ले  सकता है

वित्तीय आपात का प्रभाव 

1 . उच्चतम न्यायालय , उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों और संघ तथा राज्य सरकारों के अधिकारियों के वेतन में कमी की जा सकती है । 

2 .राष्ट्रपति आर्थिक दृष्टि से किसी भी राज्य सरकार को निर्देश दे सकता है । 

3 .राष्ट्रपति को यह अधिकार प्राप्त हो जाता है कि वह राज्य सरकारों को यह निर्देश दे कि राज्य के समस्त वित्त विधेयक उसकी स्वीकृति से विधानसभा में प्रस्तुत किये जाएँ । 

4 . राष्ट्रपति केन्द्र तथा राज्यों में धन संबंधी विभाजन के प्रावधानों में आवश्यक संशोधन कर सकते हैं । 

वित्तीय आपातकाल कितनी बार लगा?

 भारत के इतिहास में, वित्तीय आपातकाल की स्थिति को तीन बार घोषित किया गया है। दूसरा उदाहरण 3 दिसंबर 1971 से 21 मार्च 1977 के बीच था, जो मूल रूप से भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान घोषित किया गया था। बाद में इसे 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 के बीच तीसरी उद्घोषणा के साथ बढ़ाया गया।

FAQ

1.वित्तीय आपात कौन से अनुच्छेद में?

Ans अनुच्छेद 360 के तहत वित्तीय आपात की घोषणा राष्ट्रपति द्वारा

2. राष्ट्रीय आपातकाल कौन से अनुच्छेद में?

And अनुच्छेद 352

3. भारत में राष्ट्रपति शासन कौन से अनुच्छेद में?

Ans अनुच्छेद 356

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