ट्रांजिस्टर क्या है और कैसे काम करता है? | What is a transistor and how does it work in Hindi

 ट्रांजिस्टर ( Transistor ) क्या है


यदि एक ऐसे क्रिस्टल का निर्माण किया जाये जिसमें बहुत समीप दो PN जंक्शन हों तब एक जंक्शन की फारवर्ड वॉयस तथा दूसरे जंक्शन की रिवर्स वॉयस स्थिति में , दोनों जंक्शन में लगभग समान धारा प्रवाहित होती है । ऐसी युक्ति ट्रांजिस्टर कहलाती है । इसका आविष्कार जॉन बारडीन वाल्टर वाटेन ने किया । ट्रांजिस्टर एक अर्द्धचालक नियंत्रण युक्ति है । इसमें एक सिलिकॉन या जर्मेनियम का क्रिस्टल होता है ।


 ट्रांसिस्टर्स कितने प्रकार के होते हैं


ट्रांसिस्टर्स मुख्यत : दो प्रकार के होते हैं- 

PNP  तथा NPN ट्रांसिस्टर्स

धारा चालन के लिए प्रयुक्त आवेश वाहकों के आधार पर PNP तथा NPN ट्रांसिस्टर्स दो प्रकार के होते हैं । 


बाइपोलर ट्रांसिस्टर्स Bipolar Transistors 


जिन ट्रांसिस्टर्स में विद्युत धारा चालन ‘ होल्स ‘ तथा मुक्त ‘ इलैक्ट्रॉन्स ‘ दोनों प्रकार के आवेश वाहकों के द्वारा सम्पन्न होता है , वे बाइपोला ट्रांसिस्टर्स कहलाते हैं । 

यूनीपोलर ट्रांसिस्टर्स Unipolar Transistors 


जिन ट्रांसिस्टर्स में विद्युत धारा चालन , केवल एक ही प्रकार के आवेश वाहकों द्वारा सम्पन्न होता है , वे यूनीपोलर ट्रांसिस्टर्स कहलाते हैं । 

 चित्र में PNP तथा NPN ट्रांसिस्टर्स के ब्लॉक चित्र तथा प्रतीक दर्शाए गए हैं । ध्यान दें कि PNP ट्रांसिस्टर के एमीटर में तीर का चिना अन्दर की ओर तथा NPN ट्रांसिस्टर के एमीटर में तीर का चिन्ह बाहर की ओर होता है ।


ट्रांसिस्टर्स की संरचना Construction of Transistors 


ट्रॉसिस्टर्स निर्माण की प्रमुख विधियाँ निम्नवत् है 


संगम विधि Junction Method 


इस विधि में एक प्रकार के पदार्थ ( P या N ) के टुकड़े पर दूसरे प्रकार के तत्त्व को ऊष्मा प्रक्रिया से समावेशित किया जाता है । उदाहरणार्थ , PNP ट्रांसिस्टर निर्माण के लिए ‘ N- प्रकार ‘ के पदार्थ के एक पतले व छोटे टुकड़े में उसके दोनों ओर 500 से 600 ⁰C तापमान पर इण्डियम या गैलियम तत्त्व को अल्प मात्राएँ ऊष्मा प्रक्रिया के द्वारा प्रविष्ट करा दी जाती हैं । इस प्रकार -प्रकार के पदार्थ के टुकड़े के दोनों ओर ‘ P- प्रकार के दो क्षेत्र स्थापित हो जाते हैं । एक क्षेत्र को कुछ बड़ा रखा जाता है जो ‘ कलैक्टर ‘ बनता है और दूसरा क्षेत्र कुछ छोटा रखा जाता है जो एमीटर ‘ बनता है । तत्पश्चात् क्षेत्रो से एक – एक तार जोड़कर क्रमशः एमीटर , बेस तथा कलैक्टर नामक संयोजी सिरे तैयार कर दिए जाते हैं । अब इस युक्ति को उपयुक्त धात्विक काँच अथवा पोर्सलेन के खोल में बैठा दिया जाता है । 

इसी प्रकार NPN ट्रांसिस्टर निर्माण के लिए ‘ P- प्रकार ‘ के पदार्थ के एक टुकड़े में आसेंनिक या एन्टीमनी तत्त्व की अल्प मात्राएँ ऊष्मा प्रक्रिया के द्वारा प्रविष्ट कराई जाती है


बिन्दु – स्पर्श विधि Point – Contact Method 


इस विधि में एक प्रकार के पदार्थ के टुकड़े पर दूसरे प्रकार के तत्त्व की पतली छड़ों को समावेशित किया जाता है । उदाहरणार्थ , PNP ट्रांसिस्टर निर्माण के लिए N- प्रकार के पदार्थ के पतले व छोटे टुकड़े में 500 से 600 ° C तापमान पर इण्डियम या गैलियम तत्त्व युक्त स्टील की दो पतली छड़ें ऊष्मा प्रक्रिया के द्वारा प्रविष्ट करा दी जाती है । इस प्रकार ‘ N- प्रकार ‘ के पदार्थ के टुकड़े में दो P क्षेत्र स्थापित हो जाते हैं । जिनमें से एक क्षेत्र को कुछ बड़ा रखा जाता है जो ‘ कलैक्टर ‘ बनता है और दूसरा क्षेत्र कुछ छोटा रखा जाता है जो एमीटर बनता है । दोनों क्षेत्रों के मध्य का गैप ‘ N- क्षेत्र अथवा ‘ वेल ‘ का कार्य करता है । इसी प्रकार NPN ट्रांसिस्टर निर्माण के लिए ‘ P- प्रकार ‘ के पदार्थ के एक टुकड़े में आर्सेनिक या एन्टीमनी तत्त्व युक्त स्टील की छड़ें प्रविष्ट कराई जाती हैं । 


विसरित संगम विधि Diffused Junction Method 


इस विधि में एक प्रकार के पदार्थ के टुकड़े में दो छोटे गड्ढे बनाए जाते हैं और उन गड्ढों में विपरीत प्रकार का तत्त्व भर दिया जाता है । उदाहरणार्थ , PNP ट्रांसिस्टर निर्माण के लिए P- प्रकार के पदार्थ के टुकड़े के गड्ढो में इण्डियम या गैलियम तत्त्व उष्मीय प्रक्रिया से भर दिया जाता है । तत्पश्चात् तीनों क्षेत्रों से तीन संयोजी तार जोड़ दिए जाते है । इसी प्रकार NPN ट्रांसिस्टर्स निर्माण के लिए N- प्रकार के पदार्थ के गड्ढों में एन्टीमनी या आनिक तत्त्व भर दिया जाता है । इस विधि से निर्मित ट्रांसिस्टर एपीटैक्सियल ट्रांसिस्टर ( epitaxial transistor ) कहलाते हैं । पॉवर ट्रांसिस्टर्स तथा आई.सी. निर्माण में यही विधि प्रयोग की जाती है । 


प्लेनर ट्रांसिस्टर विधि Planer Transistor Method 


यह विधि विसरित संगम विधि के समान होती है । अन्तर केवल यह है कि इस विधि से निर्मित ट्रांसिस्टर की ऊपरी पर्त समतल रखी जाती है । संयोजक तार भी एल्युमीनियम फिलिंग विधि से तैयार किए जाते हैं । ये ट्रांसिस्टर्स सिलिकॉन नामक अर्द्धचालक से बनाए जाते हैं । और इनके कलैक्टर ‘ को ऊष्मा विकिरक ( heatradiator or heat sink ) से संयोजित कर दिया जाता है जिससे कि ये अधिक शक्ति पर कार्य कर सकें ।


ट्रांसिस्टर कैसे कार्य करता है


NPN ट्रांसिस्टर क्या है


ट्रासिस्टर में एमीटर बेस संगम को फॉरवर्ड बायस तथा बेस कलेक्टर संगम को रिवर्स बायस प्रदान को जाली है । एमीटर पर आरोपित ऋण आवेश , ऋणावेशी ‘ मुक्त इलेक्ट्रॉन्स ‘ को विकर्षित करता है । दूसरी ओर बेस पर आरोपित धन आवेश होल्स ‘ को विकर्षित करता है और ‘ मुक्त इलेक्ट्रॉन्स ‘ को आकर्षित करता है । इस प्रक्रिया में कुछ मुक्त इलैक्ट्रॉन्स बेस क्षेत्र में प्रवेश कर जाते है । इनमें से कुल ‘ मुक्त इलैक्ट्रॉन्स तो होल्स के साथ पुनर्मिलन ‘ क्रिया करते है और शेष कलेक्टर के धन आवेश द्वारा कलैक्टर क्षेत्र में आकर्षित कर लिए जाते है । इस प्रकार , ‘ मुक्त इलेक्ट्रॉन्स ‘ का प्रवाह एमीटर से कलैक्टर की ओर होने लगता है परन्तु बेस क्षेत्र से गुजरने कले मुक्त इलैक्ट्रॉन्स ‘ को संख्या का निर्धारण बेस बायस द्वारा सम्पन्न होता है । परिपथ में एमीटर धारा   का मान कलैक्टर धारा  तथा बेस धारा  के मानो के योग के बराबर होता है । 

  विद्युत धारा का प्रवाह , मुक्त इलेक्ट्रॉन्स ‘ प्रवाह के विपरीत दिशा में होना माना जाता है । 


PNP ट्रांसिस्टर क्या है


ट्रांसिस्टर में भी एमीटर – बेस संगम को फॉरवर्ड बायस तथा बेस कलैक्टर संगम को रिवर्स बायस प्रदान की जाती हैं । एमीटर पर आरोपित आवेश , धनावेशी होल्स ‘ को विकर्षित करता है । दूसरी ओर बेस पर आरोपित ऋण आवेश ‘ मुक्त इलैक्ट्रॉन्स ‘ को विकर्षित करता है । इस पर में कुछ होल्स ‘ बेस क्षेत्र की ओर खिसक जाते हैं । इनमें से कुछ होल्स ‘ तो मुक्त इलैक्ट्रॉन्स ‘ के साथ पुनर्मिलन क्रिया करते है और हो कलैक्टर के ऋण आवेश द्वारा कलैक्टर क्षेत्र में आकर्षित कर लिए जाते है । इस प्रकार होल्स ‘ का प्रवाह एमीटर से कलेक्टर की ओर से लगता है । परन्तु बेस क्षेत्र से होकर गुजरने वाले होल्स ‘ की संख्या का निर्धारण बेस बायस द्वारा सम्पन्न होता है । परिपथ में एमीटर धारा का मान कलैक्टर धारा तथा बेस धारा के मानों के योग के बराबर होता है । 

 ध्यान रहे कि ‘ होल्स ‘ का प्रवाह वास्तव में नहीं होता क्योंकि ‘ होल्स ‘ केवल ‘ ‘ रिक्तियाँ हैं , जो ‘ मुक्त इलैक्ट्रॉन्स द्वारा भरी जाती रहती है और रिक्त होती रहती हैं । इस प्रकार ‘ रिक्तियाँ ‘ , खिसकती ( drift ) रहती है । विद्युत धारा का वास्तविक चालन केवल ‘ मुक्त इलैक्ट्रॉन्स के द्वारा सम्पन्न होता है । 

PNP ट्रांसिस्टर में विद्युत धारा का प्रवाह , होल्स ‘ के कथित प्रवाह को दिशा में होता है । 

 फॉरवर्ड बायस- p- पदार्थ को धन ( + ) आवेश तथा N- पदार्थ को ऋण ( – ) आवेशा 

रिवर्स बायस- P- पदार्थ को ऋण ( – ) आवेश तथा N- पदार्थ को धन ( + ) आवेशा 


 ट्रांसिस्टर्स के प्रयोग में सावधानियाँ 


ट्रांसिस्टर्स को किसी सर्किट में लगाने अथवा परिवर्तित करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए 

1. ट्रांसिस्टर की सोल्डरिंग में 15W से 35W तक का सोल्डरिंग आयरन प्रयोग करना चाहिए । इससे अधिक वाटेज के सोल्डरिंग आयरन से ट्रांसिस्टर को अधिक ऊष्मा मिलेगी और वह नष्ट हो सकता है । 

2. ट्रांसिस्टर परिवर्तन के लिए ठीक उसी नम्बर का अथवा तुल्य ( equivalent ) नम्बर का ट्रांसिस्टर प्रयोग करना चाहिए । 

3. ट्रांसिस्टर को PCB से उखाड़ने के लिए उसकी ‘ लीड्स ‘ के छिद्रों से सोल्डर हटा देना चाहिए । इस कार्य के लिए डि – सोल्डरिंग – गन का प्रयोग करें । 

4. सोल्डरिंग करते समय कनैक्टिंग – लीड को नोज – प्लायर से पकड़े , जिससे कि सोल्डरिंग आयरन की ऊष्मा , ट्रांसिस्टर के अन्दर न पहुँचे । 


ट्रांसिस्टर संयोजकों की पहचान 


 विश्व में असंख्य ट्रांसिस्टर – निर्माता हैं और वे भिन्न – भिन्न आकार – प्रकार में ट्रांसिस्टर्स का निर्माण करते है । वास्तव में किसी ट्रांसिस्टर के संयोजकों की पहचान तथा उसका विवरण ( specification ) जानने के लिए ‘ ट्रांसिस्टर डाटा ‘ नामक पुस्तक की आवश्यकता होती है । कुछ सामान्य प्रकार के ट्रांसिस्टर्स की पहचान निम्न प्रकार से की जा सकती है

1. ट्रांसिस्टर की बेलनाकार बॉडी पर किसी रंग की बिन्दी – बिन्दी के निकट वाला संयोजक कलैक्टर है । 

2. ट्रांसिस्टर की बेलनाकार बॉडी के किनारे पर उभरा हुआ धात्विक भाग – उभरे भाग के निकट वाला संयोजक एमीटर है 

3. एक संयोजक का अन्य संयोजकों से अधिक दूरी पर होना – वह संयोजक कलेक्टर है । 

4. ट्रांसिस्टर के साथ धात्विक ऊष्मा विकिरक खाल जुड़ा होना – धात्विक खोल कलैक्टर है । 

5. कुछ ट्रांजिस्टर में एक चौथा संयोजक भी होता है जो शील्डिग के लिए होता है


ट्रांसिस्टर  का परीक्षण कैसे किया जाता है


इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मरम्मत करते समय पुजो को बदलने की आवश्यकता होती है । किसी खराब ट्रांसिस्टर के स्थान पर नया ट्रांसिस्टर लगने से पूर्व नए ट्रांसिस्टर का परीक्षण आवश्यक है । यह परीक्षण अग्रवत् दो प्रकार से किया जा सकता है । 


परिपथ से बाहर रखकर परीक्षण Out of Circuit Testing 


यह परीक्षण मल्टीमीटर के द्वारा किया जाता है । PNP तथा NPN प्रकार के ट्रांसिस्टर्स के लिए मल्टीमीटर की परीक्षा छड़ो ‘ को भिन्न भिन्न युक्ता अनुसार संयोजित किया जाता है । यह परीक्षण केवल एक अनुमान भर होता है । 


PNP ट्रांसिस्टर परीक्षण PNP Transistor Testing 


मल्टीमीटर की धन परीक्षा छड़ को ट्रांसिस्टर के बेस से संयोजित करें तथा ऋण परीक्षा छड़ ‘  को क्रमश : ‘ एमीटर ‘ तथा ‘ कलैक्टर ‘ से संयोजित करें । यदि मल्टीमीटर प्रत्येक परीक्षण में ‘ निम्न प्रतिरोध दर्शाता है , तो ट्रांसिस्टर ‘ अच्छा ‘ है । यदि मल्टीमीटर प्रत्येक अथवा एक परीक्षण में ‘ उच्च प्रतिरोध दर्शाता है , तो वह ‘ खुला परिपथ ‘ ( open – circuited ) होना सम्भावित है । 


NPN ट्रांसिस्टर परीक्षण NPN Transistor Testing 


मल्टीमीटर को ऋण ( परीक्षा छड़ ) को ट्रांसिस्टर के ‘ बेस ‘ से संयोजित करें तथा धन ‘ परीक्षा छड़ ‘ को क्रमश : ‘ एमीटर ‘ तथा ‘ कलैक्टर ‘ से संयोजित करें । यदि मल्टीमीटर प्रत्येक परीक्षण में निम्न प्रतिरोध दर्शाता है तो ट्रांसिस्टर ‘ अच्छा है । यदि मल्टीमीटर प्रत्येक अथवा एक परीक्षण में ‘ उच्च प्रतिरोध ‘ दर्शाता है वह खुला परिपथ ‘ होना सम्भावित है । 


परिपथ में संयोजित कर परीक्षण In Circuit Testing 


 किसो ट्रांसिस्टर का वास्तविक परीक्षण उसे इलैक्ट्रॉनिक उपकरण में प्रतिस्थापित कर और उपकरण के सफल प्रचालन द्वारा ही किया जा सकता है । ट्रांसिस्टर को किसी उपयुक्त परिपथ में प्रतिस्थापित कर परीक्षण करना , ‘ इन – सर्किट परीक्षण ‘ कहलाता है । 

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