ऑपरेटिंग सिस्टम क्या है और कैसे काम करता है? | What is an operating system and how does it work in Hindi

ऑपरेटिंग सिस्टम क्या है

इसको हम कम्प्यूटर की आत्मा कह सकते है तथा इसके बिना कम्प्यूटर एक मृत मशीन के समान है। ऑपरेटिंग सिस्टम (संक्षिप्त में ओ.एस.) एक मास्टर कंट्रोल प्रोग्राम होता है। यह कम्प्यूटर को चलाता है व एक शेड्यूलर की तरह काम करता है सीपीयू से कम्प्यूटर के विभिन्न भागों तक जाने वाले सिम्नल्स् को यह नियंत्रित करता है।

यह एकमात्र प्रचम प्रोग्राम होता है जोकि कम्प्यूटर के चालू होते ही सर्वप्रथम मेमोरी में लोड़ (कॉपी) होता है।

ऑपरेटिंग सिस्टम किसी भी कम्प्यूटर सिस्टम का एक महत्वपूर्ण अवयव होता है क्योंकि यह सभी एप्लिकेशन प्रोग्राम्स् के लिये एक स्टेंडर्ड बनाता है। सभी प्रोग्राम इस प्रकार से लिखे जाते हैं कि वे ऑपरेटिंग सिस्टम से बात कर सके PC के लिये कुछ प्रचलित ऑपरेटिंग सिस्टमस् जैसे MS-DOS, OS/2 Warp, Windows 95 a UNIX है मेकिनटोस Finder व Multifinder का उपयोग करता है। डिजिटल सिस्टम VMS व UItrix का उपयोग करते हैं। IBM मेनेफ्रेम कम्प्यूटरस् MVS, VM या DoS/VSE का उपयोग करते हैं।

ऑपरेटिंग सिस्टम का वर्गीकरण :

ऊपर दिये समस्त कार्य ऑपरेटिंग सिस्टम करता है । परन्तु पूरा ऑपरेटिंग सिस्टम (अर्थात् इसके सभी प्रोग्राम) एक ही समय में कम्प्यूटर की मेमोरी (रेम ) मैं लोड (रखा जाए) हो जाए ऐसा नहीं होता है। इसलिए हम ऑपरेटिंग सिस्टम को दो भागों में बाँटते हैं पहला वह भाग जो कि कम्प्यूटर की मेमोरी में हमेशा रहता है,रेसिडेन्ट प्रोग्राम/रूटिन या न्यूक्लियस या कर्नल या सुपरवाइजर कहलाता है यह कर्नल, कम्प्यूटर के समस्त बेसिक कार्य जैसे मेमोरी व फाइलों का उचित वितरण, प्रोग्रामों की शुरूआत व उनको खत्म करना, इनपुट, आऊटपुट से सम्बन्धित कार्य, इन्टरप्ट हेंडलिंग इत्यादिकरता है।

दूसरा भाग जो कि मेमोरी के पास हमेशा नहीं रहता है, बल्कि समय-समय पर (जब उसकी जरूरत होती है) मेमोरी में लाया जाता है तथा मेमोरी से हटा दिया जाता है, ट्रांसएण्ट प्रोग्राम कहलाते हैं।

ऑपरेटिंग सिस्टम को हम, निम्न तीन भागों में विभाजितकर सकते है –

(1) सिंगल यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम

(2) मल्टी यूजर औपरेटिंग सिस्टम

(3) नेटवर्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम

(1) सिंगल पूजर ओएस

एक ऐसा सिस्टम जो कि एक समय में एक ही व्यक्ति उपयोग कर सके। डस सिस्टम-7.5,OS/2 व विन्डोस-एनटी इसके उदाहरण हैं।

(2) मल्टीपूजर ओएस :

 एक ऐसा सिस्टम जो कि एक से ज्यादा यूजर को उपयोग की अनुमति देता है यूनिक्स तथा इसके डेरिबेटिवस् (लाइनेक्स, जेनिक्स) मल्टीपूजर सिस्टथ के उदाहरण है।

(3) नेडवर्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम :

 इन सिस्टम् का उपयोग‌ कम्प्यूटर का नेटवर्क (समूह) बनाने के लिये किया जाता। है, जिसके द्वारा‌ कम्प्यूटरों के बीच संचार की सुविधा हो (कुछ विशेष हार्डवेयर उपकरणों की मदद से)।

इसके उदाहरण NOVEL 4.1, Netware Lite. Artisoft’s LAN tastic इत्यादि। 

ऑपरेटिंग सिस्टम कितने प्रकार के होते हैं? 

मशीन के आर्किटेक्चर व कान्फीम्युरेशन (जैसे मेलफेय मिनी, माइक्रो या सुपर कम्प्यूटर) के आधार पर कई तरह के ऑपरेटिंग सिस्टम्स् उपयोग किये जाते है। कुछ ऑपरेटिंग सिस्टम नेटवर्किंग के लिये जरूरी है इस ऑपरेटिंग सिस्टम्स् कहते है

निम्नलिखित ऑपरेटिंग सिस्टम बहुत प्रसिद्ध हुए हैं

(1)OS/2:

SAA (सिस्टम एप्लीकेशन आर्किटेक्चर) मॉडल के अन्तर्गत OS/2, इन्टेल प्रोडक्ट्स के लिये सारवर प्लेटफार्म देता है, जिसे IBM ने बनाया है। OS/2 सरवर प्लेटफार्म के लिये आवश्यक स्टोरेज प्रोटेक्शन व प्रिम्प्टीव मल्टीटास्किंग सविर्सेस प्रदान करता है। बहुत से डेटाबेस व एप्लीकेशन प्रोडक्ट्स OS/2 पर उपयोग किये जाते हैं। OS/2 सिर्फ लेन मैनेजर व लेन, सरवर NOS को ही सपोर्ट करता है। 

(2) विन्डोस NT:

माइक्रोसाफ्ट के द्वारा सितम्बर 1993 में विन्डोस NT लांच किया गया, तत्पश्चात् सरवर ऑपरेटिंग सिस्टम की फील्ड में एक अद्वितीय स्थान बन गया। माइक्रोसाफ्ट व IBM के द्वारा बनाया गया 08/2, यूनिक्स के तुलना में एक अकेला स्टेण्डर्ड नहीं बन पाया, जितनी कि उम्मीद थी। NT, प्रिम्प्टीव मल्टीटास्किंग सर्विसेस देता है, जो कि फंक्शनल सरवर के लिये आवश्यक है। यह विन्डोज क्लाईट्स को अद्भुत सहयोग देता है व उन आवश्यक स्टोरेज प्रोटेक्शन सविर्सेस को भी शामिल करता है, जो कि एक विश्वसनीय सरवर ऑपरेटिंग सिस्टम के लिए जरूरी हो। इसके द्वारा दी गई लेबल की

सिक्यूरिटी, OS/2 व बहुत से यूनिक्स प्लेटफार्म की तुलना में बहुत अधिक होती है। सन् 1994 में इससे कुछ एप्लीकेशन व कुछ आवश्यक विषमताएं शामिल की गईं, जिससे कि क्रिटिकल (कठिन) बिजनेस एप्लीकेशन के लिये एक सशक्त इंडस्ट्रीयल प्लेटफार्म दिया जा सके। माइक्रोसाफ्ट की लोकप्रियता व मार्केट की शक्ति के कारण बहुत से ऑर्गेनाइजेशन्स ने इसे अपनी पसंद का सरवर OS बनाया।

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(3) MVS:

IBM ने MVS प्लेटफार्म बड़े एप्लाझशन्स के लियेदिया। ऐसी बहुत सी वर्तमान एप्लीकेशन सविर्सेस जो कि ऑर्गेग्नाइजेशन ने खरीदी थी, सिस्टम 370 के काम्पिटिबल हार्डवेयर पर आधारित थी, MVS की सपोर्ट करती थी। SNA जो कि बहुत से ऑर्गेनाइजेशन के लिये एक स्टेण्डर्ड SNA नेटवर्किंग वातावरण है, वह भी MVS का अवयव है। IBM ने SAA के छाते के नीचे लेबल प्रोपरायटरी सिस्टम को पसंद किया। SAA का उद्देश्य IBM के सभी प्लेटफार्स पर सभी सर्विसेस काम्पेटिवल तरीके से दे सके (अर्थात् का सिंगल सिस्टम इमेज)।

MVS के अंदर ऐसे लेन सरवर, जो कि नेटिवली चल रहा हो को सपोर्ट करने का IBM का वादा है। यह एक बहुत ही आकर्षक विकल्प उन ऑर्गेनाइजेशन्स के लिये है, जिन्होंने MVS एप्लीकेशन्स में बहुत ज्यादा धनराशि लगा रखी है। सिस्टम 370 काम्पेटिवल प्लेटफार्स जो कि MVS का उपयोग कर रहे हैं, कि डेटा स्टोरेज क्षमता बहुत अधिक है, के साथ-साथ सर्विसेस के लिये भी MVS का उपयोग बड़े ऑर्गेनाइजेशन के लिये बहुत लाभदायक है। MVS, DB2 व LU6.2 का उपयोग करके बहुत ही सशक्त डेटाबेस सरवर देता है। LU6.2 के लिये इंडस्ट्री का अत्याधिक सपोर्ट, DB2 डेटाबेस को क्लाईंट/सरवर के द्वारा दिये जाने वाले व्यू के रूप में रिक्वेस्ट करता है। 

(4) VMS (OPENVMS):

सरवर प्लेटफार्म के लिये DEC (डिजिटल इक्यूपमेन्ट कॉरपोरेशन) ने OPENVMS के रूप में एक विकल्प दिया। इस प्रतिस्पर्धा की दुनिया में VMS का बहुत लम्बा इतिहास, डिस्ट्रिब्यूटेड कम्प्यूटींग फील्ड व जिसमें ऐसे बहुत से गुण, जो कि क्लाईट सरवर मॉडल के लिये आवश्यक है, के लिये रहा है।परन्तु DEC इस टेक्नोलॉजी के महत्व के बारे मे बहुत उदासीन था और काफी समय बाद अब वह इस फील्ड‌ में एक वास्तविक विक्रेता बना। DEC, लेन मैनेज डैरिवेटिव्स प्रोडक्ट जिसे पाथवर्क्स कहते हैं, के द्वारा स्वयं की सरवर इन्टफेसिंग देता है।

पाथवर्क्स, VAX R RISC एल्फा RXP पर स्वाभाविक रूप से चलता है। यह एक बहुत ही आकर्षक कान्फीम्युरेशन है, क्योंकि OPENVMS, नेटवेयर व लेन मैनेजर का संयुक्त समूह एक ही प्रोसेसर पर जो एप्लीकेशन, डेटाबेस व फाइल सर्विसेस प्रदान करता है,

Digital उसे हम एक्सेस कर सकते हैं। डिजिटल व माइक्रोसाफ्ट ने संयुक्त रूप से समझौते की घोषणा कि जिसके तहत विन्डोज, विन्डोज NT, पाथवर्क्स व OPENVMS निर्बाध रूप से एकीकृत किया जा सके। इससे OPENVMS के कस्टमर्स को क्लाईट / यावर मॉडल पर आने में बड़ी सुविधा हुई।

VAX OPENVMS का डेटाबेस प्रोडक्ट्स जैसे RDB, Sybase, Ingres व Oracle को सपोर्ट, क्लाईंट/सरवर एप्लीकेशन के लिये एक प्रभावी डेटाबेस सरवर देता है। बहुत से ऑर्गेनाइजेशन का VAX हार्डवेयर व DECnet नेटवर्किंग में बहुत इन्वेस्टमेन्ट्स है। अत: ऐसे में इस आर्किटेक्चर को क्लाईट/सरवर के रूप में उपयोग करना इस इन्वेस्टमेन्ट्स का बहुत अच्छा उपयोग है। DECnet, सिंगल सिस्टम इमेज मॉडल के लिये एक आदर्श सपोर्ट देता है।

(5) यूनिक्स :

 क्लाईट/सरवर मॉडल में यूनिक्स सबसे शुरुआत का खिलाड़ी है। निश्चित रूप से मूनिक्स की डिस्ट्रीब्यूटेड कम्प्यूटींग फील्ड में व इसकी ओपन इन्टरफेस के इतिहास के कारण सरवर के लिये यह सबसे उपयुक्त पसंद है यदि हम यह समझना चाहते हैं कि यह ओपन ऑपरेटिंग सिस्टम कैसे है, तो हमें इसको अवयव देखना होंगे। यूनिक्स विचारधारा का जन्म लगभग 1970 के दशक में AT&T के एम्प्लाइज ने दी, जो कि उन सॉफ्टवेयर डेवलेपर्स के लिये एक ऑपरेटिंग वातावरण था, जो दिन प्रतिदिन के नये कम्प्यूटर्स व डेवलेपमेन्ट टूल्स की कमी से भयभीत व आशंकित रहते थे। यूनिक्स ऑर्किटेक्चर का मुख्य उद्देश्य यूनिक्स कर्नल के द्वारा दी जाने वाली सर्विसेस का एक स्टेण्डर्ड समूह परिभाषित करना था। इन सर्विसेस का उपयोग शैल करता है, जो कि एक कमांड लाइन इन्टरफेस देता है। इसकी कार्यशीलता को विशेष लाइब्रेरी प्रोग्राम्स की मदद से बढाया जा सकता है।

एप्लीकेशन का निर्माण प्रोग्राम लाइब्रेरी व कस्टम कोड की मदद से किया जा सकता है। यूनिक्स की ताकत व उसकी माँग कर्नल व शैल की एक कॉमन परिभाषा में शामिल है और साथ ही बहुत से इसके द्वारा उपलब्ध व निर्मित सॉफ्टवेयर में भी। इन स्टेण्डर्ड पर आधारित एप्लीकेशन्स को बहुत से हार्डवेयर प्लेटफार्म पर ले जाया जा सकता है। 

वास्तविक यूनिक्स का उद्देश्य बहुत विस्तृत था और इसे प्राप्त किया गया सिर्फ इस बात को छोड़कर कि वास्तविक ऑपरेटिंग सिस्टम AT&T के संरक्षण में डेवलेप किया गया। इसके परिणाम स्वरूप पोर्टेबल प्लेटफार्म का वास्तविक विकल्प से समझौता करना पड़ा। नये प्रोडक्ट्स वास्तव बहुत अच्छे थे एक-दूसरे से काम्पीटीबल नहीं थे या वास्तविक क्रियान्वयन के अनुरूप नहीं थे। 1980 के दशक के मध्य यूनिक्स के बहुत से वरशन्स और अधिक क्रियाशीलता के साथ मार्केट‌में आये। सन् 1986 में IBM के द्वारा बनाये गये यूनिक्स डेरिवेटिव, जिसका नाम AIX था, के कारण विवाद में पड़ गया। 

अन्त में कम्प्यूटींग समूह ने यूनिक्स कर्नल व शैल कैसा होगा व विशेष APIs की परिभाषा क्या होगी, एकमत के द्वारा घोषित की। चित्र भविष्य के स्टेण्डर्ड यूनिक्स ऑपरेटिंग सिस्टम आर्किटेक्चर के अवयवयों को दर्शाता है।

(6) लाइनेक्स :

एक ऐसा ऑपरेटिंग सिस्टम जो यूनिक्स फेमिली के आपरेटिंग सिस्टम के सदस्य के रूप में विकसित हुआ। यह POSIX -कम्प्लाईंट व इन्टरनेट की साईट्स् पर सरलता से उपलब्ध है

एक विशेष लाइनेक्स आपरेटिंग सिस्टम में सामान्यतः लाइनेक्स कर्नल व उसकी सर्पोंटिंग फाईल्स, GNU C/C++ कम्पाईलर, x विन्डोज ग्राफिकल इन्टरफेस का xfree 86 वरशन, अपाची वेब सरवर व अन्य ट्रल्स् और यूटिलिटिस् के साथ-साथ प्रत्येक के सोर्स कोड भी उपलब्ध रहते हैं । लाइनेक्स को हजारों यूजरस् व डेवलेपरस के नेटवर्क द्वारा सपोर्ट किया जाता है जो लगातार इसकी कार्यक्षमता व फंक्शनलिटी में सुधार कर रहे हैं।

(7) मेकिनटोस (मेक ओएस) :

एक पसर्नल कम्प्यूटिंग प्लेटफार्म जो कि एप्पल द्वारा 1984 में विकसित किया गया। एप्पल मेकिनटोस ने पर्सनल कम्प्यूटर मार्केट के लिये बहुत से नये-नये यूजर इन्टरफेस विकसित किये। ये सभी नये-नये विकास 1970 में स्टेनफोर्ड रिसर्च इंस्टिट्यूट व जिरॉक्स पॉलो अल्टो रिसर्च सेंटर (जिरॉक्स PARC) में किये । जिसमें ग्राफिकल यूजर इन्टरफेस (GUI), माऊस क्लिकेबल प्रोग्राम आईकान्स् व रिसाईजेबल विन्डोज मिल है। 

मेकिनटोस ऑपरेटिंग सिस्टम वास्तव में सिस्टम कहलाता था। अब वह (मैक औएस) के नाम से जाना जाता है। माइक्रोसॉफ्ट विन्डोज की तुलना में इसका मार्केट शेयर बहुत ही कम है। 

(৪) विन्डोज – 95 :

यह माइक्रोसॉफ्ट का बहुत ही पापुलर 32- बिट डेस्कटॉप आपरेटिंग सिस्टम है, जिसने विन्डोज 3.1 की जगह ली। विन्डोज 95 को घर, ऑफिस व व्यापार में उपयोग के लिये बनाया गया था। इसमें MS-DOS व विन्डोज 3.1 जैसे 16-विट आपरेटिंग सिस्टम की सभी सुविधाएँ जगलब्ध थी।

विडोज-95 में निम्नलिखित गुण शामिल है

1. एक पुनःनिर्मित GUI जिसमें डेस्कटॉप सकवार, स्टार्टबटन व कान्टैक्स्ट मेन्युज इत्यादि को कान्फियुर कले कीसुविधा।

2. MS-DOS व 16-बिट विन्डोज एप्लिकेशन के साथ उपयोग में आने वाले हार्डवेयरसू के साथ काम्मेटिविलिटी।

3. डिवाईसेस व सर्विसेस के लिये प्रोटेक्टेड मूड मैनेजोेंट केलिये 32-बिट वरचुअल डिवाईज ड्राइवरस् (VAD8) । विन्डोज 3.1 के को ऑपरेटिव मल्टिटास्विंग विधि की जगह प्रिम्पटीव मल्टिटास्किंग कर्नल जोकि MS DO8 व विन्डोंज 3.2 दोनों के एप्लिकेशन को एक साथ कर सके

4. पूरी तरह से एकीकृत 32-बिट डिस्क, नेटवर्क व प्रट सबसिस्टम्

5. माइक्रोसाफ्ट नेटवर्कर, नोवेल नेटवेयर व बनियान विनित इत्यादित के लिये एकीकृत बिल्ट-इन साफ्टवेयर की सुविधा। बड़े फाइल के नाम को स्पोर्ट।

6. हार्डवेयर के ऑटोमेटिक इन्स्टालेशन व कान्फियुरेशन केलिये प्लग एण्ड प्ले सपोर्ट।

7. मोबाइल यूजरस् के लिये एडवांस पॉवर मैनेजमेंट (APM)सपोर्ट।

8. Emall के लिये इंटिप्रेटेड विद्डोज मैसेजिंग।

9. इन्टरनेट कनेक्टिविटी व रिमोट एक्सेस रार्विस (RAS) कनेक्टिविटी के लिये इंटिप्रेटेड डॉयलऑॅप नेटवर्किग की सुविधा

10. मल्टिमीडिया साऊंड व बौडियो एन्लिकेशनरा के लिएइंटिग्रेटेड रापोर्ट ।

11. माइक्रोसॉफ्ट इन्टरनेट एक्सप्लोर त इंटिप्रटेड सेब ग्राउजरकी सुविधा।

प्रमुख ऑपरेटिंग सिस्टम के नाम

  • Windows OS
  • Mac OS
  • Linux OS
  • Ubuntu
  • Android OS
  • iOS
  • MS-DOS
  • Symbian OS

ऑपरेटिंग सिस्टम के मूल कार्य क्या है

यह प्रोग्राम का ऐसा समूह है, जिसके द्वारा हम कम्प्यूटर के समस्त क्रियाकलापों को संचालित करते हैं, अत: यह एक मास्टर प्रोग्राम होता है। ऑपरेटिंग सिस्टम के निम्न मुख्य कार्य होते हैं –

(a) मेमोरी मैनेजमेंट :

 यह किसी प्रोग्राम (यूजर या सिस्टम) या डेटा के लिये प्रायमरी तथा सेकण्डरी मेमोरी का वितरण तय करता है।

(b) प्रोसेसर मैनेजमेंट :

 यह निर्देशों व प्रोग्रामों को उनके क्रियान्वयन के लिये प्रोसेसर को भेजता या पुनः प्राप्त करता है।

(c) फाइल मैनेजमेंट : 

यह प्रोग्राम किसी भी डेटा या प्रोग्राम को फाइल के रूप में संग्रह करता है तथा इस फाइल पर कई तरह से प्रक्रियाएँ करता है।

(d) इनपुट/आऊटपुट मैनेजमेंट :

 यह इनपुट/आऊटपुट‌ उपकरणों के लिये उचित कार्य निर्धारण करता है।

(e) सिक्यूरिटी मैनेजमेंट :

 यह संग्रहित डेटा को सुरक्षा प्रदान करता है।

(f ) इन्टिग्रिटी मैनेजमेंट:

 यह डेटा को एकीकृत सूप में (अर्थात कोई डेटा एक-दूसरे को इन्टरपियर नहीं करता है।) संग्रह करके रखता है।

(g) ट्रांसलेट मैनेजमेंट :

यह हमारे द्वारा दिये गये कमांइस व कम्प्यूटर हार्डवेयर के बीच अनुवादक का कार्य करता है।

(h) कम्युनीकेशन मैनेजमेंट : 

यह कम्प्यूटर व उपयोगकर्ता या कम्प्यूटर व कम्प्यूटर के बीच संसार की सुविधा देता है।

(i) प्रोडक्शन/स्पायल मैनेजमेंट :

 यह फ्लॉपी पर ट्रेक्स,‌सेक्टरस, फेट्स व अन्य डिबगिंग संदेशों का निर्माण करता है व फ्लॉपी के पुराने फारमेट व डेटा को नष्ट भी करता है।

(j) प्रोसेस मैनेजमेंट : 

प्रोसेस मैनेजमेंट कई तरह की प्रकियाओं को संचालित करता है, जैसे बैच प्रोसेसिंग, मल्टी प्रोग्रामिंग, मल्टीयूजर, मल्टीटॉस्किंग इत्यादि।

ऑपरेटिंग सिस्टम के कुछ महत्वपूर्ण विशेषताएं

(1) धेच प्रोसेसिंग

(2) मल्टीप्रोग्रामिंग

(3) मल्टीपूजर

(4) मल्टीप्रोसेसिंग

(5) मल्टीटास्किंग

1. बेच प्रोसेसिंग या

(स्पेशल प्रोसेसिंग/सिक्वेंशियल प्रोसेसिंग/ ऑफ-लाइन प्रोसेसिंग/ स्टेक्ड जॉप प्रोसेसिंग)

पुराने समय में माइक्रो प्रोसेसर की गति (कार्य की तुलना में) बहुत अधिक होती थी व जब इससे एक-एक काम करवाते थे तब इसका पूरी तरह उपयोग नहीं हो पाता था।इसलिए यह सुस्त अवस्था में रहता था इस समस्या की बहुत हद तक कम करने के लिये ऑपरेटिंग सिस्टम का निर्माण किया गया बैच प्रोसेसिंग में प्रोग्राम का स्टेक (एक के बाद एक क्रमानुसार समूह) कम्प्यूटर को दिवा जाता है, तब ओसम की स्वत: एक के बाद एक कार्य करने की क्षमता के गुण के द्वारा इन समस्त प्रोग्रामों का क्रियान्वयन एक के बाद एक होता जाता है। इससो क्रमश: एक के बाद एक, प्रोग्राम को मेमोरी में रखना वा हटना, इसकी आवश्यकता नहीं पडताहै। इससे समय की बचत होती है बेच प्रोग्राम हमेशा एक के बाद एक सत्र ही क्रियान्वित होते हैं इस बीच में यूजर कई भी व्यवधान उत्पन्न नहीं कर सकते हैं परन्तु इस बैच प्रोसेसिंग को और अधिक उपयोगी व गतिशील बनाने के लिए दो तकनीक का उपयोग किया जाता है, वे इस प्रकार हैं –

(i) प्रोग्राम कन्ट्रोल लेंग्वेज (पीसीएल)

(ii) स्पूल

(i) प्रोग्राम कंट्रोल लेंग्वेज

जब कम्प्यूटर को प्रोग्रामों का एक बैच दिया जाता है, तब सबसे मुख्य समस्या यह होती है कि कम्प्यूटर प्रोग्रामों में अंतर नहीं कर पाता है कि कौन सा प्रोग्राम कहाँ खत्म हुआ है या कहाँ से प्रारंभ हुआ है तथा किसी विशेष प्रोग्राम को कौन-सा इन्टरप्रिंटर या कम्पाईलर हार्डवेयर उपकरण आवश्यक है। इस समस्या के समाधान के लिये प्रत्येक प्रोग्राम से पहले हम कुछ विशेष निर्देश लिखते हैं, जो उपयुक्त सभी समस्याओं का समाधान करके कार्य को सुचारू रूप से चलाते हैं। ये दिये गए निर्देशों का समूह ही प्रोग्राम कंट्रोल लेंग्वेज या जॉब कंट्रोल लेंग्वेज कहलाता है। जब एक प्रोग्राम लिखा जाती है, तब उसी के साथ ही यह पीसीएल भी उचित क्रम में लिखी जाती है तथा दोनों को मिलाकर ही स्टेक बनाया जाता है व कम्प्यूटर को दिया जाता है। प्रोग्राम कंट्रोल लेंग्वेज, प्रत्येक कम्प्यूटर के लिये अलग-अलग होती है।

(ii) स्पूल (साइमल्टेनियस पेरिफेरल आऊटपुट ऑन लाइन) :

यह एक ऐसी तकनीक है, जिसके द्वारा सीपीयू की गति बढ़ाई जाती है व मेमोरी का उचित उपयोग किया जाता है सामान्यत: इनपुट/आऊटपुट उपकरणों (पंचकार्ड, प्रिंटर इत्यादि) की गति सीपीयू की तुलना में बहुत कम होती है तथा इन दोनों के बीच सूचनाओं का आदान-प्रदान, गति की अनियमितता को दर्शाता है।

उदाहरण के लिये कार्ड रीडर मेमोरी से एक अक्षर पढता है या प्रिंटर एक अक्षर मेमोरी से प्रिंट करता है। सिर्फ इस बीच सीपीयू हजारों प्रक्रियाएँ कर देता है।अत: सीपीयू फिर सुस्त अवस्था में आ जाता है।

अत: इस गति की अनियमितता को हम स्पूल तकनीक से कम कर सकते हैं, इसमें हम वह समस्त डेटा जो कि इनपुट/आऊटपुट से संबंधित है, को मुख्य मेमोरी में न रखते हुए सेकण्डरीमेमोरी (डिस्क या टेप) में रखते हैं, क्योंकि सीपीयू सर्फ मुख्यमेमोरी के डेटा को ही क्रियान्वित करता है। इस प्रकार सीपीयू के लिए समस्त डेटा या प्रोग्राम हमेशा उपलब्ध रहता है इसलिए सीपीओ का डेटा की प्रतीक्षा करने का समय बचता है

इस स्पूल प्रक्रिया के लिए कुछ स्पूल प्रोग्राम बनाए जाते हैं, जिनको ऑपरेटिंग सिस्टम, सीपीयू की मदद से उस समय क्रियान्वित करवाता है जबकि सीपीयू बहुत अधिक व्यस्त न हो।

2. मल्टीप्रोग्रामिंग

बैच प्रोसेसिंग की सबसे मुख्य समस्या यह है कि इसमें मुख्य मेमोरी व सीपीयू का उचित उपयोग नहीं हो पाता है, क्योंकि बैच प्रोग्राम एक के बाद एक क्रियान्वित होते हैं तथा जब एक प्रोग्राम चलता रहता है, तब वह पूरी मुख्य मेमोरी को घेरे रहता है, जब यह प्रोग्राम पूर्ण हो जाता है, तब अगला प्रोग्राम मेमोरी में लोड किया जाता है, इस तरह से पूरी मेमोरी में हमेशा कोई एक प्रोग्राम ही रहता है, किन्तु यह प्रोग्राम इतना बड़ा नहीं होता है कि पूरी मेसोरी का उपयोग कर सके। इसलिए बैच प्रोसेसिंग में मेमोरी का पूर्ण उपयोग नहीं हो पाता है।

तब ओएस में एक नई तकनीक, मल्टीप्रोग्रामिंग को विकसित किया गया। मल्टीप्रोग्रामिंग का अर्थ है एक से ज्यादा प्रोग्रामों का मुख्य मेमोरी में एक साथ होना जिससे कि सीपीयू अपने समय का उपयोग बहुत से प्रोग्रामों कि लिये करे, बजाए सुस्त रहने के (जब एक प्रोग्राम हो और वह भी इनपुट/आऊटपुट प्रोसेसे में शामिल हो।)।

यदि एक प्रोग्राम को सीपीयू क्रियान्वित कर रहा है, तो दूसरा इनपुट/आऊटपुट प्रक्रिया में शामिल है व तीसरा प्रोग्राम सीपीयू की प्रतिक्षा में है, परन्तु यहाँ पर भी सीपीयू सिर्फ एक

प्रोग्राम को ही एक समय में क्रियान्वित करेगा।

इस तरह से मल्टी प्रोग्रामिंग के द्वारा सीपीयू व मेमोरी दोनों का उपयोग ज्यादा अच्छे से हो पाता है।

• टिप्स (मुख्य बात)

प्रोग्राम जो कि मेमोरी में संगृहीत होते हैं, वे दो तरह के

होते हैं –

(1) इनपुट/आऊटपुट बाउन्ड प्रोग्राम

(2) सीपीयू बाउन्ड प्रोग्राम

(1) इनपुट/आऊटपुट बाउन्ड प्रोग्राम

ऐसे प्रोग्राम जो कि ऑफिस या कमर्शियल डेटा प्रोसेसिंग (जिसमें की रिकार्ड्स मेन्टेन किये जाते हैं) के लिये बनते हैं, जिनमें इनपुट व आऊटपुट डेटा बहुत बड़ी मात्रा में उपलब्ध रहता है, परन्तु कम्प्यूटर के द्वारा प्रक्रियाएँ बहुत कम होती हैं, ऐसे प्रोग्राम इनपुट/ आऊटपुट बाउन्ड (आधारित) प्रोप्राम कहलाते हैं, जो मुख्यत: इनपुट/आऊटपुट

से जुड़े रहते हैं।

(2) सीपीयू-बाउन्ड प्रोग्राम

कुछ प्रोग्राम जो खोज, इंजिनियेरिंग या वैज्ञानिक कार्य के लिये बने होते हैं, उनमें बहुत बड़ी-बड़ी व कठिन गणनाएँ होती हैं, किन्तु इनपुट/आऊटपुट डेटा बहुत कम होता है, सीपीयू बाउन्ड प्रोग्राम कहलाते है यहाँ सीपीयू का बहुत अधिक उपयोग होता है।

3. मल्टीयूजर/टाईमशेयरिंग

एक ऐसा सिस्टम जो कि एक से अधिक यूजर को ही समय में एक ही एप्लीकेशन के साथ कार्य करने की अनुमति देता है, (ऐसा लगता है कि कम्प्यूटर एक ही समय में एक से अधिक कार्य कर रहा है, परन्तु ऐसा होता नहीं है।) मल्टीयूजर कहलाता है।

अत: मल्टीयूजर सिस्टम में एक से अधिक यूजर एक ही सीपीयू से जुड़े होते हैं तथा प्रत्येक यूजर किसी भी वक्त इस सीपीयू से सीधे एक्सेसिंग कर सकता है।

परन्तु क्या यह संभव है कि बहुत से कार्य, एक सीपीयू, एक ही समय में, एक साथ कर सकता है ? नहीं, कभी नहीं। वास्तव में सीपीयू कार्य को एक के बाद एक ही करता है, लेकिन इसकी गति इतनी अधिक होती है कि जब तक हम कोई डेटा इसे देते हैं, यह लाखों कार्यों को क्रियान्वित कर देता है।

यह सिस्टम टाईमशेयरिंग मेनर में कार्य करता है,(अर्थात् प्रत्येक कार्य को उचित समय देना) तथा वह समयावधि जिस दौरान सीपीयू किसी विशेष यूजर के कार्य को कर देता है, टाईम स्लाट या क्वाण्टम कहलाती है व यह समयावधि 10-20 मिलिसेकण्ड होती है। 

 जिसमें कि एक टाइमशेयरिंग (ओएस) सिस्टम को चार अलग-अलगसमायावधि के कार्य दिये गये हैं व सीपीयू का क्वाण्टंम 20मिलिसेकण्ड है, अर्थात् एक बार में एक कार्य को 20 ms समय देगा। अत: पहला प्रोग्राम चार चक्र में पूरा होगा, दूसरा कार्य दो चक्र में पूरा होगा, तीसरा कार्य सिर्फ एक चक्र में ही हो जाएगा तथा चौथे कार्य के लिये तीनों चक्र लगेंगे। इस तरह से अलग-अलग कार्य अलग-अलग समय में पूरे होंगे। यही ऑपरेटिंग सिस्टम का टाइम शेयरिंग मल्टी यूजर गुण होता है

उपरोक्त उदाहरण में तीन तरह के ऊपर होते हैं एक्टिव ,रेडी या वेट

एक्टिव: ऐसे ही उसे जिस का प्रोग्राम वर्तमान समय में क्रियान्वित की हो रहा है

रेडी: ऐसी यूजर्स उसका प्रोग्राम  क्रियान्वित की तैयारी में है या सीपीयू का रास्ता देख रहा है

वेट: ऐसे ही उसे देश का प्रोग्राम या तो इनपुट/ आउटपुट कार्यों में लगा हुआ है या फिर यूजर अभी कार के बारे में सोच रहा है

स्वेपिंग : टाइमशेयरिंग सिस्टम में, बहुत सारे यूजर होते हैं तथा वे साथ-साथ कार्य रहे होते हैं व प्रत्येक यूजर का प्रोग्राम मुख्य मेमोरी में संग्रह होने की कोशिश करता है, परन्तु मुख्यं मेमोरी की क्षमता बहुत कम होती है और वह सभी प्रोग्रामों को एक साथ संग्रह करके नहीं रख सकती है।

एक निश्चित समय पर रेसिडेंट प्रोग्राम, सिर्फ एक्टिव व रेडी प्रोग्रामों को ही मेमोरी में रखते हैं (जो कि अभी क्रियान्वित होने वाले हैं।) और सभी वेट प्रोग्रामों का सेकण्डरी मेमोरी में स्थानान्तरण कर देते हैं तथा जब उनकी जरूरत होती है, तब उन्हें पुन: मुख्य मेमोरी में बुला लेते हैं। इस तरह से प्रोग्रामों को मुख्य मेमोरी से सेकण्डरी मेमोरी (आन लाईन) मे ले जाने या पुणे सेकेंडरी मेमोरी से मुख्य मेमोरी में लाने की प्रक्रिया को स्वेपिग कहते हैं

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