इंडक्टर क्या है
किसी कुण्डली में ए.सी. प्रवाहित करने पर उसके चारों ओर एक प्रत्यावर्ती चुम्बकीय क्षेत्र स्थापित हो जाता है ; इस क्षेत्र में अवस्थित उसी कुण्डली अथवा दूसरी कुण्डली में फैराडे के नियमानुसार एक वि.वा.ब. पैदा हो जाता है , यह प्रभाव इंडक्टर या प्रेरण कहलाता है ।
महत्वपूर्ण
( i ) डी . सी . परिपथों में इन्डक्शन नामक प्रभाव का कोई अस्तित्व नहीं होता ।
( ii ) इन्डक्शन के लिए दो कुण्डलियों को आपस में संयोजित अथवा स्पर्श करने की कोई आवश्यकता नहीं होती ।
इंडक्टर काम कैसे करता है
जब किसी कुण्डली में से डी . सी . प्रवाहित की जाती है तो उसमें किसी प्रकार का इन्डक्शन प्रभाव पैदा नहीं होता हाँ , वह अपना एक चुम्बकीय क्षेत्र अवश्य स्थापित करती है । परन्तु जब उसी कुण्डली में से ए.सी. प्रवाहित की जाती है तो उसमें एक विरोधी वि.वा.ब. ( back emi ) पैदा हो जाता है जो आरोपित वि.वा.ब. का विरोध करता है । कुण्डली का यह गुण उसका इन्डक्टैन्स कहलाता है । क्योकि यह गुण केवल ए . सी . पर ही पैदा होता है । डी . सी . पर नहीं । अत : हम कह सकते हैं कि ए . सी . परिपथों का वह गुण , जिसके कारण वह विद्युत धारा मान में होने वाले परिवर्तनों का विरोध करता है , इन्डक्टैन्स कहलाता है । इन्डक्टैन्स का प्रतीक L तथा मात्रक हैनरी ( H ) होता है ।
एक हैनरी यदि किसी कुण्डली में 1 एम्पियर प्रति सेकण्ड की दर पर विद्युत धारा के परिवर्तन से 1 वोल्ट का वि.वा.ब. पैदा होता है तो उस कुण्डली का इन्डक्टैन्स 1 हैनरी होता है ।
1 हैनरी =1 वोल्ट/ 1 कूलॉम
इंडक्टर के मात्रक और सूत्र
हैनरी का छोटा मात्रक मिली हैनरी ( m ) होता है ।
I mH = 1/10³H
इन्डक्टैन्स की गणना निम्न सूत्र से की जा सकती है
L = N. ø/I
यहाँ , L = इन्डक्टैन्स , हैनरी में
ø = कुण्डली में से गुजरने वाला चुम्बकीय फ्लक्स , वैबर में
N = कुण्डली की लपेट संख्या
I = कुण्डली में गुजरने वाली विद्युत् धारा , एम्पियर में ।
इन्डक्टर या चोक Inductor or Choke
वैसे तो प्रत्येक प्रत्यावती विद्युत धारावाही चालक में इन्डक्टैन्स विद्यमान होता है परन्तु जब चालक तार को कुण्डली के रूप में लपेटकर एक नियत मान का इन्डक्टैन्स प्रस्तुत करने के लिए एक पुर्जे का रूप प्रदान कर दिया जाता है , तो वह इन्डक्टर या चोक कहलाता है ।
इन्डक्टर कितने प्रकार के होते हैं
इन्डक्टर मुख्यत : निम्न प्रकार की होती है
Air Core Type
इस प्रकार की चोक में कोई क्रोड प्रयोग नहीं की जाती और वह केवल एक कुण्डली के रूप में होती है । इसका उपयोग इलैक्ट्रॉनिक परिपथों में किया जाता है
फैराइट क्रोड युक्त Ferrite Core Type
इस प्रकार की चोक में लौह एवं कार्बन चूर्ण से निर्मित क्रोड ( जो फैराइट क्रोड कहलाती है ) प्रयोग की जाती है । इस क्रोड के द्वारा चोक के इन्डक्टैन्स मान को कुछ सीमा तक परिवर्तित किया जा सकता है । इसका उपयोग रेडियो रिसीवर्स तथा ट्रांसमीटर्स में किया जाता है ।
लौह क्रोड युक्त Iron Core Type
इस प्रकार की चोक में नर्म लौह क्रोड प्रयोग की जाती है जिनके प्रयोग से चोक का इन्डक्टैन्स मान बढ़ जाता है । इसका उपयोग फ्लोरोसेन्ट ट्यूब तथा सोडियम लैम्प के परिपथ में इम्पीडेन्स को बढ़ाकर , उच्च वोल्टता पैदा करने के लिए किया जाता है । इसके अतिरिक्त , लौह क्रोड युक्त चोक का उपयोग रेक्टीफायर्स के फिल्टर परिपथों में रेक्टीफाइड ए . सी . के पल्सेशन्स ( pulsations ) दूर करने के लिए भी किया जाता है ।
सेल्फ इन्डक्टैन्स (Self Inductance) क्या है
किसी कुण्डली मे से ए.सो. प्रवाहित करने पर उसके द्वारा विद्युत धारा मान में हो रहे परिवर्तनों का विरोध करने का गुण उसका सेल्फ इनकरेन्ट या स्व – प्रेरकाल कहलाता है । सैल्फ इन्डक्शन के कारण कुण्डली मे एक वि.वा.ब.प्रेरित हो जाता है , जो आरोपित वि.वा.ब.के विपरीत दिशा में कार्यरत रहता है और इसीलिए यह विरोधी वि.वा.ब. या बैक ई.एम.एफ. ( backem ) कहलाता है ।
e = -L.di/dt
e = विरोधी वि.वा.ब. वोल्ट में
di/dt= विद्युत धारा माने परिवर्तन दर , एम्पियर सेकण्ड में L = सैल्फ इन्डन्स , हैनरी में
सूत्र में इन चिन्ह ( – ) यह दर्शाता है कि विरोधी वि.का.ब. को दिशा सदैव आयोचित वि वा ब को दिशा के विपरीत होता है ( B ) विरोधी वि वा ब का अस्तित्व तभी तक रहता है जब तक कि कुण्डली में से प्रवाहित हो रहो विद्युत धारा के मान में परिवर्तन जारी रहते हैं
म्यूच्युअल इन्डक्टैन्स (Mutual Inductance) क्या है
जब किसी कुण्डली में से ए . सी . प्रवाहित की जाती है तो उस कुण्डली द्वारा स्थापित प्रत्यावर्ती चुम्बकीय क्षेत्र में अवस्थित अन्य सभी चालको एक कुण्डलियों में भी किया वि वा ब . प्रेरित हो जाता है । इस प्रकार , दो कुण्डलियों का वह गुण , जो उनमें प्रवाहित हो रही विद्युत धारा के मान में हो रहे परिवर्तनों का विरोध करता है , म्युच्युअल इन्डक्टैन्स कहलाता है । इसका प्रतीक M तच्या मात्रक हैनरी ( H ) होता है ।
M =√L’L”
M- यूचुअल इन्डक्स , हैनरों में
L’ = प्रथम कुण्डली का सैल्फ इन्डक्टस , हैनवरी में
L” – द्वितीय कॉपल का सैल्फ इन्डेक्स्टेन्स , हैनरी में
इन्डक्टर्स के कनेक्शन
प्रतिरोधकों की भाँति , इन्डक्टर्स को भी आवश्यकतानुसार श्रेणी एवं समानान्तर क्रम में संयोजित किया जा सकता है । माना यदि इन्डक्टैन्स L’ , L” , L'” ….. हो , तब इस स्थिति में
श्रेणी क्रम में In Series
L = L’ + L”+ L'”+ ….
समानान्तर क्रम में In Parallel
1/L = 1/L’+1/L”+1/L'”
यहाँ , L’ , L” , L'” = पृथक् – पृथक् इन्डक्टैन्स समान मात्रक में
L = कुल इन्डक्टैन्स
यदि दो इन्डक्टर्स के मध्य म्युच्युअल इन्डक्टैन्स भी विद्यमान हो , तो
L = L’ + L”±2K√L’L”
यहाँ , K का अर्थ है कपलिंग गुणांक ( co – efficient of coupling ) जिसका मान दोनों कुण्डलियों के मध्य विद्यमान कपलिंग के प्रतिशत पर निर्भर करता है । इसका मान सदैव 1.0 से कम होता है । यदि दोनों कुण्डलियों के चुम्बकीय क्षेत्र एक – दूसरे के विपरीत दिशा में कार्यरत हों , तो सूत्र में ऋण चिन्ह ( – ) , अन्यथा धन चिन्ह ( + ) प्रयोग किया जाता है ।
इन्डक्टिव रिएक्टैन्स Inductive Reactance
प्रत्येक कुण्डली या इन्डक्टर में इन्डक्टैन्स विद्यमान होता है । इसी इन्डक्टैन्स के कारण प्रत्येक कुण्डली , प्रत्यावर्ती विद्युत धारा प्रवाह का विरोध करती है । इस प्रकार , प्रत्यावर्ती विद्युत् धारा प्रवाह के लिए किसी कुण्डली द्वारा प्रस्तुत किया जाने वाला विरोध ही उसका इन्डक्विट रिएक्टैन्स कहलाता है ।
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