थायरिस्टर क्या है
थायरिस्टर सिलिकान अर्द्धचालक इकाई है । इसका विकास 1948 में USA को Bell प्रयोगशाला में हुआ । परन्तु USA द्वारा 1957 में SCR ( Silicon Controlled Rectifier ) के निर्माण के साथ इसका उच्च विद्युत धारा , वोल्टेज तथा शक्ति क्षमता को यह अर्द्धचालक इकाई , थायरिस्टर के स्थान पर , शक्ति नियंत्रण के लिए उपयोगी सिद्ध हुई । और शक्ति स्विच इकाई के रूप में प्रयोग होने लगी ।
सन् 1963 में इंटरनेशनल इलेक्ट्रोटेक्निकल कमीशन (आईईसी) ने थाइरिस्टर की परिभाषा निम्नानुसार तय की।
(i) इसमें तीन या अधिक p-n जंक्शन होते हैं।
(ii) इसकी दो स्थिर अवस्थाएँ हैं, एक ON-state और एक OFF-state और यह अपनी अवस्था को एक से दूसरे में बदल सकती है।
(iii ) थाइरिस्टर एक चार परत, तीन-जंक्शन pnpn अर्धचालक स्विचिंग डिवाइस है।
थाइरिस्टर कितने प्रकार के होते हैं
वर्तमान में , पी-एन-पी-एन परिवार के कुल 16 सदस्य हैं
1. SCR ( सिलिकॉन नियत्रित दिष्टकारी )
2. Tric ( ट्रायक )
3. Diac ( ड्रायक )
4. SCS ( Sillicon Controlled Switch )
5. SUS ( Sillicon Unilateral Switch )
6. SBS ( Sillicon Bilateral Switch )
7. LASCR ( Light Activated Thyristor )
8. Shockley Diode
9. GTO ( Gate turn off Thyristor )
10.PUT ( Programmable Uni-junction transistor )
11. SITHs ( Static induction Thyristor )
12. The DIAC ( Bidirectional Thyristor diode )
13. ASCR (Asymmetrical Thyristor)
14. RCT (Reverse Conducting Thyristor)
15. MOSFET Controlled Thyristor (MCT)
16. Field Controlled Thyristor (FCT)
सिलिकॉन कन्ट्रोल्ड रेक्टीफायर Silicon Controlled Rectifier , SCR
इस युक्ति में एक PN- जंक्शन तथा एक PNP सिलिकॉन ट्रांसिस्टर को संयुक्त कर दिया जाता है । इसमें एनोड , धारा ( कलैक्टर धारा के तुल्य ) का संचालन ट्रिगर पल्स ( वोल्टेज / धारा ) के द्वारा सम्पन्न होता है इसीलिए यह सिलिकॉन कन्ट्रोल्ड रेक्टीफायर या थायरिस्टर ( silicon controlled rectifier or PNP thyristor ) कहलाता है । इसमें एक PN संगम होता है Input और उसमे एक PNP ट्रांसिस्टर संयुक्त किया हुआ होता है । इस प्रकार इसमें कुल तीन PN जंक्शन होते हैं । इसके संयोजक सिरे क्रमश : कैथोड , गेट तथा एनोड कहलाते हैं । इसका उपयोग रेक्टीफिकेशन हेतु बैट्री चार्जर्स में , इन्वर्टर्स में , इग्नीशन प्रणाली में तथा गति नियन्त्रक प्रणालियों में किया जाता है । रेक्टीफायर के रूप में इसे चित्र में दर्शाए गए परिपथ की भाँति संयोजित किया जाता है । इसके ‘ एनोड ‘ तथा ‘ कैथोड के बीच आवश्यक विभवान्तर उपस्थित होने पर भी एनोड धारा का प्रवाह तब तक प्रारम्भ नहीं होता जब तक कि गेट ‘ पर पूर्व – निर्धारित मान का वोल्टेज आरोपित नहीं किया जाता है । इस कार्य के लिए परिपथ में प्रतिरोधक R ,, R , तथा डायोड D प्रयोग किया गया है । एक बार SCR में से विद्युत धारा प्रवाह स्थापित हो जाने पर गेट वोल्टेज का कोई प्रयोजन शेष नही रहता और उसे शून्य किया जा सकता है । ऋण अद्भऀ चक्र में एनोड के ऋण हो जाने पर SCR रूक जाता है और घन चक्र में पुनः प्रारम्भ हो जाता है । SCR में धारा का वह मान , जिससे कम पर वह खुला परिपथ हो जाता है , होल्डिंग धारा या लैचिंग धारा ( holding current or latching current ) कहलाती है ।
SCR का उपयोग 100 A तक रेक्टीफायर के रूप में डी.सी. विद्युत धारा प्रदान करने के लिए किया जा सकता है ।
गेट कन्ट्रोल्ड स्विच या गेट टर्न – ऑफ स्विच Gate Controlled Switch or Gate Turn – off Switch . GCS or GTO
गेट टन ऑफ ( gate tran off ) स्विच एक विशेष प्रकार का SCR ( सिलिकॉन कोल्ड रेक्टीफायर ) है । इसकी संरचना लगभग SCR के समान होती है , अन्तर केवल यह है कि GTO के गेट पर ऋण पल्स प्रदान करके इस युक्ति को ऑफ किया जा सकता है , जबकि SCR की ‘ ऑफ करने के लिए उसके एनोड वोल्टेज को कुछ पलों ( लगभग 20 माइक्रो सेकण्ड ) के लिए ऑफ करना आवश्यक होता है । SCR के समान ही इसमें धारा का संचालन केवल फॉरवर्ड बायस ( एनोड ) पर आरोपित करने से नहीं होगा अपितु इसके साथ ही गेट पर धन संकेत पल्स आरोपित करना आवश्यक है ।
इस युक्ति का उपयोग ट्रिगर परिपथ ( Trigger Circuit ) में किया जाता है ।
किसी इलेक्ट्रॉनिक परिप्या उपकरण को वित्रामावस्या ( stand by ) में चालू अवस्था में लाने वाला परिपथ , ट्रिगर परिपथ कहलाता है ।
सिलिकॉन कन्ट्रोल्ड स्विच Silicon Controlled Switch Scs
यह चार पर्तो तथा चार समापक सिरों ( टर्मिनल्स ) वाली PNPN युक्ति है । इसमें चार समापक सिरे क्रमश : एनोड , कैथोड , एनोड – गेट एवं कैथोड – गेट होते हैं । इस युक्ति को इसके गेट्स तथा त , पर उपयुक्त संकेत देकर ऑफ किया जा सकता है । युक्ति को ऑन करने के लिए समाजक सिरे पर G , पर ऋण सन्द अच्वा समापक सिरे 6 . पर धन सन्द दिया जाता है । इसी प्रकार , युक्ति को ऑफ करने के लिए समापक सिरे G , पर धन सन्द अथवा समापक सिरे G , पर ण स्पन्द दिया जाता है ।
एस.सी.एस. का उपयोग टाइमर ( timer ) , स्पन्द जनित्र ( pulse generater ) , वोल्टता संवेदक ( voltage serisor ) आदि के रूप में किया जाता है ।
ट्रायेक TRIAC
यह समानान्तर क्रम में जोड़े गए दो एस. सी. आर. के तुल्य होता है । इसमें दो मुख्य समापक सिरे ( टर्मिनल ) MT- 1 तथा MT – 2 और एक गेट समापक सिरा होता है । गेट – को धन अथवा ऋण स्पन्द देने पर युक्ति में से धारा प्रवाह प्रारम्भ हो जाता है , परन्तु एक बार युक्ति में से धारा प्रवाह प्रारम्भ हो जाने पर गेट का कोई नियत्रण धारा प्रवाह पर नहीं रहता । युक्ति में से धारा प्रवाह रोकने के लिए समापक सिरे MT – 2 पर विपरीत ध्रुवता का ( समापक सिरे MT – 1 पर आरोपित स्पन्द ध्रुवता के विपरीत ) सन्द प्रदान करना पड़ता है ।
ट्रायेक का उपयोग डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक परिपथों में इलेक्ट्रॉनिक युक्तियों को सक्रिय ( enable ) व निष्क्रिय ( disable ) करने के लिए किया जाता है ।
डायेक DIAC
दोनों दिशाओं में कार्य करने वाला विशेष प्रकार का डायोड , DIAC कहलाता है । सामान्य अवस्था में यह दोनों दिशाओं में रिक्स बायस स्थिति में रहता है और किसी भी दिशा ( फॉरवर्ड अथवा रिवर्स ) में बायस वोल्टेज का मन पूर्व निर्धारित वोल्टेज मान से अधिक हो जाने पर यह प्रचालित हो जाता है और इसमें से विद्युत धारा प्रवाह प्रारम्भ हो जाता है ।
इसका उपयोग ऑटो वाहनों की कि डिप्रेशन प्रणाली में तथा विद्युतीय मोटर की गति नियंत्रण आदि में किया जाता है
ASCR (Asymmetrical Thyristor )
• एक विषम थाइरिस्टर, विशेष रूप से सीमित रिवर्स वोल्टेज क्षमता के लिए निर्मित है।
• यह ASCR में टर्न-ऑन, टर्न-ऑफ टाइम और स्टेट वोल्टेज ड्रॉप में कमी की अनुमति देता है।
• फास्ट टर्न-ऑफ ASCRs कम्यूटेटिंग घटकों के आकार, वजन और लागत को कम करता है और बेहतर दक्षता के साथ उच्च आवृत्ति संचालन (20 किलोहर्ट्ज़ या अधिक) की अनुमति देता है।
• एक विशिष्ट ASCR में 20 से 30 V की रिवर्स ब्लॉकिंग क्षमता और 400 V से 2000 V के फॉरवर्ड ब्लॉकिंग वोल्टेज हो सकते हैं।
रिवर्स कंडक्टिंग थायरिस्टर्स (RCT)
• इसे एक एंटीपैरल समानांतर डायोड के साथ एक थाइरिस्टर के रूप में माना जा सकता है।
• यह निर्माण RCT की रिवर्स ब्लॉकिंग क्षमता को शून्य कर देता है।
• 2000 V और 500 A रेटिंग के साथ RCTs उपलब्ध हैं।