डीसी मोटर क्या है और कितने प्रकार के होते हैं | What is dc motor and how many types are there in Hindi

Table of Contents

 डीसी  मोटर क्या है

डी सी  मशीन मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं। एक वह जिसके द्वारा वैद्युतिक ऊर्जा को यान्त्रिक ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है। दूसरी वह‌ जिसके द्वारा यान्त्रिक ऊर्जा को वैद्युतिक ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है। पहले प्रकार की मशीने मोटर कहलाती है और दूसरे प्रकार की मशीन  जनित्र कहलाती है। डी.सी. मोटर्स अत्यन्त महत्व को मोटर्स है और बहुत से कार्य केवल इन्हों के द्वारा निष्पादित किए जात है

डीसी मोटर काम कैसे करता है

चित्र में डी.सी. मोटर की कार्यप्रणाली समझाई गई है।

आर्मेचर-लूप का चालक A उत्तरी ध्रुव के तथा चालक B दक्षिणी ध्रुव के प्रभाव में है। फ्लैमिंग के बायाँ-हस्त नियम‌ लूप वामावर्त दिशा (anti-clockwise) में घूर्णन करने का प्रयास करता है। जब तक लूप में विद्युत धारा प्रवाह होता रहता है और वह चुम्बकीय-क्षेत्र में विद्यमान रहता है तब तक आमेंचर-लूप में पैदा हुआ घुमाव-बल (torque), लूप को‌ वामावर्त दिशा में घुमाता रहता है।

उल्लेखनीय है कि “आर्मेचर-लूप के आधा चक्र घूम जाने के बाद, चालक B उत्तरी ध्रुव के प्रभाव में तथा चालक A दक्षिणी ध्रुव के प्रभाव में आ जाता है परन्तु इसी समय, कम्यूटेटर के द्वारा विद्युत धारा प्रवाह की दिशा भी परिवर्तित हो जाती है और पुन: वामावर्त दिशा में ही घुमाव-बल पैदा होता है। इस प्रकार आर्मेचर-लूप, लगातार वामावर्त दिशा में घूर्णन करता रहता है।”

डी.सी. मोटर के आर्मेचर में अनेक चालक-लूप स्थापित किए जाते हैं जिससे कि अधिक टॉर्क पैदा किया जा सके।

डी.सी. मोटर किस सिद्धान्त पर कार्य करते हैं

डी. सी. मोटर, विघुत-चुम्बकीय खिंचाव के सिद्धान्त पर कार्य करती है। इस सिद्धान्त के अनुसार,”किसी चुम्बकीय क्षेत्र में अवस्थित विद्युत धारावाही चालक अपना स्वयं का एक चुम्बकीय क्षेत्र स्थापित करता है और एक ही स्थान पर कार्यरत इन दो चुम्बकीय क्षेत्रों की पारस्परिक प्रतिक्रिया के फलस्वरूप चालक में एक घुमाव बल (torque) पैदा हो जाता है।”

विद्युत-चुम्बकीय खिंचाव क्या है 

डी.सी. जनित्र में यह पाया गया कि प्रेरित विद्युत धारा के कारण आमेचर भी अपना एक चुम्बकीय क्षेत्र स्थापित करता है। यह चुम्बकीय क्षेत्र, आमेचर को उसकी घुमाव दिशा के विपरीत दिशा में घुमाने का प्रयास करता है, यह प्रयास विद्युत-चुम्बकीय खिंचाव कहलाता है। यह खिंचाव ही डी.सी. मोटर के आर्मेचर में घूर्णन गति के रूप में यान्त्रिक ऊर्जा पैदा करता है।

डी.सी. मोटर के मुख्य भाग क्या होता है?

डी.सी. जनित्र में निम्नलिखित मुख्य भाग होते हैं

1. बॉडी Body

2. फील्ड पोल Field Pole 

3. शू सहित लेमिनेटेड पोल Laminated Pole with Shoe 

4. मोल्डेड पोल Moulded Pole

5. आर्मेचर Armature

6. कम्यूटेटर Commutator 

7. ब्रश तथा ब्रश – होल्डर Brush and Brush – holder

8. ब्रश – लीड Brush – lead 

9. रॉकर प्लेट Rocker Plate

10. एण्ड कवर End Cover

11.बियरिंग Bearing

12. शाफ्ट तथा पुली Shaft and Pulley 

13. कूलिंग – फैन Cooling – fan

14. बैड – प्लेट Bed – plate 

15. आई – बोल्ट Eye – bolt 

16. टर्मिनल – बॉक्स Terminal – box 

 बॉडी Body 

मशीन के बाहा भाग को बॉडी या योक ( yoke ) कहते है । यह कास्ट – आयरन अथवा कास्ट – स्टील से बनाई जाती है । इसके मुख्य कार्य है 

( 1 ) मशीन के सभी भागों को सुरक्षित रखना , 

( ii ) चुम्बकीय बल रेखाओं ( फ्लक्स ) के लिए पथ प्रदान करना । 

बॉडी के दोनो ओर दो साइड प्लेट्स होती है जो मशीन को पूरी तरह ढक देती हैं । बॉडी पर आवश्यकतानुसार आई – बोल्ट , लैग्स आदि वैल्ड कर दिए जाते हैं । छोटी मशीनों की बॉडी , प्राय : कास्ट – आयरन से एवं बड़ी मशीनों की बॉडी , कास्ट – स्टील से बनाई जाती है 

 फील्ड पोल Field Pole

 छोटे आकार वाले डायनमो में तो चुम्बकीय क्षेत्र स्थापित करने के लिए स्थायी चुम्बक प्रयोग किए जाते हैं परन्तु बड़े आकार वाले डायनमो सध्या डी.सी. जनित्र में फील्ड पोल्स प्रयोग किए जाते हैं । फील्ड पोल्स निम्न दो प्रकार के होते हैं  

फील्ड पोल Field Pole

शू सहित लेमिनेटेड पोल Laminated Pole with Shoe 

इस प्रकार के पोल में , पोल तथा पोल – शू दोनों ही एक साथ लेमिनेटड कास्ट – स्टील अथवा एनील्ड स्टील ( annealed steel ) से बनाए जाते हैं इन पर फील्ड – वाइण्डिग स्थापित करके इन्हें बोल्ट्स के द्वारा योक पर कस दिया जाता है , बड़ी मशीनों में प्रायः यही विचि अपनाई जाती है ।

मोल्डेड पोल Moulded Pole

इस प्रकार के पोल , योक के साथ ही मोल्डिग द्वारा बनाए जाते है । ये प्रायः कास्ट – आयरन से बनाए जाते हैं । पोल के ऊपर फील्ड – वाइण्डिग स्थापित करके एक लैमिनेटर पोल सुपर जो दौरा कर दिया जाता है छोटी मशीन के पैर आ गई विधि अप्लाई की जाती है है । पोल – शु का आकार ( प्रभावी क्षेत्रफल ) बढ़ा ( लगभग दो गुना ) रखा जाता है । इसके दो लाभ है

1 ) फील्ड क्वॉयल , पोल से बाहर नहीं जा सकता  

2 ) पोल – शू द्वास पैदा किया गया चुम्बकीय क्षेत्र , अधिक विस्तृत ( फैला हुआ ) होता है । 

 फील्ड पोल की न्यूनतम संख्या दो होती है समानता इन की अधिकतम संख्या आठ होती है इनका प्रमुख कार्य है चुंबकीय क्षेत्र स्थापित करना है

आर्मेचर क्या है 

फोल्ड – पोल्स को न्यूनतम संख्या दो होती है । सामान्यतः इनकी अधिकतम संख्या 8 होती है । इनका मुख्य कार्य है – चुम्बकीय क्षेत्र स्थापित करना । यह एक बेलनाकार ड्रम जैसा होता है जो सिलिकॉन स्टील की पत्तियों ( लेमिनेशन्स ) को एक – साथ रिवेट स्लॉट , मुख्यत : निम्न तीन प्रकार के होते हैं करके बनाया जाता है । आमेचर ड्रम में , आर्मेचर क्वॉयल्स स्थापित करने के लिए स्लॉट कटे होते हैं । 

A. खुले ( Open ) एक समान चौड़ाई में खुले खाँचे , खुले स्लॉट कहलाते हैं ।

 B. अर्द्ध – बन्द ( Semi – closed ) इस प्रकार के खाँचों की चौड़ाई शीर्ष पर कम होती है । 

C. बन्द ( Closed ) इस प्रकार के खाँचे छिद्र के आकार के होते हैं और इनमें सीधे ही आर्मेचर क्वॉयल नहीं फँसाई जा सकती , बल्कि उसे छिद्रों में वाइण्ड करना पड़ता है । 

आमेचर कोर लेमिनेटेड होती हैं जिससे कि उनमें हिस्टरैसिस क्षति तथा एडी धारा क्षति का मान कम रहे । लेमिनेशन्स ( पत्तियों ) की मोटाई 0.35 से 0.6 मिमी तक होती है । आर्मेचर का मुख्य कार्य है – चुम्बकीय फ्लक्स का छेदन करके उसमें स्थापित आमेचर – वाइण्डिग्स में वि.वा.ब. पैदा करना । आर्मेचर को शाफ्ट पर कस दिया जाता है और शाफ्ट को बियरिंग्स की सहायता से बॉडी में स्थापित कर दिया जाता है ।

कम्यूटेटर क्या है 

यह आकार में वृत्ताकार होता है जो हाई – ड्रान ( hard drawn ) ताँबे की मोटी पत्तियों को बैकलाइट के आधार पर कस कर बनाया जाता हैं । पत्तियों के बीच में रिक्त स्थान ( air gap ) होता है जिसमें अभ्रक भर दिया जाता है । कम्यूटेटर को आमेचर शाफ्ट पर स्थापित किया जाता है । इसकी पत्तियों ( segments ) के सिरों पर आर्मेचर – वाइण्डिग्स के सिरे सोल्डर कर दिए जाते हैं ।

 इसका मुख्य कार्य है – आर्मेचर क्वॉयल्स में पैदा हुए वि.वा.ब. को डी.सी. के रूप में बाह्य परिपथ को प्रदान करना । 

ब्रश तथा ब्रश – होल्डर Brush and Brush – holder 

डी.सी. जनित्र द्वारा उत्पन्न वि.वा.ब. को कम्यूटेटर से बाहा परिपथ को प्रदान करने के लिए जो युक्ति प्रयोग की जाती है वह ब्रश कहलाती है । ब्रश को – ब्रश – होल्डर में लगाया जाता है । छोटी मशीनों में कार्बन ब्रश प्रयोग किया जाता है और बड़ी मशीनों में कार्बन व ताँबे के मिश्रण से बना ब्रश प्रयोग किया जाता है । ब्रश का मुख्य कार्य है – कम्यूटेटर के साथ फिसलता हुआ सम्पर्क ( sliding Contact ) स्थापित करना । ब्रश , आयताकार होता है और इसे आयताकार पीतल के दोनों ओर से खुले बॉक्स में लगा दिया जाता है । कम्यूटेटर पर ब्रश का दबाव बनाए रखने के लिए एक स्प्रिंग – पत्ती होती है । इस स्प्रिंग का दबाव 0.1 से 0.25 किलोग्राम प्रति वर्ग सेमी तक रखा जाता है ।

ब्रश तथा ब्रश – होल्डर Brush and Brush – holder

कार्बन – ब्रश प्रयोग करने के कारण Reasons to use Carbon Brush 

1. कार्बन ऐसा पदार्थ है जो ऑक्सीकृत नहीं होता और इस प्रकार कम्यूटेटर से सदैव अच्छा संयोजन बनाए रखता है । 

2 कार्बन अधिक तापमान पर भी ठीक कार्य कर सकता है , क्योंकि कम्यूटेटर के साथ घर्षणरत रहने के कारण ब्रश काफी गर्म हो जाते हैं । अतः ब्रश बनाने के लिए अधिक तापमान सह सकने वाला पदार्थ प्रयोग किया जाता है । 

3. इसे सरलता से आवश्यक आकृति प्रदान की जा सकती है 

4. कार्बन का अवगुण है इसका उच्च प्रतिरोध और यह अवगुण भी कार्य के दौरान दूर हो जाता है , क्योंकि तापमान बढ़ने से इसका प्रतिरोध 

5. कार्बन की विद्युत धारा वहन क्षमता 4 से 6 एम्पियर प्रति वर्ग सेमी होती है जो उपयुक्त हैं । 

6. कार्बन , एक नर्म पदार्थ हैं । अत : यह स्वयं घिस जाता है , परन्तु कम्यूटेटर को घिसने नहीं देता । घट जाता है ।

ब्रश – लीड Brush – lead 

ब्रश के साथ जोड़ा गया फ्लैक्सिबिल तार का टुकड़ा , ब्रश – लीड या पिग – टेल ( pig – tail ) कहलाता है । यह ब्रश का सम्बन्ध , बाह्य परिपथ से स्थापित करने के लिए लगाया जाता है । 

रॉकर प्लेट Rocker Plate

 यह छल्ले के आकार की एक प्लेट होती है जो फ्रन्ट – एण्ड प्लेट के साथ बोल्ट्स द्वारा कसी होती है । रॉकर प्लेट पर ब्रश होल्डर फँसा दिए जाते हैं या पेंचों से कस दिए जाते हैं । रॉकर प्लेट में स्टड ( लम्बे खाँचे ) बने होते हैं जो बोल्ट्स को ढीला करके , ब्रश होल्डर्स को समायोजित किए जाने की योग्यता प्रदान करते हैं ।

 एण्ड कवर End Cover 

जनित्र की बॉडी के दोनों ओर दो कास्ट – आयरन से बने ढक्कन लगाए जाते हैं । इनमें बियरिंग लगी होती हैं और मशीन को ठण्डा रखने के लिए कुछ छिद्र बने होते हैं । इन्हें एण्ड प्लेट ( end plate ) भी कहते हैं । कम्यूटेटर की तरफ वाले कवर को फ्रन्द – एण्ड कवर ( front – end cover ) तथा दूसरे कवर को रियर – एण्ड कवर ( rear – end cover ) कहते हैं । 

बियरिंग Bearing 

आमेचर – शाफ्ट को बियरिंग के द्वारा एण्ड – प्लेट्स पर कसा जाता है । बियरिंग्स की संख्या दो होती है । छोटी मशीनों में बुश – बियरिंग ( bush – bearing ) प्रयोग की जाती है और बड़ी मशीनों में बाल – बियरिंग अथवा रोलर – बियरिंग ( ball – bearing or roller – bearing ) प्रयोग की जाती हैं । बियरिग्स का मुख्य कार्य आर्मेचर शाफ्ट को तीव्र गति पर घूमने की स्वतन्त्रता प्रदान करना है । 

शाफ्ट तथा पुली Shaft and Pulley 

आमेचर तथा कम्यूटेटर के लिए यह आधार का कार्य करती है । इसे बियरिंग्स के द्वारा एण्ड – प्लेट्स पर कस दिया जाता है । यह नर्म लोहे ( mild steel ) की बनी होती है । शाफ्ट के एक सिरे पर एक पुली कस दी जाती है जो मशीन को चलाने के लिए उसे टरबाइन आदि से जोड़ने के लिए प्रयोग की जाती है । 

कूलिंग – फैन Cooling – fan 

मशीन को ठण्डा रखने के लिए आर्मेचर पर , कम्यूटेटर वाले सिरे के विपरीत सिरे पर , एक कास्ट – आयरन का बना पंखा जड़ दिया जाता है । जैसे ही आर्मेचर प्रारम्भ करता है , यह भी घूमने लगता है और ठण्डी हवा देकर मशीन को ठण्डा रखता है । 

बैड – प्लेट Bed – plate 

मशीन के आधार को बैड – प्लेट कहते हैं । यह कास्ट – आयरन से बनाई जाती है और इसे बोल्ट्स के द्वारा ‘ फाउन्डेशन ‘ पर कस दिया जाता है । 

आई – बोल्ट Eye – bolt 

मशीन को उठाने के लिए प्राय : उसकी बॉडी पर एक गोल छिद्र वाला हुक लगाया जाता है जो आई – बोल्ट कहलाता है । 

टर्मिनल – बॉक्स Terminal – box 

मशीन की बॉडी पर बैकेलाइट की एक मोटी शीट जड़ी रहती है जिस पर नट – बोल्ट के द्वारा आमेचर – कम्यूटेटर के संयोजक सिरे कसे होते हैं । यह व्यवस्था टर्मिनल – बॉक्स कहलाती है । इसका मुख्य कार्य है – डी.सी . जनित्र द्वारा पैदा किया गया वि.वा.ब. लोड को प्रदान करना ।

संरचना construction

डीसी मोटर तथा डीसी जनरेटर की संरचना बिल्कुल एक सी होती है वस्तुतः एक ही मशीन को यांत्रिक ऊर्जा देकर डीसी मोटर के रूप में तथा विद्युत ऊर्जा देकर डीसी मोटर के रूप में प्रचारित किया जा सकता है डीसी जनरेटर एक एंड कवर मशीन को ठंडा रखने के लिए उद्देश्य से डीसी मोटर की बॉडी में अपेक्षा अधिक खुले हुए बनाए जाते हैं और शेष संरचना में कोई अंतर नहीं होता है

डी.सी. मोटर्स कितने प्रकार के होते हैं

 डी.सी. मोटर्स मुख्यत : निम्न तीन प्रकार की होती हैं 

1. सीरीज मोटर ( Series motor ) , 

2 शंट मोटर ( Shunt motor ) तथा 

3. कम्पाउण्ड मोटर ( Compound motor ) ।

 इनमें कम्पाउड मोटर्स पुनः निम्न दो प्रकार की होती हैं 

( i ) क्यूम्युलेटिव कम्पाउण्ड मोटर 

( a ) लाँग शंट 

( b ) शॉर्ट शंट 

( ii ) डिफरैन्शियल कम्पाउण्ड मोटर 

( a ) लाँग शंट 

( b ) शॉर्ट शंट ।

 सीरीज मोटर Series Motor 

सीरीज मोटर में फील्ड वाइण्डिग , आमेचर के श्रेणी – क्रम में संयोजित होती है ,  । इस मोटर में पूरी आमेचर – धारा , फील्ड – वाइण्डिग में से होकर प्रवाहित होती है अत : वह मोटे तार तथा कम लपेटों वाली बनाई जाती है । 

विशेषताएँ Characteristics 

सीरीज मोटर का स्टार्टिंग – टॉर्क बहुत अधिक होता है । कुछ मोटर्स में तो यह , फुल – लोड – टॉर्क का पाँच गुना तक होता है । सीरीज मोटर की विशेषता का अध्ययन निम्न तीन प्रकार के वक्रों द्वारा किया जाता है 

1.टॉर्क – लोड विशेषता Torque – Load Characteristic 

सीरीज मोटर में कम लोड पर , टॉर्क का मान भी कम होता है क्योंकि आर्मेचर – धारा तथा फील्ड फ्लक्स का मान निम्न रहता है । जैसे – जैसे लोड का मान बढ़ता है वैसे – वैसे टॉर्क का मान , आर्मेचर – धारा के वर्ग के समानुपात में बढ़ता है 

2.गति – लोड विशेषता speed Load Characteristic 

सीरीज मोटर में कम लोड पर गति उच्च होती है और जैसे – जैसे लोड बढ़ता जाता है , गति घटती जाती है ।  इसका अर्थ यह है कि यदि लोड का मान बहुत ही कम या शून्य हो जाए तो गति का मान बहुत अधिक बढ़ सकता है । इस दिव्यांत को आदि के द्वारा मोटर के साथ जोड़ा जाता है । यदि लोड को बैल्ट आदि के द्वारा जोड़ा जाए तो बैल्ट के टूट जाने की स्थिति में मोटर लोड हिल हो जाएगी और उसकी गति भयानक रूप से बढ़ जाएगी । 

गति – टॉर्क विशेषता Speed – Torque Characteristic 

सीरीज मोटर में जब टॉर्क निम्न होता है तो गति उच्च होती है क्योंकि N ~ 1 / 41 टॉर्क बढ़ने पर , मोटर की लोड – धारा बढ़ जाती है , फलस्वरूप मोटर की गति घट जाती है । इसका कारण है – लोड धारा बढ़ने से फील्ड – फ्लक्स में वृद्धि होना । 

उपयोग 

सीरीज मोटर का उपयोग ऐसे कार्यों के लिए किया जाता है जिनमें उच्च स्टार्टिंग टॉर्क आवश्यक होता है ; जैसे – ट्रैक्शन कार्य , क्रेन , भारी निर्माण कार्य में प्रयुक्त होने वाले ट्रक , होएस्ट ( hoist ) आदि । 

विशेष निर्देश

 सीरीज मीटर को लोड – रहित अवस्था में कभी नहीं चलाना चाहिए । लोड – रहित अवस्था में मोटर की गति , भयानक रूप से बढ़ सकती है और उसकी वाइण्डिग उखड़ सकती है । 

 शंट मोटर Shunt Motor 

शंट मोटर में फील्ड – वाइण्डिग , आमेचर तथा सप्लाई – स्रोत समानान्तर – क्रम में संयोजित होती है । अत : फील्ड – धारा और परिणामत : फील्ड – फ्लक्स का मान लगभग स्थिर रहता है । शंट मोटर की फील्ड – वाइण्डिग पतले तार तथा अधिक लपेटों वाली बनायी जाती है ।

विशेषताएँ Characteristics 

उसकी यान्त्रिक क्षति आदि की पूर्ति के लिए आवश्यक हो । शट मोटर को विशेषताओं का अध्ययन निम्न तीन प्रकार के वक्रो द्वारा किया जाता है । 

शर मोटर की गति में लोडरहित अवस्था में चलाया जा सकता है और इस अवस्था में मोटर को केवल इतने ही यॉर्क की आवश्यकता होती है जितनाव N 

गति – लोड विशेषता Speed – Load Characteristic 

शंट मोटर को गति में , लोड – रहित अवस्था से पूर्ण लोड अवस्था तक , बहुत थोड़ा अन्तर पैदा होता है , 

शंट मीटर में सभी का मान लगभग स्थिर रहता है । अतः केवल आमेचर – धारा ही चर पद होता है । लोड – रहित अवस्या का आमेचर – धारा  का मान बहुत कम होता है और फलतः मोटर की गति अधिकतम तोती है । पूर्ण लोड पर मोटर को गति , उसको लोड – रहित गति का 95 % तक होती है । 

 लोड रहित अवस्था से पूर्ण – लोड अवस्था तक गति का मान केवल । घटता है । अत : प्रयोगात्मक तौर पर शंट मीटर को स्थिर गति वाली मोटर माना जाता है । 

टॉर्क – लोड विशेषता Torque – load Characteristic 

 शट मोटर के लिए टॉर्क , आमेचर धारा  और फ्लक्स  से अनुक्रमानुपातो होता है  परन्तु फ्लक्स  का मान लगभग स्थिर रहता है । अतः में 

शंट मोटर का टॉर्क – लोड विशेषता वक्र दर्शाया गया है जो एक सीधी रेखा होती है . इसका तात्पर्य यह है कि टॉर्क , लोड – धारा ( जो कि आमेचर – धारा के लगभग बराबर होती है ) के अनुक्रमानुपाती है । शंट मोटर का स्टार्टिग – टॉर्क , पूर्ण – लोड – टॉर्क का लगभग 1.5 गुना होता है परन्तु इतना अधिक नहीं होता है जितना कि सीरीज मोटर का होता है । शेंट मोटर का गति नियमन  ( speed regultaion ) अच्छा होता है । 

गति – टॉर्क विशेषता Spred – Torque Characteristic 

शंट मोटर के लिए गति – टॉर्क विशेषता वक्र दर्शाया गया है । वक्र से स्पष्ट है कि टॉर्क वृद्धि का गति पर पड़ने वाला प्रभाव लगभग नगण रहता है ; टॉर्क बढ़ने पर , गति थोड़ी – सी घट जाती है । 

उपयोग Use 

शंट मोटर का उपयोग कम लोड वाली मशीनों को स्थिर गति पर चलाने के लिए किया जाता है ; जैसे – लकड़ी का रन्दा , गोलीय – आरी ( circular Saw ) , प्राइण्डर , पॉलिशर , ब्लोअर , गोटर जनित्र सैट छपाई मशीन आदि ।

 कम्पाउण्ड मोटर Compound Motor 

जिस डी.सी. मोटर में दो प्रकार की फील्ड – वाइण्डिग्स अर्थात् सीरीज तथा शंट फील्ड वाइण्डिग्स प्रयोग की जाती है वह कम्पाउण्ड मोटर कहलाती है । एक डी.सी. कम्पाउण्ड मशीन को मोटर अथवा जनित्र की भाँति प्रयोग किया जा सकता है । कम्पाउण्ड मोटर्स मुख्यतः दो प्रकार की होती है 

1. क्यूम्युलेटिव कम्पाउण्ड मोटर 

2. डिफरैन्शियल कम्पाउण्ड मोटर 

क्यूम्युलेटिव कम्पाउण्ड मोटर Cumulative Compound Motor 

जब किसी कम्पाउण्ड मोटर की सीरीज तथा शंट फील्ड वाइण्डिग को इस प्रकार संयोजित किया गया हो कि उसके द्वारा पैदा किए गए चुम्बकीय क्षेत्र , एक – दूसरे के साथ सहयोग करने वाले हों तो वह क्युम्पूलेटिव कम्पाउण्ड मोटर कहलाती है । ये मोटर्स निम्न दो प्रकार की होती हैं लोग – शंट , तथा शॉर्ट – शंट 

जनित्र की भाँति , लौंग – शंट क्यूम्युलेटिव कम्पाउण्ड मोटर में शंट फील्ड को , श्रेणी – क्रम में संयोजित आमेचर तथा सीरीज फोल्ड के , समानान्तर – क्रम में संयोजित किया जाता है । इसी प्रकार , शॉर्ट – शंट क्यूम्युलेटिव कम्पाउण्ड मोटर में शंट – फील्ड को केवल आमेचर के , समानान्तर क्रम में संयोजित किया जाता है 

 विशेषताएँ Characteristics

 क्यूम्युलेटिव कम्पाउण्ड मोटर्स की विशेषताओं का अध्ययन निम्न तीन प्रकार के वक्रों द्वारा किया जाता है 

A. गति – लोड विशेषता Speed – Load Characteristic 

 क्यूम्युलेटिव कम्पाउण्ड मोटर की गति , लोड वृद्धि होने पर शंट मोटर की अपेक्षा तो अधिक घटती है परन्तु सौरोज मोटर की अपेक्षा कम घटली है । इस प्रकार की मोटर , लोड – रहित अवस्था में एक नियत गति पर चलाई जा सकती है । 

B. टॉर्क – लोड विशेषता Torque – Load Characteristic

  क्यूम्युलेटिव कम्पाउण्ड मोटर में विकसित होने वाला टॉर्क पूर्ण – लोड तक शंट मीटर की अपेक्षा तो कम होता है , परन्तु सीरीज मोटर की अपेक्षा अधिक होता है । क्यूम्युलेटिव कम्पाउण्ड मोटर का स्टार्टिग – टॉर्क शंट मोटर के स्टार्टिग टॉर्क की अपेक्षा अधिक होता है ।

C. टॉर्क – लोड विशेषता Torque – Speed Characteristic

 लोड वृद्धि के साथ मोटर की गति घटती है परंतु उसका टॉर्क बढ़ता है इस प्रकार यहां मोटर अधिक लोड भी से लेती है और जल्दी ही ओवरलोड नहीं होती है

उपयोग Use 

क्यूम्युलेटिव कम्पाउण्ड मोटर ऐसी मशीन 9 को को चलाने के लिए प्रयोग की जाती है जिन्हें स्थित गति पर चलाना अपेक्षित हो और जिनका लोट परिवर्तित होता रहता है जैसे प्रैस, रोलिंग मशीन ,कंप्रैसर, एलीवेटर आदि

डिफरैन्शियल कम्पाउण्ड मोटर Differential Compound Motor 

जव किसी कम्पाउण्ड मोटर की सीरीज तथा शंट फील्ड वाइण्डिग को इस प्रकार संयोजित किया गया हो कि उनके द्वारा पैदा किए गए चुम्बकीय – क्षेत्र , एक दूसरे के विपरीत कार्य करने वाले हो तो वह डिफरैन्शियल कम्पाउण्ड मोटर कहलाती है । ये मोटर्स इन दो प्रकार की होती है लॉग – शंट तथा शॉर्ट – शंट । 

 क्योंकि डिफरैन्शियल मोटर में सीरीज – फील्ड – फ्लक्स , शंट फील्ड – फ्लक्स के विपरीत दिशा में कार्यरत होता है , अत : इस मोटर को स्टार्ट करने में कुछ कठिनाई पैदा होती है । इस कठिनाई को दूर करने के लिए , स्टार्टिग के समय सीरीज – फील्ड को ‘ शॉर्ट – सर्किट ‘ कर दिया जाता है और मोटर के स्टार्ट हो जाने के बाद उसे परिपथ में संयोजित कर दिया जाता है । 

विशेषताएँ Characteristics 

डिफरैशियल कम्पाउण्ड मोटर्स की विशेषताओं का अध्ययन निम्न तीन प्रकार के वक्रों द्वारा किया जाता है 

A. गति – लोड विशेषता Speed – Load Characteristic 

 लोड धारा वृद्धि के साथ – साथ मोटर को गति में भी वृद्धि होती है । इसका कारण यह है कि लोड वृद्धि से मोटर का परिणामी फ्लक्स घटता है ।

B. टॉर्क – लोड विशेषता Torque – load Characteristic

लोड करंट वृद्धि के साथ-साथ मोटर के टॉर्क में भी वृद्धि होती है

C. टॉर्क – लोड विशेषता Torque – Speed Characteristic

लोड करंट वृद्धि के साथ-साथ मोटर की गति तो बढ़ती है परंतु ओवरलोडिंग  प्रभाव के कारण धीरे-धीरे बढ़ती है और मोटर के विपरीत दिशा में गतिमान हो जाने की संभावना रहती है

उपयोग Use

यह मोटर ओवरलोड स्थिति में अपने  अस्थिर  व्यवहार के कारण सामान्य प्रयोग नहीं की जाती है इसका प्रयोग केवल ऐसे कार्य के लिए किया जाता है जिनमें फुल लोड का मान स्थिर रहता है जैसे बैटरी चार्जिंग सेट ,बूस्टर आदि।

FAQ

1 .डीसी मोटर की दक्षता कितनी होती है?

Ans   दक्षता 0% होती है। 25% के भार के साथ, दक्षता 83% है। 50% के भार के साथ, दक्षता 87% है।

2 .डीसी मोटर का कार्य क्या है?

Ans वैद्युतिक ऊर्जा को यान्त्रिक ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है। 

3 .डीसी मशीन की आवश्यकता क्यों पड़ती है?

Ans  डी सी मोटरों के चाल का नियन्त्रण बहुत आसानी से हो जाता है।  डीसी सीरीज मोटर, कम चाल पर बहुत अधिक बलाघूर्ण उत्पन्न करती है, इसलिए यह विद्युत कर्षण (इलेक्ट्रिक ट्रैक्शन) के लिए अत्यन्त उपयोगी है। इसी प्रकार डीसी सीरीज मशीन, डी सी तथा ए सी दोनों से चल सकती है, अतः इसे ‘युनिवर्सल मोटर’ कहते हैं।

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