गुलीवर की यात्रा की कहानी | Story of gulliver’s journey

गुलीवर की यात्रा की कहानी  



गुलीवर जहाज पर काम करता था। उसे यात्राएँ करना अच्छा लगता था। हमेशा की तरह इस बार भी वह नए सफर पर निकला। अचानक तूफ़ान में उसका जहाज फँस गया। सभी यात्री समुद्र में डूबने लगे। गुलीवर किसी तरह किनारे पहुँचा। वह बहुत थक गया था। इसलिए वह वहीं जमीन पर सो गया।


जब उसकी नींद खुली तो उसने अपने आपको पतले-पतले धागों में बँधा हुआ पाया। उसके अचरज की तब सीमा न रही, जब उसने देखा कि उसकी छाती पर लगभग छह इंच का एक आदमी खड़ा था। इतना छोटा आदमी उसने पहली बार देखा था।


कुछ देर बाद उसी के जैसे छोटे-छोटे लगभग चालीस आदमी उसके शरीर पर चढ़ गए। उनका नेता हाथ में तीर-कमान लिए हुए था। गुलीवर ने जोर से एक चीख मारी जिसे सुन वे सब भाग खड़े हुए। किंतु थोड़ी ही देर में वे सब फिर इकट्ठे हो गए। उनमें से एक ने अपना हाथ ऊपर उठाया और जोर से चिल्लाया, “हेकिना देगुल!”


उसके सभी साथियों ने इसी आवाज को दुहराया। गुलीवर की समझ में कुछ न आया। उसने उठने की कोशिश की और वे धागे टूट गए जिनसे उसे बाँधा गया था। गुलीवर की समझ में आ गया कि जिन्हें वह धागे समझ रहा था, वास्तव में वे उस जगह के रस्से थे।


जैसे ही गुलीवर उठकर बैठा, उस पर तीरों की बौछार होने लगी। वे तीर उसे सुई की भाँति पीड़ा दे रहे थे। अंत में गुलीवर ने हार मानने का अभिनय किया और फिर से लेट गया। यह देख सभी छोटे कदवाले आदमी बड़े खुश हुए। उन्होंने तीर बरसाना बंद कर दिया।


थोड़ी देर बाद गुलीवर के पास ही उन लोगों ने एक मंच बनाया। उस पर एक व्यक्ति भाषण देने लगा। गुलीवर को विश्व की अनेक भाषाएँ आती थीं किंतु इन बौनों की भाषा बिलकुल अलग थी इसलिए वह समझ न सका।


गुलीवर को बड़ी ज़ोर की भूख लग आई थी। यह बात उसने अंग्रेजी में बोलकर समझानी चाही। पर वहाँ यह भाषा समझनेवाला कोई नहीं था। हारकर इस बात को उसने संकेतों से उन लोगों को समझाया। उसकी बात समझते ही वे लोग टोकरे भर-भरकर खाद्य सामग्री ले आए। उस देश के हिसाब से यह सामग्री सैकड़ों व्यक्तियों के लिए पर्याप्त थी लेकिन गुलीवर के लिए उसकी मात्रा बहुत अधिक नहीं थी। जब गुलीवर ने भोजन करना बंद किया तो वहाँ के लोगों ने खुशी के मारे तालियां बजाई।

खाना खाने के बाद गुलीवर को नींद आने लगी। जल्दी ही वह खरटि भरने लगा। इसके बाद वह कई घंटे सोया क्योंकि उसके खाने में नींद की गोलियाँ मिला दी गई थीं।‌


वहाँ के निवासी बड़े अच्छे गणितज्ञ थे। वे लोग जहाज बनाने में भी बड़े निपुण थे। बड़े-बड़े जहाज़ बनाकर वे विशेष गाड़ियों में लादकर जहाजों को समुद्र तक ले जाते थे। ऐसी ही एक गाड़ी में बेहोश गुलीवर को लादा गया।


इस काम में चार घंटे लगे। पाँच सौ सैनिकों ने गुलीवर की चौकसी की। उन्हें भय था कि कहीं यह भीमकाय आदमी जागने पर भागने की कोशिश न करे। इसलिए उसके पैरों में जंजीरें बँधवा दी गईं। गाड़ी को खींचकर राजमहल तक लाया गया। वहाँ स्वयं राजा ने गुलीवर की अगवानी की। उन्होंने इशारों से गुलीवर से बात की। इसके बाद राजा ने गुलीवर को वहाँ की भाषा सिखाने के लिए एक पंडित नियुक्त कर दिया।


कुछ दिनों में गुलीवर को वहाँ की भाषा का कामचलाऊ ज्ञान हो गया। अब उसके लिए राजा तथा अन्य व्यक्तियों से बात करना आसान हो गया। राजा ने उसके पैर की जंजीरें खुलवा दीं। एक दिन राजा ने गुलीवर से कहा, “हमारे पड़ोसी देश ब्लेफुस्कू के सम्राट ने बहुत शक्तिशाली जहाजी बेड़ा तैयार कर लिया है। वह जल्दी ही हमारे देश लिलिपुट पर आक्रमण करेगा।”


गुलीवर ने कहा, “आप चिंता न कीजिए। मेरे रहते कोई आपका बाल भी बांका नहीं कर सकता।”


इसके बाद वह तट के पास की पहाड़ी पर चला गया। अपने टेलिस्कोप से उसने देखा कि शत्रु देश ने पचास से भी ज्यादा जहाज खड़े कर रखे हैं। गुलीवर ने साठ रस्से तैयार किए और इतने ही काँटे लगे मोटे तार भी बनाए। इस सामग्री को लेकर वह ब्लेफुस्कू को खाड़ी की ओर चल दिया। खाड़ी में घुसकर उसने वहाँ खड़े शत्रुओं के सभी जहाजों को काँटों में फँसा लिया। इसके बाद सबको रस्सों में बाँध दिया। फिर रस्सों को खींचता हुआ वह लिलिपुट की ओर चल दिया।

ब्लेफुस्कू के सैनिक उसके भीमकाय शरीर को देखकर दंग रह गए। उन्होंने उसे रोकने का प्रयास किया लेकिन वे सफल न हुए।

लिलिपुट के राजा अपने नए मित्र से बहुत खुश हुए।

कुछ दिन बाद गुलीवर के राजा से स्वदेश जाने की अनुमति मांगी राजा के संहर्ष अनुमति दे दी उसके लिए एक विश्वास जहाज बनाया गया तो ढेर सारी खाद्य सामग्री और जरूरत का सामान भरकर राजा ने उसे विदा किया गुलीवर अपने देश लौट बहुत खुश हुआ

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