ट्रांसफार्मर कितने प्रकार के होते हैं?| type of Transformers

दोस्तों आज हम ट्रांसफार्मर के प्रकार के बारे में जानेंगे कि ट्रांसफार्मर कितने प्रकार के होते हैं

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ट्रांसफार्मर कितने प्रकार के होते हैं?

वैघुतिक कार्यों में प्रयोग किए जाने वालेले ट्रांसफॉर्मर्स का वर्गींकरण कई प्रकार से किया जा सकता है जो निम्न प्रकार हैं
1. आउटपुट वोल्टता के अनुसार( According to the output voltage )
2. क्रोड की संरचना के आधार पर (On the basis of Core’s Construction]
3.  फेज की संख्या के आधार पर (on the Basis of No. of Phases]
4.  शीतलन प्रणाली के आधार पर (on  the basis of Cooling Systern)
5.  आउटपुट क्षमता के आधार पर (on the basis of Output capacity)
6. व्यापारिक आधार पर ( on  commercial basis)
7. स्थापना स्थल के आधार पर (on the Basis of lucation)

आउटपुट वोल्टता के आधार पर On the Basis of Output Voltage

आउटपुट वील्टता के आधार पर ट्रांसफॉर्मर के निम्न दो प्रकार के होते हैं
() उच्चायक ट्रांसफॉर्मर तथा
(li) अपचारक ट्रांसफॉर्मर।

उच्चायक ट्रांसफॉर्मर Step-up Transformer

जो ट्रांसफॉर्मर इनपुट वोल्टेज को बढ़ाकर, अधिक आउटपुट वोल्टेज प्रदान करता है वह उच्चायक ट्रांसफॉर्मर कहलाता है। इसका उपयोग विद्युतउत्पादन केन्द्रों पर आल्टरनेटर द्वारा पैदा किए गए वोल्टेज को उच्च वोल्टेज पर पारेषण करने हेतु किया जाता हैं। यह प्राय: 3-फेज,डेल्टा-डेल्टा प्रकार का होता है।

अपचायक ट्रांसफॉर्मर Step-down Transformer

जो ट्रांसफॉर्मर इनपुट वोल्टेज को घटाकर निम्न आउटपुट वोलटेज प्रदान करता है, बह अपचायक ट्रांसफॉर्मर कहलाता है। शहरी क्षेत्रों में डिस्ट्रीब्यूशन वोल्टेज का मान प्रायः1.1,2.2, 8.8, 6.6 या 11 Kv होता है अत: उसे 400 V में परिवर्तित करने के लिए अपचायक ट्रांसफॉमर प्रयोग किया जाता है। इसी प्रकार 22,33, 66, 110, 132, 220 एवं 440 kV विद्युत उप-केन्द्रों पर आवश्यक निम्न वोल्टेज का आउटपुट तैयार करने के लिए भी अपचायक ट्रांसफॉर्मर प्रयोग किए जाते हैं। ये प्रायः 3 फेज, डेल्टा-स्टार प्रकार के होते हैं।

 2. क्रोड की संरचना के आधार पर On the Basis of Core’s Construction

ट्रांसफॉर्मर में प्राइमरी वाइप्ंडिग द्वारा स्थापित चुम्बकीय क्षेत्र के चुम्बकीय परिपथ को पूर्ण रखने तथा उसे सघन रखने के लिए लौह क्रोड का प्रयोग आवश्यक होता है। ये क्रोड E, I,  L,J C आदि आकार की होती हैं। यदि लोह क्रोड ठोस हों तो उनमें एडी धारा क्षति था हिस्टैमिस क्षति का मान काफी अधिक होगा; अत: लैमिनेटेड सिलिकॉन स्टील कोड प्रयोग को जाती हैं। इसके निर्माण के लिए लौह में 38% से 4.5  तक

सिलिकॉन धातू मिश्रित की जाती है । इनकी मोटाई 0.35 मिमी से 0.5 मिमी तक रखी जाती है और इनके एक अश्वा दोनों पाश्वों पर वानिश आलेपित होती है।

कोड को संरचना के आधार पर निम्न प्रकार के ट्रांसफॉर्मर होते हैं-

(1) क्रोड प्रकार का ट्रांसफॉर्मर,

(i) शैल प्रकार का ट्रांसफॉर्मर सथा

(if) बैरी प्रकार का ट्रांसफॉर्मर।

क्रोड प्रकार का ट्रांसफॉर्मर, Core Type Transformer

 इस प्रकार के ट्रांसफॉर्मर में L-आकृति की स्टैम्पिंग्स के दो सैट प्रयोग करके, आयताकार क्रोड तैयार की जाती है। इस क्रोड की दोनों भुजाओं पर प्राइमरी वाइण्डिंग तथा उसके ऊपर सेकण्डरी वाइण्डिंग स्थापित की जाती है। क्रोड में केवल एक चुम्बकीय- मार्ग स्थापित होता है। इस प्रकार के ट्रांसफॉर्मर, उच्च वोल्टेज पर निम्न आउटपुट शक्ति प्रदान करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।

शैल प्रकार का ट्रांसफॉर्मर Shell Type Transformer

इस प्रकार के ट्रांसफॉर्मर में E तथा /-आकृति की स्टैम्पिग्स प्रयोग करके, दुहरी आयताकार क्रोड तैयार की जाती है। इस क्रोड की मध्य भुजा पर प्राइमरी वाइप्डिंग तथा उसके ऊपर सेकण्डरी वाइण्डिंग स्थापित की जाती है। क्रोड में दो समानान्तर चुम्बकीय-मार्ग स्थापित होते हैं।इस प्रकार के ट्रांसफॉर्मर सिंगल फेज सप्लाई में वोल्टेज स्टेप- अप तथा स्टेप- डाउन करने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।

बैरी प्रकार का ट्रांसफार्मर berry type transformer

इस प्रकार के ट्रांसफार्मर में एक विशेष प्रकार की कोड प्रयोग की जाती है जो बैरी आकार की कोड कहलाती है इसमें कई आयताकार फ्रेम इस प्रकार लगाए जाते हैं की सभी फेमो की एक भुजा मुख्य के मध्य भाग से गुजरे मुख्य कोड पर प्राइमरी वाइंडिंग तथा उसके ऊपर सेकेंडरी वाइंडिंग स्थापित की जाती है कोड में अनेक चुंबकीय मांर्ग स्थापित होने के कारण चुंबकीय फ्लक्स का लीकेज न्यूनतम रहता है कोड की विशिष्ट संरचना के कारण वाइंडिंग की ऊष्मा का विकिरण होता रहता है और वह अन्य प्रकार के ट्रांसफार्मर में की अपेक्षा शीतल रहती है इसी प्रकार के ट्रांसफार्मर अधिक शक्ति क्षमता वाले होते हैं और इसका प्रयोग विशेष प्रकार के कार्यों के लिए ही किया जाता है।

फेजेज की संख्या के आधार पर On the Basis of Number of Phases 

फेज की संख्या के आधार पर ये निम्न प्रकार के होते हैं 

( i ) सिंगल – फेज ट्रांसफॉर्मर तथा 

( ii ) 3 – फेज ट्रांसफॉर्मर । 

सिंगल – फेज ट्रांसफॉर्मर्स Single Phase Transformers 

एक फेज वाली ए.सी. सप्लाई पर कार्य करने वाले ट्रांसफॉर्मर्स , सिंगल – फेज ट्रांसफॉर्मर कहलाते हैं । ये प्राय : 250 वोल्ट तक कार्य करने वाले होते हैं और क्रोड प्रकार के तथा शैल प्रकार के होते हैं । इनका उपयोग आमतौर पर घरेलू उपयोग के उपकरणों में किया जाता है , जैसे – वोल्टेज स्टैबिलाइजर , रेडियो रिसीवर , टी.वी. रिसीवर , इन्वर्टर आदि । 

3 – फेज ट्रांसफॉर्मर्स 3 – Phase Transformers 

तीन फेज वाली ए.सी. सप्लाई पर कार्य करने वाले ट्रांसफॉर्मर्स , 3 – फेज ट्रांसफॉर्मर्स कहलाते हैं । इनमें तीन प्राइमरी और तीन सेकण्डरी बाइण्डिग होती है तथा ये प्राय : शैल प्रकार की क्रोड पर बनाए जाते हैं । इनका उपयोग विद्युत उत्पादन केन्द्रों पर उत्पन्न की गई ( 11KV तक ) ए.सी. को 66 , 110,132,220 , 440kV तक स्टैप – अप करके पारेषण हेतु किया जाता है । इसके अतिरिक्त , विद्युत वितरण प्रणाली में प्रयुक्त 11 kV से 4000 के अपचायक ट्रांसफॉर्मर्स भी 3 – फेज प्रकार के ही होते हैं जो डिस्ट्रीब्यूशन ट्रांसफॉर्मर ( distribution transformer ) कहलाते हैं ।

 शीतलन प्रणाली के आधार पर On the Basis of Cooling System 

ट्रांसफॉर्मर एक स्थैतिक उपकरण है । ट्रांसफॉर्मर क्षतियों के कारण , इसमें ऊष्मा पैदा हो जाती है जो वाइण्डिग्स के अचालक – आवरण को नष्ट कर , वाइण्डिग्स को शॉर्ट – सर्किट कर सकती है । इस स्थिति को पैदा न होने देने के लिए ट्रांसफॉर्मर में शीतलन प्रणाली की व्यवस्था करना आवश्यक है । इसके विपरीत मोटर , जनित्र आदि मशीनों में घर्षण – जनित ऊष्मा के विसरण के लिए उसके घूर्णीय भाग के साथ एक पंखा लगाया जाता है ; परन्तु , ट्रांसफॉर्मर में कोई घूर्णीय भाग नहीं होता , इसलिए शीतलन प्रणाली की व्यवस्था आवश्यक है । शीतलन प्रणाली के आधार पर निम्न प्रकार के ट्रांफॉर्मर होते हैं 

( i ) प्राकृतिक रूप से शीतलित ट्रांसफॉर्मर , 

( ii ) तेल द्वारा शीतलित ट्रांसफॉर्मर , 

( iii ) जल द्वारा शीतलित ट्रांसफॉर्मर  

( iv ) वायु दाब द्वारा शीतलित ट्रांसफॉर्मर ।

प्राकृतिक रूप से शीतलित ट्रांसफॉर्मर Naturally Cooled Transformer 

13KVA क्षमता तक के ट्रांसफॉर्मसं में क्रोड का क्षेत्रफल अधिक रखा जाता है जिससे कि ये उत्पन्न ऊष्मा को अवशोधित कर ले और वायु के प्राकृतिक प्रवाह से ऊष्मा को वायु में विसरित कर दें । इसके अतिरिक्त , क्रोड में तथा खोल में आवश्यक संख्या में वायु- मार्गों ( ducts ) के द्वारा ट्रांसफॉर्मर को प्राकृतिक रूप से ठंडा रखा जाता है । 

तेल द्वारा शीतलित ट्रांसफॉर्मर Oil Cooled Transformer 

तेल द्वारा ट्रांसफॉर्मर्स का शीतलन निम्न दो प्रकार से किया जाता है 

प्राकृतिक रूप से तेल द्वारा शीतलन Naturally Oil Cooling 

इस विधि में ट्रांसफॉर्मर में एक टैंक होता है जिसमें ट्रांसफॉर्मर – ऑयल भरा होता है । वाइण्डिग्स तथा क्रोड , तेल में डूबी रहती हैं । तेल , वाइण्डिग्स को ठण्डा रखता है और साथ हो वाइण्डिग्स के लिए एक अतिरिक्त अचालक – आवरण का कार्य भी करता है । क्रोड तथा वाइण्डिग्स में पैदा हुई ऊष्मा , तेल द्वारा अवशोषित कर ली जाती है और टैंक की बॉडी तथा Transformers पाइपों के माध्यम से वायु में फैल जाती है , कुछ ट्रांसफॉमर्स में टैंक को दीवारे नालीदार लौह – शीट से बनाई जाती हैं जिससे की वाइण्डिग्स आदि में पैदा हुई ऊष्मा , सुगमता से वायु में फैल सके । पैदा हुई ऊष्मा से तेल हल्का हो जाता है और वह ऊपरी तल पर पहुंच जाता है । वहाँ से वह ठंडा होने के लिए पाइपों में चला जाता है और पाइयों से पुनः टैंक की तली में पहुंच जाता है । इस प्रकार तेल , स्वत : ही टैंक में नीचे से ऊपर और ऊपर से नीचे ( पाइपो के माध्यम से ) गतिमान रहता है  और शीतलन क्रिया करता रहता है । ट्रांसफॉर्मर टैक में तेल का स्तर , पाइयों के मुँह से ऊंचा रखा जाता है जिससे कि शीतलन प्रक्रिया जारी रहे । 

ऑयल ब्लास्ट शीतलन Oil Blast Cooling 

इस विधि में ट्रांसफॉर्मर टैक के साथ एक रेडिएटर टैंक भी जुड़ा होता है । रेडिएटर में एक वायु पम्प की सहायता से वायु प्रवाह के द्वारा तेल को ठण्डा किया जाता है । ठण्डा किया गया तेल , रेडिएटर टैंक से पुनः मुख्य टैंक में पहुंचा दिया जाता है । यह सारा कार्य दो पम्पों की सहायता से सम्पन्न किया जाता है । इस शीतलन विधि का उपयोग 500 KVA से अधिक क्षमता वाले ट्रांसफॉर्मर में किया जाता है । 

जल द्वारा शीतलित ट्रांसफॉर्मर Water Cooled Transformer 

इस प्रणाली में ट्रांसफॉर्मर वाइण्डिग्स तथा क्रोड को तेल में डुबोकर रखा जाता है और साथ ही उन्हें टैक के ऊपरी भाग में से एक छल्लेदार जल – पाइप गुजारा जाता है । जल – पाइप में , एक ओर से ठण्डा जल प्रवेश करता है जो ट्रांसफॉर्मर की ऊष्मा को अवशोषित करता हुआ , दूसरी ओर से बाहर निकल जाता है , देखे चित्र । यह प्रणाली , 500 kVA से अधिक क्षमता वाले ट्रांसफॉर्मर्स में अपनायी जाती है । इस विधि में इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि तेल का दबाव , जल के दबाव से अधिक रहें , जिससे कि जल , तेल मे मिश्रित न हो सके और उसके अचालकत्व ( insulation ) को नष्ट न कर सके ।

FAQ

Q. 1 ट्रांसफॉर्मर का मात्रक क्या है? 

Ans :-इसका SI मात्रक वेबर (weber) है; व्युत्पन्न मात्रक वोल्ट-सेकेण्ड है तथा CGS मात्रक ‘मैक्सवेल’ है।

Q.2 ट्रांसफॉर्मर में कौन सा ऑयल यूज़ होता है?

Ans:-ट्रांसफॉर्मर मे एक प्रकार का पेट्रोलियम तेल उपयोग किया जाता है.

Q.3 ट्रांसफॉर्मर का आविष्कार किसने और कब किया था 

Ans:-ट्रांसफॉर्मर का आविष्कार माइकल फैराडे ने 1831 में ब्रिटेन में किया था 

Q. 4 शक्ति ट्रांसफॉर्मर को ठंडा करने की कौन सी विधि सामान्य है?

Ans:-वायु प्राकृतिक विधि द्वारा उत्पन्न ऊष्मा में ट्रांसफॉर्मर को प्राकृतिक हवा के संचलन से ठंडा किया जाता है

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