Output device क्या है
जिस किसी भी device के द्वारा जब हम Computer में कुछ input करने के बाद, हमें जिस Device में output मिलता है, उसे हम Output device कहते हैं.
Output device कितने प्रकार के होते हैं?
वह डिवाइस जिसके के द़ारा हार्ड कॉपी और सॉफ्ट कॉपी के रूप में रिजल्ट प्राप्त करते हैं उन्हें आउटपुट डिवाइस कहते हैं हार्ड कॉपी रिजल्ट को प्रिंटर के माध्यम से निकाला जा सकता है और सॉफ्ट कॉपी रिजल्ट मॉनिटर पर देखा पाते हैं।
1. Printer
2. Plotter
3. Moniter
4. Speaker
5. Projector
6. Microfilm
7. Microfiches
1. प्रिंटर क्या है
प्रिंटर एक इलेक्ट्रोमेकेनिकल उपकरण होता है । इसमें इलेक्ट्रॉनिक सर्किट व मेकेनिकल ऐसेम्बलीस होती है । यह ऐसेम्बलीस , इलेक्ट्रॉनिक सर्किट के द्वारा नियंत्रित की जाती है । इसलिये इस इलेक्ट्रॉनिक सर्किट को कंट्रोल इलेक्ट्रॉनिक्स या प्रिंटर इलेक्ट्रॉनिक्स कहते है ।
प्रिंटर इलेक्ट्रॉनिक्स निम्न कार्य करता है :
( 1 ) कमांडस् को डिकोड ( समझना ) करना
( 2 ) कंट्रोल सिग्नलस् पैदा करना
( 3 ) प्रिंट मेकेनिक्स को एक्टिव ( प्रेरित ) करना
जिससे वह कम्प्यूटर से प्राप्त होने वाले डेटा को प्रिंट कर सके ।
मेकेनिकल ऐसेम्बली में निम्न अवयव होते हैं –
( 1 ) प्रिंट हेड ऐसेम्बली
( 2 ) प्रिंट केरिएज मोटर
( 3 ) रिबन ऐसेम्बली
( 4 ) पेपर मूवमेंट ऐसेम्बली
( 5 ) सेन्सर ऐसेम्बलीस् , इत्यादि ।
प्रिंटरस् की कौन कौन सी विशेषताएँ है
( 1 ) स्पीड ( गति ) :
गति यह दर्शाती है कि प्रिंटर कितना तेज कार्य करता है । सामान्यत : प्रिंटर की गति CPS ( केरेक्टर सेकण्ड ) या LPM ( लाईन / मिनिट ) में नापी जाती है ।
( 2 ) क्वालिटी ( उत्तमता ) :
इससे तात्पर्य प्रिंट हुए अक्षर के आकार – प्रकार से होता है । जैसे ड्राफ्ट , NLQ ( नियर लेटर क्वालिटी ) या LQP ( लेटर क्वालिटी प्रिंटर ) ।
( 3 ) केरेक्टर सेट ( अक्षर समूह ) :
इससे तात्पर्य होता है । कि कुल कितने अक्षरों का समूह ( जिसमें डेटा केरेक्टर व कंट्रोल केरेक्टरस् शामिल है ) प्रिंटर पहचान सकता है ।
( 4 ) इन्टरफेस ( आदान – प्रदान ) :
इससे तात्पर्य होता है कि प्रिंटर को किस तरह की इंटरफेसिंग प्रदान की गई है अर्थात् उसे डेटा ( केरेक्टरस् ) सिरिअल या पेरेलल रूप में मिलेंगे ।
( 5 ) बफर साईज :
इससे तात्पर्य होता है कि कोई प्रिंटर प्रिंट करने से पूर्व कितने डेटा केरेक्टरस् अपनी बफर मेमोरी में रख सकता है ।
( 6 ) प्रिंट मेकेनिज्म ( प्रिंटिग की तकनीक ) :
इससे तात्पर्य होता है कि कौन सा प्रिंटिग का तरीका प्रिंट करने के लिये उपयोग किया गया है । जैसे – डॉट मेट्रिक्स , इम्पेक्ट डेजी व्हील , इम्पेक्ट गोल्फबाल , इलेक्ट्रो सेन्सीटिव डॉट मैट्रिक्स , बैण्ड , बेल्ट , इंकजेट , लेजर इत्यादि ।
( 7 ) प्रिंट मूड ( प्रिंटिंग का प्रकार ) :
इससे तात्पर्य यह है कि प्रिंटिग सिरिअल हो रही है या पेरेलल हो रही है ।
( 8 ) प्रिंट साइज :
यह बताता है कि एक लाइन में कितने केरेक्टरस् ( प्रिंट होने वाले कुल कालमों की संख्या ) होंगे व उनका आकार क्या होगा ।
( 9 ) प्रिंट डायरेक्शन :
यह बताता है कि प्रिटिंग की दिशा किस तरह की होती है । जैसे यूनिडायरेक्शन ( एक ही दिशा में ) या बायंडायरेक्शनल ( दोनों दिशा में ) या रिवर्स ( उल्टी दिशा में ) इत्यादि ।
प्रिंटर कितने प्रकार के होता है?
प्रिंटरस् को हम सामान्यत : दो तरीकों के आधार पर विभाजित कर सकते हैं । वे इस प्रकार हैं :
( 1 ) प्रिटिंग सिक्वेन्स के आधार पर :
( i ) केरेक्टर / सिरिअल प्रिंटर : ऐसे प्रिंटर जो एक बार में एक ही अक्षर प्रिंट करते हो ।
( ii ) लाईन / पेरेलल प्रिंटर : ऐसे प्रिंटर जो एक बार एक लाईन प्रिंट करते है ।
( 2 ) प्रिंटिंग तकनीक के आधार पर :
( 1 ) इम्पेक्ट प्रिंटर : ये इलेक्ट्रोमेकेनिकल प्रिंटरस् होते हैं , जिनमें या तो हेमर ( हथौड़ा ) या पिन्स होती हैं , जिनके रिवन व पेपर पर स्ट्राइक ( ठोककर ) से टैक्स प्रिंट होता है ।
( ii ) नान इम्पेक्ट प्रिंटर : इनमें पिटिंग के लिये इलेक्ट्रोमेकेनिकल पद्धति का उपयोग न करते हुए ( अर्थात् हेड व रिबन का सीधे संबंध न होते हुए ) विभिन्न अस्पृश्य पद्धतियों जैसे थर्मल , केमिकल , इलेक्ट्रोस्टेटिक , लेजर बीम या इंकजेट का उपयोग करते है ।
केरेक्टर इम्पेक्ट प्रिंटर क्या है
( i ) DMP ( डॉट मेट्रिक्स प्रिंटर ) :
इस तरह के प्रिंटर में किसी केरेक्टर को प्रिंट करने के लिये डॉट मैट्रिक्स ( जैसे 5×7 या 7×9 डॉट मैट्रिक्स सिंगल प्रिंट हेड के साथ ) में से कुछ डॉट चुनते है । किसी एक केरेक्टर की प्रिटिंग के लिये एक समय में एक डॉट कॉलम का उपयोग करते है । फिर इसमें से जरूरी डॉट प्रिंट होने के बाद अगले डॉट कॉलम को और इसी तरह से पूराकेरेक्टर प्रिंट करते है इस प्रिंटर की प्रिटिंग गति 30 से 600 CPS ( केरेक्टर पर सेकण्ड ) के बीच होती है । ये बायडायरेक्शनल ( अर्थात् एक लाईन बांये से दांयी ओर व दूसरी लाईन दांये से बांयी ओर प्रिंट करते है ) प्रिंटरस् होते है । इनका कोई निश्चित केरेक्टर फान्ट ( अर्थात् उपलब्ध केरेक्टर समूह ) नहीं होता है परंतु यह बोल्ड , इटालिक , ग्राफिक व अलग – अलग आकार के अक्षर प्रिंट कर सकते है ।
( ii ) डेज़ी व्हील प्रिंटर या LQP ( लेटर क्वालिटी प्रिंटर )
डेज़ी व्हील एक LQP ( लेटर क्वालिटी प्रिंटर ) होता है तथा LQP का उपयोग वहाँ पर किया जाता है जहाँ पर प्रिटिंग की क्वालिटी बहुत ज्यादा जरूरी होती है । यह DMP से बहुत धीमा होता है क्योंकि इसकी गति 10-90 CPS होती है । इनके कुछ निश्चित फान्ट पेटर्न होते है जो प्रिटिंग में उपयोग किये जाते है तथा ये ग्राफिक्स को सपोर्ट नहीं करते है । ये बहुत मँहगे होते है ।
केरेक्टर नान – इम्पेक्ट प्रिंटरस् क्या है
( i ) थर्मल प्रिंटर ( Thermal printer ) क्या है
इनमें एक विशेष हीट सेन्सीटिव ( उष्मा संवेदनशील ) पेपर का उपयोग किया जाता है । प्रिंट हेड में कुछ हीटिंग अवयव होते है तथा केरेक्टर वही मैट्रिक ऑफ डाट्स की मदद से प्रिंट होता है । जब किसी विशेष हीटिंग अवयव को स्वीच ऑन करते है तब पेपर पर उससे संबंधित स्पॉट गरम हो जाता है जिससे वह डार्क ( काला ) हो जाता है । इस प्रकार से पेपर पर कोई डाट्स जल जाता है जिससे केरेक्टर या ग्राफिक्स का निर्माण होता है । कुछ थर्मल प्रिंटर में पेपर तो सामान्य होता है परन्तु रिबन हीट सेन्सीटिव होता है और जब रिबन का कोई स्पॉट गरम किया जाता है तब पेपर के स्पॉट पर इंक की डॉट का फायर ( बारिश ) होता है ।
( ii ) इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रिंटरस् क्या है
( Electrostatic printer )
यह भी प्रिटिंग के लिये डॉट मैट्रिक्स का ही उपयोग करता है । इसमें पेज लगातार घूमता रहता है तथा इलेक्ट्रोस्टेटिक प्रिंटर की प्रिटिंग पिन्स् इस पेज पर स्माल इलेक्ट्रिक चार्ज छोड़ती है । इसके बाद जब वह पेपर विपरीत चार्जड् टोनर पारटिकल्स ( कणों ) के संपर्क में आता है तो पेपर के चार्जड् पारटिकल्स् इन विपरीत चार्जड् पारटिकल्स को पकड़ लेते है । ( अर्थात् पेपर टोनर को उस स्पॉट पर चुनता है जहाँ पर प्रिंटिंग पिन ने उसे चार्ज किया था । ) इसके बाद पेपर को फ्यूजिंग प्रोसेस ( गलाने की प्रक्रिया ) से गुजारा जाता है जिससे टोनर , पेपर पर मेल्ट ( पिघलना ) हो जाता है व इस प्रकार केरेक्टर बनता है ।
( iii ) इंकजेट प्रिंटर ( Ink jet printer ) क्या है
ये प्रिंटर भी डॉट मैट्रिक्स का ही उपयोग करते है किन्तु साथ ही इन दो में से कोई एक विधि का उपयोग जरूर करते है :
( 1 ) स्टेडी स्ट्रीम इंकजेट या
( 2 ) ड्राप – आन – डिमांड इंकजेट
इस विधि में प्रिंट हेड के एक या अधिक नोजल्स् ( छेद ) छोटे छोटे से इंक ड्राप्स ( बूंदे ) का एक लगातार फव्वारा छोड़ते हैं । इस इंक में बहुत अधिक आयरन के अवयव होते है जोकि मैग्नेटिक फील्ड ( चुम्बकीय क्षेत्र ) अर्थात् डिफ्लेक्टिंग प्लेटस् से प्रभावित होते है । ये प्लेटस् इंक की बूंदों को पेपर पर उचित दिशा देने के लिये उन्हें डिफ्लेक्ट ( इधर – उधर ) करती है , जिससे केरेक्टर बनता है ।
इस विधि में बहुत अधिक नोजल्स् उपयोग किये जाते हैं तथा इंक ड्राप्स् तब छोड़ी जाती है जब जरूरत होती है । इंक जेट प्रिंटर की प्रिटिंग गति 40 से 300 CPS के बीच होती है ।
( iv ) लेजर प्रिंटर ( Lase printer ) क्या है
यह भी डॉट मैट्रिक्स का उपयोग करता है किन्तु इसमें हादस इतने अधिक पास होते है कि वह एक ही अक्षर दिखाई देता है । – इसकी प्रिटिंग इलेक्ट्रोस्टेटिक या आप्टिकल विधि पर आधारित होती है व इसमें लेजर बीम और इलेक्ट्रोग्राफिक तकनीक का संयुक्त उपयोग किया जाता है । यह बिलकुल जेराक्स ( फोटोकॉपी ) मशीन के समान होता है । ओटोसेंसिटिव ड्रम पर लेजर के द्वारा इमेज ( चित्र ) बनायी जाती है । इस प्रक्रिया को करने के लिये लेजर को ऑन व ऑफ करना होता है , जब यह ड्रम पर आगे व पीछे जाती है । इस इमेज को इंक देने के लिये टोनर के ड्रम की इमेज पर एप्लाय ( ले जाया जाता है ) किया जाता है । फिर यह इमेज इलेक्ट्रोस्टेटिकली ड्रम से पेपर पर स्थानांतरित हो जाती है । साथ साथ हीटिंग की प्रक्रिया भी चलती रहती है जिससे कि इंक्ड इमेज को पेपर पर फ्यूज ( पिघलने ) किया जाता है । इसकी प्रिटिंग गति लगभग 20,000 लाइन प्रति मिनट है ।
लाईन इम्पेक्ट प्रिंटर (line impact printer)
( 1 ) ड्रम प्रिंटर ( Drum printer ) क्या है
इसमें एक ठोस सिलेंडर आकार का ड्रम होता है जिसमें उसकी सतह पर उठे हुए अक्षर बैंड ( पट्टों ) के रूप में होते है । बैंड की संख्या प्रिटिंग पोजिशन ( कितने क्षेत्र में प्रिटिंग करना है ) पर निर्भर करती है तथा प्रत्येक बैंड में सभी अक्षर होते है । ड्रम के प्रत्येक बैंड के लिये विपरीत दिशा में स्थित एक हेमर ( हथौड़ा ) होता है जोकि बैंड के किसी स्थान विशेष पर केरेक्टर की प्रिटिंग तय करता है । ड्रम एक निश्चित गति से घूमता है तथा हेमर इंक्ड रिबन के साथ पेपर पर स्ट्राईक ( टकराना ) करता है , जब ड्रम का उचित अक्षर पेपर के सामने से निकलता है तो ड्रम के प्रत्येक घुमाव पूर्ण होने पर एक लाईन प्रिंट होती है । ड्रम प्रिंटर की गति 200 से 2000 LPM ( लाईन पर मिनट ) होती है ।
( ii ) चेन प्रिंटर ( Chain printer) क्या है
इस प्रिंटर में एक चेन होती है जिसमें वे सभी केरेक्टरस् होते . हैं , जो प्रिंटिंग के लिये आवश्यक हैं । इस चेन को प्रिंट चेन कहते है जो बहुत तीव्र गति से घूमती है । चेन की प्रत्येक लिंक ( कड़ी ) में एक अक्षर होता है । प्रत्येक प्रिंट पोजिशन ( प्रिंट क्षेत्र ) पर मैग्नेट से चलने वाला हेमर होता है तथा जितने भी केरेक्टरस् प्रिंट किये जाते हैं वे प्रोसेसर ( Chip ) की मदद से प्राप्त करता है , जब उचित अक्षर प्रिंट पोजिशन स्ट्राइक ( टकराना ) करता है । इस प्रकार से एक बार में ( एक चक्र में ) एक लाइन प्रिंट होती है । यह बहुत आवाज करता है तथा इसकी गति 400 से 2400 LPM ( लाइन पर मिनट ) होती है ।
( iii ) बैंड प्रिंटर (Band printer) क्या है :
यह बिलकुल चेन प्रिंटर की तरह ही होता है सिर्फ अंतर इतना होता है कि इसमें चेन की जगह में स्टील का एक बैंड होता है जिस पर सभी अक्षरों का समूह उठे अक्षरों के रूप में होता है । केरेक्टरस् की प्रिटिंग के लिये हेमर का भी उपयोग ठीक उसी तरह होता है । इसकी गति 300 से 3000 LPM ( लाइन पर मिनट ) होती है ।
2. Plotters क्या है
यह डिवाईस भी प्रिंटर की तरह है मगर इसके द्वारा सिर्फ ग्राफिकल इनफार्मेशन को प्रिंट करवा सकते हैं। इस डिवाईस का उपयोग इंजीनियर, आर्कीटेक्ट में करते हैं प्लॉटर से ज्यादातर नक्शे और मशीन की डिजाईन को प्रिंट करते हैं। प्लाटर के अंदर फी हैण्ड हेज होता है जो आसानी से कहीं भी मूव कर सकता है। प्लाटर दो प्रकार के होते हैं:-
1.Drum Plotter
2.Flat Bad Plotte
1 Drum Pen Plotter:-
इसमें पैन प्रयुक्त होता है जो गतिशील होकर कागज की सतह पर आकृति तैयार करत है।कागज एक ड्रम पर चढ़ा रहता है जो आगे खिसकता जाता है। पेन कम्प्यूटर द्वारा नियंत्रित होता है। यह मैकेनिकल आर्टिस्ट की तरह कार्य करता नज़र आता है। जैसे ही इनमें रंगों का चुनाव होता है तो वह मनमोहक लगता है। पेन की गति एक बार में एक इंच के हजारवें हिस्से के बराबर होती है।
2 Flat bad Plotter:-
इस प्लॉटर में कागज को स्थिर अवस्था में एक बेड या टे में रखा जाता है। एक आम पर पेन चढ़ा रहता है जो मोटर से कागज पर ऊपर नीचे (वाई अक्षो) और दायें बायें (एक्स अक्ष) गतिशील होता है कम्प्यूटर पेन को एक्स-वाई अक्ष की दिशाओं में नियंत्रित करता है और कागज पर आकृति चित्रित करता है।
3. मॉनिटर क्या है
मॉनिटर एक आउटपुट डिवाइस होता है इसे टेक्निकल वर्ड में वर्चअल डिस्प्ले यूनिट भी कहते हैं यह सीपीओ से कनेक्ट होकर पूरी इंफॉर्मेशन मॉनिटर द्वारा दिखाया जा सकताा है।
मॉनिटर को डिस्प्ले, वीडियो डिस्प्ले ,स्क्रीन , वीडियो स्कीन और भी तरह-तरह के नाम से जाना जाता है
मॉनिटर कितने प्रकार के होते हैं
इस डिवाइस के दौरा सॉफ्ट कॉपी रिजल्ट का करते है ये तीन प्रकार के होते हैं जिसके द्वारा रिजल्ट देख सकते हैं
1. Color Monitor।
2. Monochrome moniter
3. Plasma Displays
Monitor
1. Color Monitor
कलर मानीटर के अंदर श्री बेसिक कलर का उपयोग करते हैं, 1, रेड, 2. बीन, 3. बू।आज केवल कलर मानीटर ही उपयोग से लाये जाते हैं।
(2) CRT डिस्प्ले मॉनीटर
CRT मॉनीटर सबसे ज्यादा प्रचलित VDUs (विजुअल डिसप्ले यूनिट) है। इनका मुख्य भाग कैथोड रे ट्यूब होता है जिसे सामान्यतः पिक्चर ट्यूब कहते है।
CRT एक फनल आकार का इलेक्ट्रान ट्यूब होता है,जोकि इलेक्ट्रिकल सिग्नलस् को दृश्य रूप में परिवर्तित करता है।सभी CRT में एक इलेक्ट्रान गन होती है, जो इलेक्ट्रान बीमा (किरण) पैदा करती है तथा एक ग्रीड होती है जो इलेक्ट्रान बीम की तीव्रता को परिवर्तित करती है, जिससे कि उसकी चमक में अंतर आता है जिसके कारण स्क्रीन की चमक में अंतर आता है, जिससे पर दृश्य बनता है। इलेक्ट्रॉन बीम डिफ्लेक्शन (घूमनेवाली) प्लेट्स् या मैगनेट्स (चुम्बक) के द्वारा स्क्रीन पर मूव (घूमती) करती है।क्षैतिज डिफ्लेक्शन प्लेट्स, बीम को क्षैतिज दिशा में व उधिर डिफ्लेक्शन प्लेट्स, बीम को उर्ध्वाधर दिशा में मूव करता है। स्क्रीन पर की चमक फास्फर पदार्थ के होने के कारण कुछ मिलिसेकण्ड तक रहती है। किन्तु स्थायी इमेज (चित्र) बनाने के लिये इस एल्युमिनेशन (चमक) को बार-बार दोहराना पड़ता है तथा इसको
CRT को स्केनिंग करके प्राप्त करते है। जब स्क्रीन के साथ इलेक्ट्रॉन बीम होती है तब स्केनिंग की प्रचलित विधि जिसे रास्टर स्केनिंग कहते है का उपयोग करते है, जिसमें इलेक्ट्रॉन बीम को स्क्रीन पर आगे या पीछे किया जाता है।
(3) NON CRT डिस्प्लेस MONITOR
नॉन-सी.आर.टी. डिस्प्ले में LED, LCD तथा प्लाज्या डिस्प्ले आते हैं। LED डिस्प्ले का उपयोग माइक्रोप्रोसेसर मे आधारित इंडस्ट्रियल कंट्रोल इन्स्ट्रमेंट्स (यंत्र) इत्यादि के लिए किया जाता है, जहाँ पर डेटा का एक छोटा सा हिस्सा ही दर्शाया जाता है। CRT स्क्रीन का उपयोग डेटा के बड़े हिस्से को दशनि के लिए किया जाता है। छोटे इन्स्टूमेंट्स जो बैटरी से चलते है इन इन्स्टूमेंट्स में LCD डिस्प्ले का उपयोग होता है, क्योंकि ये कम पॉवर का उपयोग करते हैं। नॉन-सी.आर.टी. डिस्प्लेस्को संक्षिप्त में नीचे समझाया गया है :
(4) लिक्विड क्रिस्टल डिस्पले (LCD) MONITOR
LCDS डिस्प्ले में दो ग्लास या प्लास्टिक प्लेटों के बीच में एक लिक्विड क्रिस्टल पदार्थ दबा होता है। डिस्प्ले की सामने की प्लेट पारदर्शी होती है और पिछली प्लेट रिफ्लेक्टीव (परावर्तनीय) होती है। सामने की प्लेट पर एक फिल्म पतली सतह के रूप में लगी होती है। यह सतह पारदर्शी तथा सुचालक (कंडक्टीव) होती है। इस प्लेट में विभिन्न सेक्शन्स उचित केरेक्टर के आकार में होते हैं। सामान्यतः दो तरह के LCDs उपलब्ध होते हैं : डायनेमिक स्केटरींग टाईप और फील्ड इफेक्ट टाईप | LCDs उसका स्वयं का प्रकाश नहीं देता है, इसलिए इसके लिए हम प्रकाश स्रोत का उपयोग करते हैं। LCDS उपलब्ध प्रकाश के परावर्तन को बदल देता है। आज अधिकांश ऐसे LCDS उपयोग में आ रहे हैं, जो सिल्वर बैकग्राउण्ड पर गहरी इमेज को बनाते हैं।
(5) प्लाज्मा डिस्प्ले MONITOR
प्लाज्मा डिस्प्ले में दो ग्लास प्लेटों के बीच में आयोनाइज्ड गैस दबी होती है। इन प्लेटों में कई सारे क्षैतिज और उर्ध्वाधर वायर शामिल होते हैं। एक क्षैतिज तथा एक उर्ध्वाधर वायर से जब करंट का कुछ भाग बहता है तो इसके कारण दोनों वायर के इंटरसेक्शन (कटान) बिन्दु पर यह गैस चमकती है। IBM-PC कलर ग्राफिक्स एडॉप्टर, माध्यम रिजाल्यूशन के 320 x200 पिक्सल तथा उच्च रिजाल्यूशन के 640 x 200 पिक्सल देता है, इस IBM-PC एडॉप्टर की तुलना में IBM 581 डिस्प्ले में 960 क्षैतिज तथा 768 उर्ध्वाधर पिक्सल होते हैं। प्लाज्मा डिस्प्ले स्क्रीन बहुत महँगे होते हैं। ये पोर्टेबल कम्प्यूटर के चुने हुए मॉडल में उपस्थित रहते हैं
4. Speaker क्या है
इस डाईव के द्वारा सापट कॉपी रिजल्ट प्राप्त कर सकते हैं। एक साउण्ड के रूप में मगर स्पीकर को चलाने के लिये साउण्ड कार्ड का कम्प्यूटर में होना जरूरी है ।प्रोग्राम होता है जिसके अंदर किसी भी कम्पोनेंट की इनफार्मेशन लगी रहती है।
5. Projector क्या है
Projector यह भी एक Output Device है. इसके इस्तमाल से computer के screen के सभी गति विधिओं को बड़े परदे पर दिखाया जाता है. इसके इस्तमाल से हम presentations दिखा सकते हैं.
इस Device के Output को कोई दिवार या फिर सफ़ेद परदे पे Display कर सकते हैं. आमतोर पे जिस surface पे light को Project किया जाता है वह surface size में बड़ा, सीधा और सफ़ेद color का होना चाहिए. Projectors का इस्तमाल Moving Images, slideshow और Videos को play करने के लिए किया जाता है. इसे बहु सख्यंक लोगों को Presentation दिखा सकते हैं. इस device का size भी छोटा होता है और Weight भी कम होता है.
Projector का उपयोग कहाँ पर किया जाता है
- PowerPoint presentation को business meeting. में Project किया जाता है.
- बचों को class में समझाने के लिए Projector का इस्तमाल किया जाता है.
- TV और Computer में जो multimedia (movies) है उनको Projector के जरिये बड़े परदे पे Play करने के लिए.
- Public Places में कोई वस्तु या सेवाओं को लोगों को समझाने के लिए इसका इस्तमाल किया जाता है.
- कोई खाली दिवार पे अलग अलग प्रकार की तस्वीर को display करने के लिए जिसे look बदल जाए.
- Projectors को Computer से जोड़ने के लिए HDMI या VGA cables का इस्तमाल किया जाता है.
( 6 ) माइक्रोफिल्म
इस तकनीक में कम्प्यूटर द्वारा प्राप्त आउटपुट माइक्रो स्कोपिक फिल्म इमेज की तरह , माइक्रोफिल्म पर रिकार्ड होता है । माइक्रोफिल्म पर रिकार्ड की गई सूचना को माइक्रोफिल्म दर्शाने वाले सिस्टम के उपयोग द्वारा पढ़ा जा सकता है । कम्प्यूटर का आउटपुट सर्वप्रथम CRT स्क्रीन पर दिखाई देता है । यह आकार में 48 गुना या उससे ज्यादा छोटा होता है , इसके पश्चात् माइक्रोफिल्म की शीट या रोल पर रिकार्ड होता है । एक ज्यादा स्पीड वाला कैमरा , CRT पर डिस्प्ले की गई सूचना का फोटोग्राफ लेता है । यह कैमरा हाई स्पीड प्रिंटर से लगभग 10 से 20 गुना ज्यादा तेज होता है । इसके द्वारा 32000 लाईन / मिनट की स्पीड से एक फोटोग्राफ खींचा जा सकता है । यह ज्यादा महंगा
होने के कारण बहुत बड़े पैमाने के कार्यों के लिये उपयुक्त होता है । पेपर पर प्रिंट की गई सूचना को रखने की तुलना में फिल्म का स्टोरेज कम महँगा होता है ।
( 7 ) माइक्रोफिचेस
माइक्रोफिचेस एक प्रकार की 4 बाय 6 इंच की एक फिल्म शीट है । माइक्रोफिच के द्वारा 270 पेज तक की सूचना को स्टोर ( संग्रहित ) किया जा सकता है । कुछ अल्ट्राफिच , उसी पेपर पर 1000 स्टैण्डर्ड पेज तक की सूचना को संग्रहित कर सकते हैं । माइक्रोफिल्म की तुलना में माइक्रोफिच को पढ़ना ज्यादा आसान है । माइक्रोफिच को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजना भी सरल है ।
हमें उम्मीद है कि आपको मेरा article जरूर पसंद आया होगा! Output device क्या है और कितने प्रकार के होते हैं? मैं हमेशा यह कोशिश करता हूं कि रीडर को इस विषय के बारे में पूरी जानकारी मिल सके ताकि वह दूसरी साइड और इंटरनेट के दूसरे article पर जाने की कोशिश ही ना पड़े। एक ही जगह पूरी जानकारी मिल सके।
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