मशीन वाइण्डिग क्या होती है
वैद्युतिक मशीनें मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं- डी . सी . तथा ए . सी . दोनों प्रकार की मशीनों में एक भाग स्थिर रखा जाता है और दूसरा भाग सचल होता है । मशीन के जिस भाग में वि.वा.ब. प्रदान किया जाता है या उत्पन्न होता है वह उसका मुख्य भाग कहलाता है । डी . सी . मशीन में मुख्य भाग आर्मेचर होता है और जनित्र द्वारा वि.वा.ब. , आर्मेचर से ही प्राप्त होता है और डी . सी . मोटर में आर्मेचर को ही मुख्य रूप से वि.वा.ब .. प्रदान किया जाता है । ए.सी. मशीन का मुख्य भाग ‘ स्टेटर ‘ होता है और आल्टरनेटर द्वारा उत्पन्न वि.वा.ब. , स्टेटर से ही प्राप्त होता है और ए.सी. मोटर में स्टेटर को ही मुख्य रूप से वि.वा.ब. प्रदान किया जाता है । अतः ‘ आर्मेचर ‘ या ‘ स्टेटर ‘ में क्वॉयल्स ( चालकों ) की स्थापना , अत्यन्त महत्त्वपूर्ण एवं विशिष्ट क्रम में किया जाने वाला कार्य है । इस प्रकार , आर्मेचर / स्टेटर क्रोड के खाँचों में क्रमबद्ध विधि से चालकों ( क्वॉयल्स ) की स्थापित करना और विशिष्ट क्रम में उनका संयोजन करना आर्मेचर वाइण्डिग या वाइण्डिग कहलाता है ।
वाइण्डिग कितने प्रकार की होती है
वाइण्डिग मुख्यतः निम्न प्रकार की होती हैं ।
बन्द क्वॉयल वाइण्डिंग Closed Coil Winding
यह वाइण्डिग डी . सी . मशीनों में की जाती है और इसे ‘ डी . सी . आर्मेचर वाइण्डिग ‘ भी कहते हैं । इसमें सभी क्वॉयल्स के सिरों को एक दूसरे के श्रेणी क्रम में संयोजित करते हुए अन्त में दो सिरे प्राप्त होते हैं जो स्रोत से संयोजित कर दिए जाते हैं ।
खुली क्वॉयल वाइण्डिग Open Coil Winding
यह वाइण्डिग ए.सी. मशीनों में की जाती है और इसमें सभी क्वॉयल्स के सिरे स्वतन्त्र रखे जाते हैं और उन्हें वांछित क्रम में संयोजित किया जा सकता है ।
डीसी मशीन में प्रयोग होने वाली वाइंडिंग
• लैप वाइण्डिग Lap Winding
जिस आमेचर वाइण्डिग में क्लस के संयोजक सिरे एक – दूसरे पर खड़े हुए ( overlapped ) रहते हैं . यह लैप वाइण्डिंग कहलाती है । यह वाइण्डिग मुख्यतः निम्न दो प्रकार की होती है .
सिम्प्लैक्स लैप वाइण्डिग Simplex Lap Winding
इसमें कम्प्यूटेटर पिच का मान रखा 1 रखा जाता है ।
मल्टीप्लैक्स लैप वाइण्डिग Multiplex Lap Winding
इस प्रकार की बाइण्डिंग में वॉयल्स की संख्या लॉट्स की संख्या की 2.3 या 4 गुनी होती है ।
यह बाइण्डिग निम्न तीन प्रकार की होती है-
1. ड्यूप्लैक्स ( Duplex ) इसमें कम्प्यूटेटर पिच का मान 2 रखा जाता है ।
2. ट्रिप्लैक्स ( Triplex ) इसमें कम्प्यूटेटर पिच का मान 3 रखा जाता है ।
3. क्वाडुप्लैक्स ( Quadruplex ) इसमें कंप्यूटेटर पिच का मान 4 रखा जाता है ।
लैप वाइण्डिग की विशेषताएँ Characteristics of Lap Winding
1. समानान्तर पथ अधिक संख्या में होने के कारण पूर्ण वाइण्डिग में से कुल प्रवाहित होने वाली विद्युत धारा का मान अधिक होता है ।
2. उच्च विद्युत धारा क्षमता वाली मशीनों के लिए अधिक उपयुक्त है ।
3. इस प्रकार की मशीन द्वारा उत्पन्न वि.वा.ब. का मान अपेक्षाकृत कम होता है ।
• वेव वाइण्डिंग Wave Winding
जिस आर्मेचर वाइनडिंग में क्वॉयल्स के संयोजन सिरे कम्प्यूटेटर पर निरन्तर आगे बढ़ते जाते हैं वह वेव वाइण्डिग कहलाती है । यह वाइण्डिग निम्न दो प्रकार की होती हैं ।
सिम्प्लैक्स वेव वाइण्डिंग Simplex Wave Winding
इसमें क्वॉयल 1 की अन्त – लीड , एक पोल – पिच की दूरी पर स्थापित दूसरी क्वॉयल ( शशश की प्रारम्भ – लीड से जोड़ी जाती है
मल्टीप्लैक्स वेव वाइण्डिंग Multiplex Wave Winding
यह वाइण्डिग निम्न प्रकार की होती हैं
A. ड्यूप्लैक्स ( Duplex ) यह दो सिम्प्लैक्स वाइण्डिग का समानान्तर संयोजन है ।
B. ट्रिप्लैक्स ( Triplex ) यह तीन सिम्प्लैक्स वाइण्डिग्स का समानान्तर संयोजन है ।
C. क्वाडुप्लैक्स ( Quadruplex ) यह चार सिम्प्लैक्स वाइण्डिग्स का समानान्तर संयोजन है ।
वेव वाइण्डिग की विशेषताएँ Characteristics of Wave Winding
1. यह एक प्रकार की सीरीज वाइण्डिग होती है ।
2. एक क्वॉयल स्थापित करने के बाद ही दूसरी क्वॉयल स्थापित की जाती है और इसके लिए आर्मेचर को आगे की ओर घुमाना पड़ता है ।
3. यह वाइण्डिग , उच्च वोल्टेज वाली मशीनों के लिए अधिक उपयुक्त होती है ।
• सिंगल लेयर वाइण्डिंग Single Layer Winding
जब प्रत्येक आर्मेचर स्लॉट में केवल एक क्वॉयल – पार्श्व स्थापित किया जाता है तो वह सिंगल लेयर वाइण्डिग कहलाती है ।
इस वाइण्डिग में स्लॉट्स की संख्या = 2 x कम्यूटेटर सैगमेन्ट्स होती है ।
• डबल – लेयर वाइण्डिंग Double Layer Winding
जब प्रत्येक आर्मेचर स्लॉट में दो क्वॉयल पार्श्व स्थापित किए जाते हैं तो वह डबल लेयर वाइण्डिग कहलाती है । इस वाइण्डिग में स्लॉट्स की संख्या = कम्यूटेटर – सैगमेन्ट्स की संख्या होती है ।
• मल्टी – लेयर या मल्टी – क्वॉयल वाइण्डिंग Multi – layer or Multi – coil Winding
जब प्रत्येक आर्मेचर स्लॉट में दो से अधिक क्वॉयल पार्श्व स्थापित किए जाते हैं तो वह मल्टी – लेयर या मल्टी – क्वॉयल वाइण्डिग कहलाती है ।
• सिमेट्रीकल वाइण्डिग symmetrical Winding
यह बाइडिंग जिसमें कार्बन ब्रश को पोल्स को मध्य रेखा पर स्थापित किया जाता और क्वॉयल लीड्स को ऐसे कम्यूटेटर सैगमेन्ट्स से संयोजित किया जाता है जो एक क्वॉयल पाश्वो मध्य रेखा के एक पर हो , सिमेट्रीकल वाइण्डिग कहलाती है
• अनसिमेट्रीकल वाइण्डिग Unsymmetrical Winding
यह बाइडिंग जिसमें कार्बन ब्रश को पोल्स को मध्य रेखा पर स्थापित नहीं किया जाता और क्वॉयल लीड्स को ऐसे कम्यूटेटर सैगमेन्ट्स से संयोजित किया जाता है जो एक क्वॉयल मध्य रेखा के एक और हो , अनसिमेट्रीकल वाइण्डिग कहलाती है
ए.सी. मशीन में प्रयोग होने वाली वाइंडिंग
• बास्केट वाइण्डिग Basket Winding
वाइण्डिग पूर्ण हो जाने के बाद इसकी आकृति बाँस की पट्टियों की बुनी टोकरी ( basket ) जैसी प्रतीत होती है । इसलिए इस वाइण्डिग का नामकरण बास्केट वाइण्डिग किया गया , । यह इकहरी तथा दोहरी पर्त वाली , दो प्रकार की होती है । इसमें इनएक्टिव पार्श्व एक – दूसरे को क्रॉस करते हैं तथा क्वॉयल- पिच समान रहती है । 3 – फेज मोटर्स में आमतौर पर इसी प्रकार की वाइण्डिग स्थापित की जाती है । इसकी विशेषता यह है कि इसमें क्वॉयल संयोजनों की जाँच सरलता से की जा सकती है ।
• कॉन्सैन्ट्रिक वाइण्डिंग Concentric Winding
इस प्रकार की वाइण्डिंग में एक क्वॉयल ग्रुप की सभी क्वॉयल्स संकेन्द्रीय प्रकार की होती हैं , इसमें , क्वॉयल्स एक – दूसरे पर चढ़ी हुई नहीं होतीं , परन्तु प्रत्येक संलग्न क्वॉयल में दो खाँचों का क्वॉयल – पिच अन्तर होता है । इस प्रकार की वाइपिंडग में अधिक मेहनत करनी पड़ती है । इसकी विशेषता यह है कि इसमें अधिक शीतलन – स्थान ( cooling – space ) प्राप्त होता है । सिंगल – फेज मोटर वाइण्डिंग में आमतौर पर कॉन्सैन्ट्रिक वाइण्डिग स्थापित की जाती है ।
• स्कीन वाइण्डिंग Skein Winding
इस प्रकार की वाइण्डिग में एक बड़ी ( अधिक व्यास की ) क्वॉयल लपेटी जाती है और उसे विभिन्न स्टेटर खाँचों में चित्र की भांति स्थापित किया जाता है ।
• फ्लैट लूप नॉन – ओवरलैप वाइण्डिंग Flat Loop Non over Winding
इस प्रकार की वाइण्डिग में समान क्वॉयल – पिच की , छोटे आकार की क्वॉयल्स तैयार की जाती है और उन्हें चित्र की भाँति इस प्रकार स्थापित किया जाता है कि वे एक – दूसरे को क्रॉस न करे । यह वाइण्डिग आमतौर पर सिंगल फेज ए.सी. पंखों में स्थापित की जाती है ।
• फ्लैट लूप ओवरलैप या चेन वाइण्डिंग Flat Loop Overlap or Chain Winding
इस प्रकार की वाइण्डिग में प्रति पोल प्रति फेज क्वॉयल्स की संख्या एक से अधिक रखी जाती हैं । क्वॉयल्स , प्रायः दो आकार की बनायी जाती हैं और प्रत्येक स्टेटर खाँचे में दो क्वॉयल्स के पार्श्व स्थापित किए जाते हैं , यह वाइण्डिग देखने में जंजीर ( chain ) की भाँति प्रतीत होती है । यह वाइण्डिग भी सिंगल फेज ए.सी. पंखों में स्थापित की जाती है
यदि चेन बाइण्डिंग में एक बयल ग्रुप को सभी वॉयल्स सकेन्द्रीय प्रकार की हो तो वह कॉन्सेन्ट्रिक बाइण्डिग कहलाती है ।
• स्क्यू वाइण्डिंग Skew Winding
इस प्रकार की वाइण्डिग में क्वॉयल के दोनों पार्श्व , छोटे – बड़े रखे जाते हैं जिससे मोटर की ऊष्मा के विकिरण के लिए अधिक खुला स्थान उपलब्ध हो जाता हैं , देखें चित्रा यह वाइण्डिग , उच्च वोल्टेज पर कार्य करने वाली मशीनों में की जाती है ।
• डायमण्ड क्वॉयल वाइण्डिंग Diamond Coil Winding
इस प्रकार की वाइण्डिग में क्वॉयल को हीरा – आकृति अर्थात् षट्भुजाकार आकृति प्रदान की जाती है , यह वाइण्डिग , उच्च वोल्टेज पर कार्य करने वाली मशीनों में की जाती है ।
• इन्वोल्यूट क्वॉयल वाइण्डिंग Involute Coil Winding
इस प्रकार की वाइण्डिग में पहले डायमण्ड आकृति की क्वॉयल , स्टेटर खाँचों में स्थापित की जाती है और बाद में उसे आयताकार आकृति प्रदान कर दी जाती है , यह वाइण्डिग भी अधिक स्थाई घेरती है और उच्च वोल्टेज पर कार्य करने वाली मशीनों में की जाती है ।
• होल क्वॉयल वाइण्डिंग Whole Coil Winding
वह वाइण्डिग जिसमें प्रति फेज क्वॉयल्स की संख्या , पोल्स की संख्या के बराबर हो , होल क्वॉयल वाइण्डिग कहलाती है
• हाफ क्वॉयल वाइण्डिंग Half Coil Winding
वह वाइण्डिग जिसमें प्रति फेज क्वॉयल्स की संख्या , पोल की संख्या के आधे के बराबर हो हाफ क्वॉयल वाइण्डिंग कहलाती है ।
• इकहरी पर्त वाली वाइण्डिंग Single Layer Winding
इस प्रकार की वाइण्डिग में , प्रत्येक खाँचें में केवल एक क्वॉयल का पार्श्व ( side ) स्थापित किया जाता है , इस प्रकार , स्टेटर या आर्मेचर में क्वॉयल की कुल संख्या , खाँचों की संख्या के ठीक आधी होती है ।
क्वॉयल की कुल संख्या = 1/2 खाँचों की कुल संख्या
• दोहरी पर्त वाली वाइण्डिंग Double Layer Winding
इस प्रकार की वाइण्डिग में , प्रत्येक खाँचे में दो क्वॉयल्स के पार्श्व ( एक ऊपरी तथा एक निचला ) स्थापित किए जाते हैं । इस प्रकार , स्टेटर या आर्मेचर में क्वॉयल्स की कुल संख्या , खाँचों की कुल संख्या के बराबर होती है ।
क्वॉयल्स की कुल संख्या = खाँचों की कुल संख्या
• बैलेन्स्ड वाइण्डिंग Balanced Winding
यदि एक ही फेज के प्रत्येक पोल के क्वॉयल ग्रुप्स में क्वॉयल्स की संख्या समान हो तो वह वाइण्डिग , बैलेन्स्ड वाइण्डिग कहलाती है । इस वाइण्डिग को सम ग्रुप वाइण्डिंग ( even group winding ) भी कहते हैं ।
• अनबैलेन्स्ड वाइण्डिंग Unbalanced Winding
यदि एक ही फेज प्रत्येक पोल के क्वॉयल ग्रुप्स में क्वॉयल्स की संख्या असमान हो तो वह वाइण्डिग अनबैलेन्स्ड वाइण्डिग कहलाती है । इस वाइण्डिग को विषम ग्रुप वाइण्डिंग ( odd group winding ) भी कहते हैं ।
• कन्सैन्ट्रेटेड वाइण्डिग Concentrated Winding
यदि वाइण्डिग में क्वॉयल्स की संख्या प्रति पोल प्रति फेज एक हो तो वह कन्सेन्ट्रेटेड बाइण्डिंग कहलाती है । इस प्रकार की वाइण्डिग में प्रत्येक स्टेटर खाँचे में एक क्वॉयल पार्श्व ( coil side ) स्थापित किया जाता है ।
• डिस्ट्रीब्यूटेड वाइण्डिग Distributed Winding
यदि वाइण्डिग में क्वॉयल्स की संख्या , प्रति पोल प्रति फेज एक से अधिक हो तो वह डिस्ट्रीब्यूटेड वाइण्डिग कहलाती है । इस प्रकार की वाइण्डिग में क्वॉयल्स के पार्श्व भिन्न – भिन्न स्टेटर खाँचों में स्थापित किए जाते हैं । इसमें प्रत्येक क्वॉयल की पोल – पिच समान होती है । यह वाइण्डिग दो प्रकार की होती है
• आंशिक डिस्ट्रीब्यूटेड वाइण्डिंग Partially Distributed Winding
इस प्रकार की डिस्ट्रीब्यूटेड वाइण्डिग में कुछ स्टेटर खाँचे रिक्त रह जाते हैं और सभी स्टेटर खाँचों में क्वॉयल पार्श्व स्थापित नहीं हो पाते ।
• पूर्णतः डिस्ट्रीब्यूटेड वाइण्डिंग Fully Distributed Winding
इस प्रकार की डिस्ट्रीब्यूटेड वाइण्डिग में कोई भी स्टेटर खाँचा रिक्त नहीं रहता ।
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