गिरगिट का सपना की कहानी
एक गिरगिट था। अच्छा, मोटा-ताजा। हरे-भरे जंगल में रहता था। उसने रहने के लिए एक घने पेड़ के नीचे अच्छी-सी जगह बना रखी थी। खाने-पीने की कोई तकलीफ़ नहीं थी। आसपास जाव-जतु बहुत मिल जाते थे, फिर भी वह उदास रहता था। उसका खयाल था कि अपना कोई एक रंग नहीं था। थोड़ी देर पहले नीला था, अब हरा हो गया। हरे से बैंगनी, बैंगनी से कत्थई फिर स्याह। यह भी कोई जिंदगी है! यह ठीक था कि इससे बचाव बहुत होता था। देखनेवाले को धोखा दिया जा सकता था। खतरे के वक्त जान बचाई थी। शिकार भी आसानी से मिल जाता था। पर यह भी क्या कि अपनी कोई एक पहचान सकती ही नहीं। सुबह उठे तो कच्चे भुट्टे की तरह पीले और रात को सोए तो भुने शकरकंद की तरह काले। हर दो घंटे में खुद अपने ही लिए अजनबी !
उसका मन यही करता था कि वह गिरगिट न होकर साँप होता, तो कितना अच्छा था। जब मन आया, पेट के बल रेंग लिए। जब मन आया, कुंडली मारी और फन उठाकर सीधे हो गए।
एक रात जब वह सोया, तो उसे ठीक से नींद नहीं आ रही थी। आखिर वह पास की झाड़ी में जाकर नींद लाने की एक पत्ती निगल आया। उस पत्ती के बारे में उसके एक गिरगिट दोस्त ने बताया था। पत्ती खाने की देर थी कि उसका सिर भारी होने लगा। लगने लगा कि उसका शरीर जमीन के अंदर सता जा रहा है। थोड़ी ही देर में उसे महसूस हुआ जैसे किसी ने उसे जिंदा ज़मीन में गाड़ दिया हो। वह बहुत घबराया। यह उसने क्या किया कि दूसरे गिरगिट के कहने में आकर वह पत्ती खा ली। अब अगर वह जिंदगी भर जमीन के अंदर ही दफ़न रहा तो?
वह अपने को झटककर बाहर निकलने की कोशिश करने लगा। पहले तो उसे कामयाबी मिली नहीं पर फिर लगा कि ऊपर की जमीन पोली हो गई है और वह बाहर निकल आया है। ज्यों ही उसका सिर बाहर निकला और बाहर की हवा अंदर गई, उसने एक और ही अजूबा देखा। उसका सिर गिरगिट के सिर जैसा ना होकर साँप के सिर जैसा था। अब वह जमीन से पूरा बाहर आ गया। उसने अपने शरीर पर नजर डाली, तो वही लहरिया दिखाई दिया जो पास वाले साँप के शरीर पर था। उसने कुंडली मारने की कोशिश की, तो कुंडली लग गई। फन उठाना चाहा तो, फन उठ गया। वह हैरान भी हुआ और खुश भी। उसकी कामना पूरी हो गई थी। वह साँप बन गया था।
यहाँ तक कि सामने के पेड़ का गिरगिट भी डर के मारे जल्दी-जल्दी रंग बदल रहा थोड़ी दूर जाते-जाते सामने से एक था। वह रेंगता हुआ दूसरे इलाके की तरफ़ बढ़ गया पर नेवला उसे दबोचने के लिए लपका, तो उसने सतर्क होकर फन उठा लिया।
सांप बने गिरगिट का मन हुआ कि वह जल्दी से रंग बदल ले पर अब रंग कैसे बदले सकता था? नेवला फुदकता हुआ बहुत पास आ गया था। उसकी आँखें एक चुनौती के साथ साँप बने गिरगिट का मन हुआ कि वह जल्दी से रंग बदल ले, पर अब रंग कैसे चमक रही थीं। साँप आखिर था तो गिरगिट हो। वह सामना करने की जगह एक पेड़ के पीछे जा छिपा। उसकी आँखों में नेवले का रंग और आकार बसा था। कितना अच्छा होता। अगर वह साँप न बनकर नेवला बन गया होता!
तभी उसका सिर फिर भारी होने लगा। नींद की पत्ती अपना रंग दिखा रही थी। घोड देर में उसने पाया कि शरीर में हवा भर जाने से वह काफ़ी फूल गया है। ऊपर तो गरम निकल आई है और पीछे को झबरीली पूँछ। जब वह अपने को झटककर आगे बढ़ा, तो लहरिया साँप एक नेवले में बदल चुका था।
वह खुशी से उछलने लगा। एक बार जो वह ज़ोर से उछला तो पेड़ की टहनी पर टॅग गया। टहनी का काँटा शरीर में ऐसे गड़ गया कि न अब उछलते बने, न नीचे आते। आखिर जब बहुत परेशान हो गया, तो वह सोचने लगा कि क्यों उसने नेवला बनना चाहा। इससे तो अच्छा था कि पेड़ की टहनी बन गया होता। तब न रेंगने की जरूरत पड़ती, न उछलने-कूदने की। बस अपनी जगह उगे हैं और आराम से हवा में हिल रहे हैं।
नींद का एक और झोंका आया और उसने पाया कि सचमुच अब वह नेवला नहीं रहा, पेड़ की टहनी बन गया है। वह हवा से मस्ती में झूलने लगा।
पर तभी दो-तीन कौवे उस पर आ बैठे। एक ने उस पर बीट कर दी, दूसरे ने उसे चोंच से कुरेदना शुरू किया। उसे बहुत तकलीफ़ हुई। उसे फिर अपनी गलती का पछतावा होने लगा। अगर वह टहनी की जगह कौवा बना होता तो कितना अच्छा था। जब चाहो. जिस टहनी पर जा बैठो और जब चाहो, हवा में उड़ान भरने लगो।
अभी वह सोच रहा था कि कौवे उड़ गए। पर उसने हैरान होकर देखा कि कौवों के साथ वह भी उसी तरह उड़ रहा है। अब जमीन के साथ-साथ आसमान भी उसके नीचे था। वह ऊपर-ऊपर उड़ा जा रहा था। उसने आसमान में कई चक्कर लगाए और खूब काँवकाँव की। पर तभी उसकी नज़र पड़ी नीचे खड़े कुछ लड़कों पर, जो गुलेल हाथ में लिए उसे निशाना बना रहे थे। पास उड़ता हुआ एक कौवा निशाना बनकर नीचे गिर चुका था। उसने डरकर आँखें मूंद लीं। मन ही मन सोचा कि कितना अच्छा होता अगर वह कौवा न बनकर गिरगिट ही बना रहता।
पर जब काफ़ी देर बाद भी गुलेल का पत्थर उसे नहीं लगा, तो उसने आँखें खोल ली। वह अपनी उसी जगह पर था, जहाँ सोया था। पंख-वंख सब गायब हो गए थे और वह वही गिरगिट का गिरगिट था। वही चूहे-चमगादड़ आसपास मँडरा रहे थे और साँप अपने बिल से बाहर आ रहा था। गिरगिट ने जल्दी से रंग बदला और दौड़कर उस गिरगिट की तलाश में चल दिया जिसने उसे नींद की पत्ती खाने की सलाह दी थी। मन में शुक्र भी मनाया कि अच्छा है वह गिरगिट की जगह और कुछ नहीं हुआ, वरना गलत सलाह देने वाले गिरगिट को गिरगिट भाषा में मज़ा कैसे चखा पाता!
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