डीसी जनरेटर क्या है
विद्युत शक्ति उत्पादन की मुख्य विधि है दिष्ट धारा जनित्र । यद्यपि , विद्युत शक्ति का अधिकांश उत्पादन प्रत्यावर्ती धारा के रूप में प्रत्यावर्तक ( आल्टरनेटर ) के द्वारा किया जाता है परन्तु दिष्ट धारा के अनुप्रयोगों के परिप्रेक्ष्य में दिष्ट धारा विद्युत शक्ति के उत्पादन हेतु दिष्ट धारा जनित्र ही प्रयोग किये जाते हैं । वस्तुत : जनित्र प्रत्यावर्तक के अतिरिक्त व्यापारिक स्तर पर विद्युत शक्ति उत्पादन की कोई अन्य व्यावहारिक विधि वर्तमान में उपलब्ध है ही नहीं । जल , वायु , वाष्प , परमाणु ऊर्जा , पेट्रोलियम ईंधन आदि के द्वारा टरबाइन को प्रचालित करके यान्त्रिक शक्ति उत्पन्न की जाती है और उस यान्त्रिक शक्ति से जनित्र प्रत्यावर्तक को प्रचालित कर विद्युत शक्ति उत्पन्न की जाती है । डी.सी. मशीने सामान्यत : वैद्युत – यान्त्रिकी ऊर्जा परिवर्तक हैं , जोकि डी.सी. स्रोत पर कार्य करती हैं । डी.सी. मशीनों को डी.सी. जनित्र एवं डी.सी. मोटर में विभक्त किया जाता है । डी.सी. जनित्र , यान्त्रिक ऊर्जा को वैद्युतिक ऊर्जा में एवं डी.सी , मोटर , वैद्युतिक ऊर्जा को यान्त्रिक ऊर्जा में परिवर्तित करने वाली मशीनें हैं ।
डीसी जनरेटर का सिद्धांत क्या है
डी.सी. जनित्र या डायनमो , फैराडे के विद्युत – चुम्बकीय प्रेरण सिद्धान्त पर आधारित होता है । इस सिद्धान्त के अनुसार , “ यदि किसी चालक को किसी चुम्बकीय क्षेत्र में इस प्रकार गतिमान किया जाए कि उसकी गति से चुम्बकीय बल रेखाओं का छेदन होता हो तो उस चालक में वि.वा.ब. पैदा हो जाता है ।
जनित्र Generator
यान्त्रिक ऊर्जा को वैद्युतिक ऊर्जा में परिवर्तित करने वाली मशीन , जनित्र कहलाती है । यदि मशीन डी.सी. पैदा करती है तो डी.सी. जनित्र और यदि ए.सी. पैदा करती है तो आल्टरनेटर कहलाती है ।
डायनमो Dynamo
यान्त्रिक ऊर्जा से डी.सी.पैदा करने वाली छोटे आकार की मशीन डायनमो कहलाती है । सामान्यत : इसका उपयोग विभिन्न प्रकार के वाहनों में बैट्री – चार्जिंग के लिए किया जाता है ।
डीसी जनरेटर किस नियम पर कार्य करता है
फ्लेमिंग के दाहिने हाथ के नियम का उपयोग डीसी जनरेटर में किया जाता है। यह यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करता है
डी.सी. जनित्र की मौलिक आवश्यकताएँ Fundamental Requirements of a D.C. Generator
जनित्र की मौलिक आवश्यकताएँ निम्न प्रकार है
1. चुम्बकीय क्षेत्र ( Magnetic field ) ,
2. आर्मेचर ( Armature ) ,
3. कम्यूटेटर तथा ब्रश आदि ( Commutator and brush etc. )
4. यान्त्रिक ऊर्जा ( Mechanical energy )
डीसी जनरेटर के भाग का नाम क्या है
डी.सी. जनित्र में निम्नलिखित मुख्य भाग होते हैं
- बॉडी Body
- फील्ड पोल Field Pole
- शू सहित लेमिनेटेड पोल Laminated Pole with Shoe
- मोल्डेड पोल Moulded Pole
- आर्मेचर Armature
- कम्यूटेटर Commutator
- ब्रश तथा ब्रश – होल्डर Brush and Brush – holder
- ब्रश – लीड Brush – lead
- रॉकर प्लेट Rocker Plate
- एण्ड कवर End Cover
- बियरिंग Bearing
- शाफ्ट तथा पुली Shaft and Pulley
- कूलिंग – फैन Cooling – fan
- बैड – प्लेट Bed – plate
- आई – बोल्ट Eye – bolt
- टर्मिनल – बॉक्स Terminal – box
बॉडी Body
मशीन के बाहा भाग को बॉडी या योक ( yoke ) कहते है । यह कास्ट – आयरन अथवा कास्ट – स्टील से बनाई जाती है । इसके मुख्य कार्य है
( 1 ) मशीन के सभी भागों को सुरक्षित रखना ,
( ii ) चुम्बकीय बल रेखाओं ( फ्लक्स ) के लिए पथ प्रदान करना ।
बॉडी के दोनो ओर दो साइड प्लेट्स होती है जो मशीन को पूरी तरह ढक देती हैं । बॉडी पर आवश्यकतानुसार आई – बोल्ट , लैग्स आदि वैल्ड कर दिए जाते हैं । छोटी मशीनों की बॉडी , प्राय : कास्ट – आयरन से एवं बड़ी मशीनों की बॉडी , कास्ट – स्टील से बनाई जाती है
फील्ड पोल Field Pole
छोटे आकार वाले डायनमो में तो चुम्बकीय क्षेत्र स्थापित करने के लिए स्थायी चुम्बक प्रयोग किए जाते हैं परन्तु बड़े आकार वाले डायनमो सध्या डी.सी. जनित्र में फील्ड पोल्स प्रयोग किए जाते हैं । फील्ड पोल्स निम्न दो प्रकार के होते हैं
शू सहित लेमिनेटेड पोल Laminated Pole with Shoe
इस प्रकार के पोल में , पोल तथा पोल – शू दोनों ही एक साथ लेमिनेटड कास्ट – स्टील अथवा एनील्ड स्टील ( annealed steel ) से बनाए जाते हैं इन पर फील्ड – वाइण्डिग स्थापित करके इन्हें बोल्ट्स के द्वारा योक पर कस दिया जाता है , बड़ी मशीनों में प्रायः यही विचि अपनाई जाती है ।
मोल्डेड पोल Moulded Pole
इस प्रकार के पोल , योक के साथ ही मोल्डिग द्वारा बनाए जाते है । ये प्रायः कास्ट – आयरन से बनाए जाते हैं । पोल के ऊपर फील्ड – वाइण्डिग स्थापित करके एक लैमिनेटर पोल सुपर जो दौरा कर दिया जाता है छोटी मशीन के पैर आ गई विधि अप्लाई की जाती है है । पोल – शु का आकार ( प्रभावी क्षेत्रफल ) बढ़ा ( लगभग दो गुना ) रखा जाता है । इसके दो लाभ है
1 ) फील्ड क्वॉयल , पोल से बाहर नहीं जा सकता
2 ) पोल – शू द्वास पैदा किया गया चुम्बकीय क्षेत्र , अधिक विस्तृत ( फैला हुआ ) होता है ।
फील्ड पोल की न्यूनतम संख्या दो होती है समानता इन की अधिकतम संख्या आठ होती है इनका प्रमुख कार्य है चुंबकीय क्षेत्र स्थापित करना है
आर्मेचर Armature
फोल्ड – पोल्स को न्यूनतम संख्या दो होती है । सामान्यतः इनकी अधिकतम संख्या 8 होती है । इनका मुख्य कार्य है – चुम्बकीय क्षेत्र स्थापित करना । यह एक बेलनाकार ड्रम जैसा होता है जो सिलिकॉन स्टील की पत्तियों ( लेमिनेशन्स ) को एक – साथ रिवेट स्लॉट , मुख्यत : निम्न तीन प्रकार के होते हैं करके बनाया जाता है । आमेचर ड्रम में , आर्मेचर क्वॉयल्स स्थापित करने के लिए स्लॉट कटे होते हैं ।
A. खुले ( Open ) एक समान चौड़ाई में खुले खाँचे , खुले स्लॉट कहलाते हैं ।
B. अर्द्ध – बन्द ( Semi – closed ) इस प्रकार के खाँचों की चौड़ाई शीर्ष पर कम होती है ।
C. बन्द ( Closed ) इस प्रकार के खाँचे छिद्र के आकार के होते हैं और इनमें सीधे ही आर्मेचर क्वॉयल नहीं फँसाई जा सकती , बल्कि उसे छिद्रों में वाइण्ड करना पड़ता है ।
आमेचर कोर लेमिनेटेड होती हैं जिससे कि उनमें हिस्टरैसिस क्षति तथा एडी धारा क्षति का मान कम रहे । लेमिनेशन्स ( पत्तियों ) की मोटाई 0.35 से 0.6 मिमी तक होती है । आर्मेचर का मुख्य कार्य है – चुम्बकीय फ्लक्स का छेदन करके उसमें स्थापित आमेचर – वाइण्डिग्स में वि.वा.ब. पैदा करना । आर्मेचर को शाफ्ट पर कस दिया जाता है और शाफ्ट को बियरिंग्स की सहायता से बॉडी में स्थापित कर दिया जाता है ।
कम्यूटेटर Commutator
यह आकार में वृत्ताकार होता है जो हाई – ड्रान ( hard drawn ) ताँबे की मोटी पत्तियों को बैकलाइट के आधार पर कस कर बनाया जाता हैं । पत्तियों के बीच में रिक्त स्थान ( air gap ) होता है जिसमें अभ्रक भर दिया जाता है । कम्यूटेटर को आमेचर शाफ्ट पर स्थापित किया जाता है । इसकी पत्तियों ( segments ) के सिरों पर आर्मेचर – वाइण्डिग्स के सिरे सोल्डर कर दिए जाते हैं ।
इसका मुख्य कार्य है – आर्मेचर क्वॉयल्स में पैदा हुए वि.वा.ब. को डी.सी. के रूप में बाह्य परिपथ को प्रदान करना ।
ब्रश तथा ब्रश – होल्डर Brush and Brush – holder
डी.सी. जनित्र द्वारा उत्पन्न वि.वा.ब. को कम्यूटेटर से बाहा परिपथ को प्रदान करने के लिए जो युक्ति प्रयोग की जाती है वह ब्रश कहलाती है । ब्रश को – ब्रश – होल्डर में लगाया जाता है । छोटी मशीनों में कार्बन ब्रश प्रयोग किया जाता है और बड़ी मशीनों में कार्बन व ताँबे के मिश्रण से बना ब्रश प्रयोग किया जाता है । ब्रश का मुख्य कार्य है – कम्यूटेटर के साथ फिसलता हुआ सम्पर्क ( sliding Contact ) स्थापित करना । ब्रश , आयताकार होता है और इसे आयताकार पीतल के दोनों ओर से खुले बॉक्स में लगा दिया जाता है । कम्यूटेटर पर ब्रश का दबाव बनाए रखने के लिए एक स्प्रिंग – पत्ती होती है । इस स्प्रिंग का दबाव 0.1 से 0.25 किलोग्राम प्रति वर्ग सेमी तक रखा जाता है ।
कार्बन – ब्रश प्रयोग करने के कारण Reasons to use Carbon Brush
1. कार्बन ऐसा पदार्थ है जो ऑक्सीकृत नहीं होता और इस प्रकार कम्यूटेटर से सदैव अच्छा संयोजन बनाए रखता है ।
2 कार्बन अधिक तापमान पर भी ठीक कार्य कर सकता है , क्योंकि कम्यूटेटर के साथ घर्षणरत रहने के कारण ब्रश काफी गर्म हो जाते हैं । अतः ब्रश बनाने के लिए अधिक तापमान सह सकने वाला पदार्थ प्रयोग किया जाता है ।
3. इसे सरलता से आवश्यक आकृति प्रदान की जा सकती है
4. कार्बन का अवगुण है इसका उच्च प्रतिरोध और यह अवगुण भी कार्य के दौरान दूर हो जाता है , क्योंकि तापमान बढ़ने से इसका प्रतिरोध
5. कार्बन की विद्युत धारा वहन क्षमता 4 से 6 एम्पियर प्रति वर्ग सेमी होती है जो उपयुक्त हैं ।
6. कार्बन , एक नर्म पदार्थ हैं । अत : यह स्वयं घिस जाता है , परन्तु कम्यूटेटर को घिसने नहीं देता । घट जाता है ।
ब्रश – लीड Brush – lead
ब्रश के साथ जोड़ा गया फ्लैक्सिबिल तार का टुकड़ा , ब्रश – लीड या पिग – टेल ( pig – tail ) कहलाता है । यह ब्रश का सम्बन्ध , बाह्य परिपथ से स्थापित करने के लिए लगाया जाता है ।
रॉकर प्लेट Rocker Plate
यह छल्ले के आकार की एक प्लेट होती है जो फ्रन्ट – एण्ड प्लेट के साथ बोल्ट्स द्वारा कसी होती है । रॉकर प्लेट पर ब्रश होल्डर फँसा दिए जाते हैं या पेंचों से कस दिए जाते हैं । रॉकर प्लेट में स्टड ( लम्बे खाँचे ) बने होते हैं जो बोल्ट्स को ढीला करके , ब्रश होल्डर्स को समायोजित किए जाने की योग्यता प्रदान करते हैं ।
एण्ड कवर End Cover
जनित्र की बॉडी के दोनों ओर दो कास्ट – आयरन से बने ढक्कन लगाए जाते हैं । इनमें बियरिंग लगी होती हैं और मशीन को ठण्डा रखने के लिए कुछ छिद्र बने होते हैं । इन्हें एण्ड प्लेट ( end plate ) भी कहते हैं । कम्यूटेटर की तरफ वाले कवर को फ्रन्द – एण्ड कवर ( front – end cover ) तथा दूसरे कवर को रियर – एण्ड कवर ( rear – end cover ) कहते हैं ।
बियरिंग Bearing
आमेचर – शाफ्ट को बियरिंग के द्वारा एण्ड – प्लेट्स पर कसा जाता है । बियरिंग्स की संख्या दो होती है । छोटी मशीनों में बुश – बियरिंग ( bush – bearing ) प्रयोग की जाती है और बड़ी मशीनों में बाल – बियरिंग अथवा रोलर – बियरिंग ( ball – bearing or roller – bearing ) प्रयोग की जाती हैं । बियरिग्स का मुख्य कार्य आर्मेचर शाफ्ट को तीव्र गति पर घूमने की स्वतन्त्रता प्रदान करना है ।
शाफ्ट तथा पुली Shaft and Pulley
आमेचर तथा कम्यूटेटर के लिए यह आधार का कार्य करती है । इसे बियरिंग्स के द्वारा एण्ड – प्लेट्स पर कस दिया जाता है । यह नर्म लोहे ( mild steel ) की बनी होती है । शाफ्ट के एक सिरे पर एक पुली कस दी जाती है जो मशीन को चलाने के लिए उसे टरबाइन आदि से जोड़ने के लिए प्रयोग की जाती है ।
कूलिंग – फैन Cooling – fan
मशीन को ठण्डा रखने के लिए आर्मेचर पर , कम्यूटेटर वाले सिरे के विपरीत सिरे पर , एक कास्ट – आयरन का बना पंखा जड़ दिया जाता है । जैसे ही आर्मेचर प्रारम्भ करता है , यह भी घूमने लगता है और ठण्डी हवा देकर मशीन को ठण्डा रखता है ।
बैड – प्लेट Bed – plate
मशीन के आधार को बैड – प्लेट कहते हैं । यह कास्ट – आयरन से बनाई जाती है और इसे बोल्ट्स के द्वारा ‘ फाउन्डेशन ‘ पर कस दिया जाता है ।
आई – बोल्ट Eye – bolt
मशीन को उठाने के लिए प्राय : उसकी बॉडी पर एक गोल छिद्र वाला हुक लगाया जाता है जो आई – बोल्ट कहलाता है ।
टर्मिनल – बॉक्स Terminal – box
मशीन की बॉडी पर बैकेलाइट की एक मोटी शीट जड़ी रहती है जिस पर नट – बोल्ट के द्वारा आमेचर – कम्यूटेटर के संयोजक सिरे कसे होते हैं । यह व्यवस्था टर्मिनल – बॉक्स कहलाती है । इसका मुख्य कार्य है – डी.सी . जनित्र द्वारा पैदा किया गया वि.वा.ब. लोड को प्रदान करना ।