सहयोग का पुल की कहानी
नालपुर गांव पहाड़ियों और जंगल के बीचों – बीच बसा हुआ था।नाले के कारण ही गाँव का नाम नागपुर रखा गया था नाले गाँव की प्रगति को रोक रखा था।बरसात में उसका रूप इतना भयानक होता था कि उसमें पाॅव डालने तक की हिम्मत नहीं होती । चौमासे भर यह लम्बा – चौड़ा नाला गाँव को पूरी तरह अन्य इलाकों को काट देता था । चार महीने नालपुर गांव के निवासी बाहरी दुनिया से एकदम अलग हो जाया करते थे । जब चौमासे में कोई गंभीर बीमारी का शिकार होता , किसी महिला की तबीयत बिगड़ जाती तब बड़ी परेशानी होती । ऐसे मौके जब मरीज को अस्पताल पहुंचाना बहुत जरूरी होता , तब सामने बहता हुआ नाला , नालपुर के ग्रामवासियों को साक्षात् यमदूत की तरह लगता था । कभी – कभी डोंगा या कश्ती डालकर पार उतरने की कोशिश भी की गई , घर तेज बहाव ने अच्छे – अच्छे लोगों को डुबो दिया । लच्छू काका से पूछकर देखिए तो वे फौरन बगता किसान का किस्सा सुना देंगे , जिसे बरसात में साँप ने काटा था और नाले ने अस्पताल तक नहीं पहुँचने दिया । देखते – ही – देखते बेचारे के प्राण पखेरू उड़ गए ।
नालपुर की आबादी बस्ती कहलाने लायक ही थी । गाँव में घास – फूस की छत एवं कुछ कच्चे – पक्के मकान थे । बिजली , पानी की सुविधा आखिर यहाँ कैसे आ पाती कुल मिलाकर गाँव बहुत छोटा था । यहाँ पर सबकी अपनी – अपनी ढपली और अपना – अपना राग वाली बात थी , तब गाँव के विकास की बात कौन सोचे ? बरसात में गाँव का नाला भले ही अभिशाप बन जाए लेकिन गाँव में कुओं की कमी के कारण लोग अपनी प्यास बुझाने के लिए इसी नाले के जल का उपयोग करते थे । गाँव के बच्चे और मवेशी गर्मी में एक साथ जल पान का आनंद लेते । यही कारण था कि गाँव में बीमारी और नाले के बीच एक गहरा रिश्ता बना हुआ था । पीलिया , पेचिश , हैजा , खुजली आदि बीमारियाँ नाले के गंदे पानी के द्वारा गाँव में घर – घर पहुँच जाती थी । अस्पताल गाँव से दूर था । बरसात में गाँव किसी द्वीप की तरह नाले के शिकंजे में फँस जाता था ।
इस गाँव में थोड़ा पढ़ा – लिखा और समझदार युवक शिवनारायण था । नए जमाने की नई हवा , नई रीति , और नए विचार इस युवक के मन में लहरा रहे थे । अपने गाँव के पिछड़ेपन से वह बहुत दुखी रहता था । उसने कई बार लोगों को संगठित करना चाहा कि सब आपस में मिलकर नाले पर पुल बनाने की कोशिश करें किन्तु सभी लोग एकमत न हो सके । शिवनारायण की बात का समर्थन यदि किसी ने किया तो वे थे हकीम साहब । ग्रामवासी हकीम साहब का बहुत सम्मान करते थे । वे उनकी छोटी – मोटी बीमारियों का इलाज कर दिया करते थे । वे गाँववालों के लिए डूबते को तिनके का सहारा थे ।
इस बरसात में नाला उफान पर था । गाँव दो माह से बाहरी दुनिया से कटा हुआ था । एक घटना से सारे गाँववाले दहल गए । रात में वृद्ध हकीम साहब को दिल का दौरा पड़ा । उनकी बेहोशी और बिगड़ती हालत देखकर सारे गाँववाले एकत्र हो गए । जैसे – तैसे रात कटी , सभी चाहते थे कि हकीम साहब को अस्पताल ले जाएँ या कस्बे से डॉक्टर को लेकर आएँ । लेकिन उन चाहने से क्या होता ? उफनता नाला सामने जो था । एक दो साहसी युवकों ने नाला पार करने की कोशिश की लेकिन तेज बहाव में उनको लेने के देने पड़ गए । इसी बीच हकीम साहब इलाज के अभाव में चल बसे । इस घटना से शिवनारायण सबसे ज्यादा दुखी हुआ । आखिर वह बोल ही पड़ा “ अगर आप लोग समय रहते मेरी बात मान लेते तो यह नौबत न आती । ” उसी समय सभी गाँववालों ने कसम खाई कि अपने श्रमदान से नाले पर पुल बनाने की कोशिश करेंगे । गर्मी में जब नाले का पानी कम था , गाँववाले संगठित होकर पुल बनाने में जुट गए । गाँव का हर व्यक्ति अपने – अपने साधन लिए हुए पुल बनाने को तैयार था । यह बात जब जिला अधिकारियों तक पहुँची तो उन्होंने गाँववालों का उत्साह देखकर शासन की ओर से तकनीकी और आर्थिक सहायता प्रदान की । इससे ग्रामवासियों का उत्साह और बढ़ गया । महिला , पुरुष सभी उत्साह से श्रमदान में जुट गए । देखते ही देखते पुल के उद्घाटन की बात आई । शिवनारायण के साथ गाँव के बड़े – बूढ़े लोग जिलाध्यक्ष महोदय के पास गए और पुल के उद्घाटन हेतु निवेदन किया । जिलाध्यक्ष महोदय ने सहर्ष स्वीकृति दे दी । पुल के उद्घाटन के दिन पुल को सजाया गया । गाँव में पहली बार इतना बड़ा आयोजन हो रहा था । गाँववालों ने अधिकारियों का स्वागत कर जिलाधीश महोदय से फीता काटकर पुल का उद्घाटन करने का अनुरोध किया । जिलाध्यक्ष ग्रामवासियों के आपसी सहयोग और श्रम देखकर बहुत खुश थे । उन्होंने कहा- “ पुल का उद्घाटन मैं नहीं , आप लोग स्वयं करेंगे । ” उन्होंने गाँव के दो बुजुर्ग , दो युवा और दो महिलाओं को बुलाकर उन सभी को संयुक्त रूप से पुल का उद्घाटन करने को कहा । गाँव के छह प्रतिनिधियों ने एक साथ फीता काटकर पुल का उद्घाटन किया । अपने सम्बोधन में जिलाध्यक्ष ने कहा ” इसका उद्घाटन मैंने आप लोगों से ही करवाया है क्योंकि यह आपके सहयोग से बना हुआ पुल है । इसमें आपका श्रमदान लगा है ।
गांधीजी भी तो यही कहा करते थे कि आपसी सहयोग और स्वावलम्बन से हम बड़ी से बड़ी कठिनाईयों को दूर कर सकते हैं । ” सहयोग का पुल अब नालपुर की तरक्की के द्वार खोलेगा । ”
यहां पड़े