प्यार दो प्यार लो की कहानी | Story of Pyaar Do Pyaar Lo

 प्यार दो प्यार लो की कहानी

नर्मदा टीम के कप्तान बस ने आगे बढ़कर ‘ गंगा टीम के कप्तान पार्थ को मुबारकबाद दी और कहा , ” तुम और तुम्हारे साथी आज बहुत अच्छा खेले । तुम सबको हमारी बास्केट बॉल टीम की ओर से जीत की बधाई ।

 ” आस – पास बड़े सभी लड़के हैरान थे । यह चमत्कार कैसे हो गया । ” आज यश कैसे पार्थ के मैच जीतने से खुश है ? लगता है आज  सूरज पश्चिम से निकला होगा । ” कहते हुए सबने अपना सामान उठाया और चल दिए । 

यश को अपनी तरफ आते देख पार्थ रुक गया । उसके पास आने पर बोला , ” यश क्या बात है , आज तो तुम्हारा रूप एकदम बदला हुआ है । तुम हमारे सदन की जीत पर खुश


हो । सचमुच खुश हो या कुछ गड़बड़ करने वाले हो । ” पार्थ को यश के व्यवहार पर विश्वास नहीं हो रहा था

दोनों पहली कक्षा से साथ पढ़ते थे । उनमें हमेशा प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी । दोनों ही योग्य थे पर यश का स्वभाव उग्र था और पार्थ शांत मन का था । पार्थ की बात सुनकर यश गंभीर हो गया और बोला , ” तुम ठीक कहते हो पार्थ , मैं स्वयं भी अपने इस व्यवहार परिवर्तन से हैरान हूँ । जानते हो कल क्या हुआ ? ” क्या हुआ ? ” पार्थ ने उत्सुकतापूर्वक पूछा । 

” कल मैंने एक कहानी पढ़ी । उस कहानी के प्रभाव से ही मुझमें यह परिवर्तन आया है । मैं हमेशा तुम्हारी बातों से नाराज हो जाता था । मुबारकबाद देना तो दूर , मैं कहता था कि तुम बेईमानी से जीते हो । पर आज तुम्हारी जीत का मुझे बिल्कुल बुरा नहीं लगा । मैं सचमुच खुश हूँ । ” यश ने अपने मन की बात कह डाली । 

” तो अब वह कहानी जल्दी से सुना डालो जिसने तुम्हें इतना अच्छा इंसान बना दिया है । ” पार्थ ने कहा । ” क्या मैं पहले बहुत बुरा था , ” यश ने दुखी होकर पूछा । “ अरे ! बुरे कहाँ , तुम तो अकडू थे । ” पार्थ ने चिढ़ाया । 

यश ने उसकी पीठ पर धौल जमाई और नाटकीय अंदाज़ में बोला , “ अब सुनिए जनाब ! श्री यश सुंदर के व्यवहार परिवर्तन की कहानी । ” यश ने कहानी शुरू की । ” एक बार की बात है भगवान बुद्ध किसी गाँव में भ्रमण कर रहे थे । क्रोध से भरा एक व्यक्ति उनके पास आया और अपमानजनक शब्द कहने लगा , “ तुम एक नंबर के ठग हो । तुम्हारी ज्ञान की बातें धोखा हैं । तुम लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करते हो । ” बुद्ध ने उस व्यक्ति की बातों को धैर्यपूर्वक सुना और एक प्रश्न किया , “ अच्छा , बताओ मैं तुम्हें कोई वस्तु दूँ और तुम उसे लेने से इंकार कर दो तो वह वस्तु किसके पास रहेगी ? ” इस अटपटे प्रश्न से वह व्यक्ति सोच में पड़ गया । कुछ देर सोचता रहा फिर बोला , “ तुम्हारे पास रहेगी और किसके पास । ” ” बिल्कुल ठीक , ” बुद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा । “ तो तुमने मुझे गालियाँ दीं , मैंने नहीं ली , किसके पास रही ? ” बुद्ध ने पूछा । उस व्यक्ति का छोटा – सा उत्तर था , ” मेरे पास । ” ” तुमने मुझे ढोंगी , धोखेबाज़ , ठग जैसे अपशब्द दिए , मैंने नहीं लिए । किसको लगे ? ” बुद्ध ने फिर पूछा । ” मुझे ” , उस व्यक्ति ने उत्तर दिया । ” तुमने मुझ पर क्रोध किया , मैं शांत रहा । दुखी कौन हुआ ? ” ” मैं ” उसने उत्तर दिया । 

” तुम मुझे प्यार दो , मैं लेता हूँ । किसके पास रहेगा ? ” “ दोनों के पास , ” वह व्यक्ति अपने ही उत्तर पर हैरान था । उसको बुद्ध के वचनों की सच्चाई समझ में आ गई थी । वह उनके चरणों में गिर पड़ा और रोते हुए बोला , “ हे महात्मा ! मुझे प्यार की राह दिखाइए । ” उस व्यक्ति को उठाया और कहा , “ प्यार से प्यार फैलता है और नफ़रत से नफ़रत । दूसरों को दुख देकर कोई स्वयं खुश नहीं रह सकता । ” यश कहानी समाप्त करके चुप हो गया । फिर दोनों एक साथ बोले , “ चलो प्यार फैलाएँ । ” दोनों ने ठहाका लगाया और एक – दूसरे के गले में बाँहें डाले चल दिए । 

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