सोल्डरिंग क्या है और कितने प्रकार के होती है | Soldering in Hindi

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 सोल्डरिंग (Soldering ) क्या है

” दो समान या भिन्न धातुओं के तारों , टुकड़ों आदि को ऊष्मा प्रक्रिया द्वारा तीसरी धातु की सहायता से जोड़ने की क्रिया सोल्डरिंग कहलाती है । ” यह तीसरी धातु , फिलर धातु ( filler metal ) कहलाती है । यह प्रायः सीसा तथा टिन से बनी मिश्र धातु होती है । फिलर धातु का गलनांक सदैव जोड़ी जाने वाली धातुओं के गलनांक ( melting point ) से कम होता है । 

सोल्डर कितने प्रकार के होते हैं?

यह एक मिश्र धातु होती है और इसका गलनांक उन धातुओं के गलनांक से कम होना आवश्यक है जिन्हें सोल्डरिंग द्वारा जोड़ा जाना है । यह मुख्यत : निम्न प्रकार का होता है 

कठोर सोल्डर ( Hard Solder ) क्या है

इस सोल्डर का गलनांक , अन्य सोल्डर्स के गलनांकों की अपेक्षा अधिक होता है । इसका उपयोग ताँबा , पीतल , लोहा आदि धातुओं के बड़ आकार के टुकड़ी या मोट ‘ तारों व केबिल्स के जोड़ों पर टाँका लगाने के लिए किया जाता है । यह निम्न प्रकार का होता है 

A. स्पैल्टर Spelter 

यह निम्न तीन अनुपातों में बनाया जाता है और जॉब की आवश्यकतानुसार प्रयोग किया जाता है 

( a ) ताँबा -50 % , जस्ता – 50 % 

( b ) ताबा -67 % , जस्ता – 33 % 

( c ) ताँबा -50 % , जस्ता = 37 % , टिन = 13%

इसका उपयोग प्लम्बर एवं शीट मैटल व्यवसायों में ब्रेजिंग करने के लिए किया जाता है ।

B. सिल्वर सोल्डर Silver Solder 

इसका गलनांक , स्पैल्टर के गलनांक से कम होता है । इसका उपयोग सोना , चाँदी , जर्मन सिल्वर आदि धातुओं की वस्तुओं में टाँका लगाने के लिए किया जाता है । 

( a ) ताँबा = 33 % , चाँदी – 67 % चाँदी की वस्तुओं में टाँका लगाने के लिए प्रयोग किया जाता है । 

( b ) ताँबा – 20 % , चाँदी – 10 % , सोना = 70 % इसका उपयोग स्वर्ण आभूषणों में टाँका लगाने के लिए किया जाता है 

( c ) ताँबा = 20 % , चाँदी = 70 % , जस्ता = 10 % इसका उपयोग रजत आभूषणों में टाँका लगाने के लिए किया जाता है । 

( d ) तांबा= 35 % , जस्ता = 55 % , निकिल = 10 % इसका उपयोग जर्मन सिल्वर में टाँका लगाने के लिए किया जाता है । 

नर्म सोल्डर ( Soft Solder ) क्या है

इसका गलनांक सिल्वर सोल्डर के गलनांक से भी कम होता है । इसके निर्माण में टिन और सीसा धातुएँ प्रयोग की जाती हैं । सोल्डर में टिन की मात्रा जितनी अधिक रखी जाती है उतना ही उसका गलनांक कम होता है । 

 सूक्ष्म आकार वाले वैद्युतिक उपकरणों के लिए 50 % : 50 % , टिन : लैंड वाला सोल्डर उपयुक्त होता है । रेडियो , टी . वी . कार्यों के लिए 80 % : 20 % , टिन : लैड वाला सोल्डर उपयुक्त होता है । 

एल्युमीनियम  की वस्तुओं को जोड़ने के लिए उपरोक्त कोई भी सोल्डर उपयुक्त नहीं होता , इसके लिए ‘ ALCA – P ‘ अथवा निम्न मिश्रण वाला सोल्डर प्रयोग किया जाता है 

टिन = 70 % , जस्ता = 25 % , एल्युमीनियम = 3 % , फॉस्फर – टिन = 2 % 

फ्लक्स (Flux ) क्या है

सोल्डरिंग क्रिया को सरलतापूर्वक सम्पन्न करने के लिए फ्लक्स नामक अधात्विक मिश्रण प्रयोग किया जाता है । यह चूर्ण अथवा लेई ( powder or paste ) के रूप में उपलब्ध होता है । सोल्डरिंग क्रिया में फ्लक्स निम्न प्रकार सहायक होता है 

( i ) यह जोड़ी जाने वाली धातुओं की सतह के ऑक्सीकरण को रोकता है । 

( ii ) यह जोड़ पर पिघलाए गए सोल्डर के बहाव में सुगमता प्रदान करता है । 

( iii ) यह जोड़ को साफ करता है । 

( iv ) यह सोल्डर को शीघ्र पिघलने में सहायता प्रदान करता और ऊष्मा को जॉब तक शीघ्रता से पहुँचने में सहायक होता है । 

विभिन्न धातुओं की सोल्डरिंग में भिन्न – भिन्न प्रकार के फ्लक्स प्रयोग किए जाते हैं 

सोल्डरिंग कैसे की जाती है

सोल्डरिंग का कार्य निम्नवत् सम्पन्न किया जा सकता है 

सोल्डरिंग आयरन द्वारा By Soldering Iron 

इस विधि में वैद्युतिक कार्यो के लिए 65 वाट या 125 वाट 230 वोल्ट्स ए . सी . वैद्युतिक सोल्डरिंग आयरन , सोल्डर कार्ड तथा फ्लक्स की आवश्यकता होती है । सोल्डरिंग आयरन के पर्याप्त गर्म हो जाने पर उसकी बिट से टाँका लगाए जाने वाले जोड़ को गर्म किया जाता है । अब जोड़ पर थोड़ा – सा फ्लक्स लगाकर , सोल्डर कार्ड को जोड़ पर पिघलाया जाता है । जब जोड़ अच्छी प्रकार सोल्डर से भरा जाता है तो सोल्डर कार्ड को हटा लिया जाता है और इसके बाद सोल्डरिंग आयरन को हटा लिया जाता है , यदि किसी स्थान पर सोल्डर अधिक लग जाए और लटकने लगे तो उसे सोल्डरिंग आयरन एवं पेंचकस की सहायता से हटा दिया जाता है

ध्यान दें कि सोल्डर कार्ड को जोड़ पर पिघलाया जाता है न कि सोल्डरिंग आयरन की बिट पर पिघलाकर उसे जोड़ तक ले जाया जाता है । 

ब्लोलैम्प द्वारा By Blow – lamp 

इस विधि के द्वारा सोल्डरिंग करने के लिए ब्लो – लैम्प , सोल्डर रॉड तथा फ्लक्स की आवश्यकता होती है । ब्लो – लैम्प को जलाकर उसकी नीली लौ से जोड़ को गर्म किया जाता है । अब जोड़ पर उपयुक्त फ्लक्स लगाकर , सोल्डर रॉड को पिघलाकर जोड़ को भरा जाता है । यदि जोड़ अधिक गर्म  हो जाता है तो सोल्डर नीचे गिरने लगता है , ऐसी स्थिति में ब्लो लैम्प को दूर करके सोल्डरिंग की जाती है । ध्यान दें कि सोल्डरिंग आयरन की अपेक्षा ब्लो – लैम्प से जोड़ जल्दी गर्म होता है और अधिक गर्म हो जाता है । 

सोल्डरिंगपात्र और कड़छी द्वारा By Soldering – pot and Laddle 

 इस विधि के द्वारा सोल्डरिंग करने के लिए सोल्डरिंग – पात्र , कड़छी , सोल्डर रॉड तथा फ्लक्स की आवश्यकता होती है । ब्लो – लैम्प के द्वारा सोल्डरिंग – पात्र में सोल्डर – रॉड के टुकड़े डालकर उन्हें  पिघलाया जाता है । अब जोड़ पर फ्लक्स लगाकर गर्म – गर्म सोल्डर कड़छी द्वारा जोड़ पर कई बार डाला जाता है । सोल्डरिंग पात्र जोड़ के नीचे रखा जाता है । दो – तीन बार सोल्डर डालने के बाद ही वह जोड़ पर चिपकना प्रारम्भ करता है क्योंकि प्रारम्भ में डाला गया सोल्डर , जोड़ को गर्म करता है । सोल्डर को पात्र में गर्म करते समय , पात्र को थोड़ा – थोड़ा हिलाते रहना चाहिए जिससे कि  सोल्डर के घटक ( टिन व सीसा ) मिश्रित अवस्था में रहे ।

सोल्डरिंग करने से पहले क्या किया जाता है?

सोल्डरिंग करने के लिए सबसे पहले सोल्डिंग आयन को गर्म करना आवश्यक होता है इसके लिए ब्लो लैम्प, ब्लो टार्च या गैस फ्लेम का प्रयोग किया जाता है और सोल्डरिंग बीट को केवल उतना ही गर्म करना चाहिए जितना कि सोल्डरिंग आसानी से पिघल सके

सोल्डरिंग आयरन कैसे काम करता है

जब इसका बिट सोल्डरिंग के लिए पर्याप्त गर्म हो जाता है तो इसकी मदद से फिलर धातु अर्थात सोल्डर को जोड़ पर (जहाँ सोल्डरिंग करनी है वहां पर) पिघला कर उसे जोड़ पर भर दिया जाता है। पिघला हुआ सोल्डर कुछ ही सेकेंड में कठोर हो जाता है जिससे जोड़ भी पक्का हो जाता है

सोल्डर पेस्ट कैसे बनता है?

यह जिंक क्लोराइड, रेजिन(resin), ग्लिसरीन आदि को मिलाकर तैयार किया जाता है। यह ऑक्सीकरण को समान करने में तेजी से काम करता है। इसका उपयोग तारों को जोड़ने व हल्के कामों में किया जाता है। और भिन्न – भिन्न धातुओं (metals) को जोड़ने के लिए भिन्न – भिन्न सोल्डर का प्रयोग होता है।

सोल्डरिंग करते समय कौन सी सावधानियां रखनी चाहिए?

सोल्डरिंग करते समय निम्न निर्देशों का अनुपालन करना चाहिए 

( i ) सोल्डरिंग आयरन का बिट ताँबे का होना चाहिए । 

( ii ) सोल्डरिंग से पूर्व बिट को साफ कर लेना चाहिए और यदि आवश्यक हो तो सैण्ड पेपर प्रयोग करना चाहिए । 

( iii ) सोल्डरिंग आयरन को बहुत अधिक गर्म नहीं करना चाहिए । 

( iv ) सोल्डरिंग आयरन की बिट पर सोल्डर की महीन पर्त चढ़ा लेनी चाहिए । 

( v ) जोड़ को खुरचकर साफ और चिकनाईरहित कर लेना चाहिए । 

( vi ) जोड़ चमकदार और भरे हुए होने चाहिए । 

( vii ) जोड़ से अतिरिक्त सोल्डर को हटा देना चाहिए । 

( viii ) जोड़ में छिद्र नहीं छूटने चाहिए । 

( ix ) सोल्डरिंग द्वारा शुष्क जोड़ ( dry joints ) नहीं बनाने चाहिए , क्योंकि शुष्क जोड़ों में से विद्युत धारा का 100 % प्रवाह स्थापित नहीं हो पाता । 

( x ) सोल्डरिंग के पश्चात् अवशिष्ट फ्लक्स को जोड़ पर से साफ कर देना चाहिए । 

FAQ

1. सोल्डरिंग आयरन का तापमान कितना होता है

Ans  200 से 480 डिग्री सेल्सियस

2. सोल्डरिंग वायर का आम नाम क्या है?

Ans  रांगा

3. सबसे मजबूत सोल्डर क्या है?

Ans 60-40 सोल्डर (60% टिन, 40% लेड) सबसे महंगा

4. सोल्डर का गलनांक कितना होता है?

Ans कलई का गलनांक 235 डिग्री सेल्सियस तथा लेड का गलनांक 325 डिग्री सेल्सियस

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