हीरा कुंणी की कहानी
ग्वालिन का नाम था होरा , और उसकी गाय का नाम था कुणी । हीरा का एक महीने का बच्चा था । गाय की भी एक महीने की बछिया थी । हीरा रायगढ़ के पर्वत पर चढ़कर महाराष्ट्र के राजा को दूध देने जाया करती थी । राजा , कुणी गाय का दूध पीकर आनन्द मनाता था । बछिया रोती रहती थी । हीरा के मन में बछिया के लिए किसी भी दिन दया नहीं जागती थी दुध दुहने के समय कुणी गाय रह रह कार बछिया को पुकारली थी । बछिया दौड़कर दूध पीने के लिए आती पर हीरा उसे लौटा देती । उसे खूटे से बांध रखती थी । इस प्रकार बछिया अपनी माँ को नहीं पा सकती थी और दूध के लिए तरसती , बिलखती रहती थी
हीरा का ध्यान उधर कभी जाता ही नहीं था । वह तो सुबह – शाम दूध दुहकर , उसे बेचने के लिए राजा के किले में चली जाती थी । रात होने से पहले ही हीरा किले से लौट आती थी । पहले , अपने बच्चे को दूध पिलाती , थपकियाँ देकर सुला देती फिर बछिया को पकड़कर कुणी के पास ले जाती । बछिया लपककर अपनी माँ की गोद में जा पहुँचती , दूध जरा सा ही पी पाती थी । कुणी अपनी बछिया के तन को चाटकर सुला दिया करती थी । बछिया भूखी रह जाती थी और राजा दूध पीकर मौज मनाता था । इसी तरह दिन बीतते रहे ।
एक दिन हीरा दूध बेचने के लिए किले में गई । वहीं दूध का मूल्य चुकाने में राजा के कोषाध्यक्ष ने देर लगा दी।शाम का घंटा बज गया।किले का फाटक बंद कर दिया गया।हीरा बोली- ” द्वार खोलो ” ।
पहरेदार ने कहा- ” आज्ञा नहीं है ” हीरा का मन बच्चे के लिए छटपटाने लगा । वह रोकर कहने लगी ‘ मेरा मुन्ना भूखा है , तुम्हारे पैर पड़ती हूँ , फाटक खोल दो ।
” राजा के पत्थर – दिल पहरेदार ने द्वार नहीं खोला बालक को दूध पिलाने के लिए माँ की छाती फटने लगी’ उसने फाटक की जंजीर पकड़कर हिलाई और फिर विनती की अरे भाई , एक बार द्वारखोला दो । ” पहरेदार ने फिर झल्ला कर कहा ” हुक्म नहीं है।
सूरज छिप गया । पक्षी पंख फैलाकर अपने घरों को और उड़ चले । किले के मध्य भाग में देव मंदिर के ऊपर सॉझ का तारा दिखने लगा । हीरा रोकर मन ही मन कहने लगी और ये अपने लाल के पास पहुंच जाती । वह दूध पिए बिना बिलख रहा होगा ।
‘ पहाड़ के नीचे तराई में ही होरा का घर है । कुणी गाय अपनी बछिया की पुकार रही है । वहाँ से उसको पुकार होरा को सुपाई पड़ी । वह दूध की मटकी पटककर उठ खड़ी हुई । वह किसी रास्ते की खोज किरने लगी ।
किले की दीवार पुराणी थी । एक जगह पर किनारे से पहाड़ धॅस गया था । एक पीपल का पेड़ दीवार पर झुका था । उसी जगह पर आधी रात में चाँदनी पड़ रही थी । हीरा ने चाँदनी में देखा कि चट्टानों की नॉके घड़ियाल के बड़े बड़े दांतों की तरह चमक रही है । हीरा उसी रास्ते से धीमे धीमे उतरने लगी , एक – एक पत्थर पर पैर टिकाकर । उसके बाद एक पगडंडी से हीरा अपने घर जा पहुंची ।
उस समय रात का तीसरा पहर बीत रहा था । भोर होने की तैयारी थी । बच्चा रो – रो कर सो गया था । हीरा सोते हुए बच्चे को उठाकर , छाती से लगाकर दूध पिलाने लगी । उधर रस्सी तोड़कर कुणी की भूखी बछिया भी दूध पीने लगी थी । हीरा ने उस दिन उसे बाँधा नहीं । भोर हो गई । दिन चढ़ने लगा । रायगढ़ के राजा ने नींद से जागकर दूध माँगा।हीरा दूध नहीं लाई थी ।
हीरा के घर से दूध लाने के लिए सिपाही को दौड़ाया गया । हीरा कहने लगी- ” दूध नहीं है , सूख गया है । ” वह ठहरा राजा का सिपाही । वह भला क्यों मानने लगा था । हीरा को पकड़कर वह किले में ले आया । राजा ने हीरा से सारी कहानी सुनी । उसका दिल पिघला । राजा ने हीरा को एक गाँव जागीर में दे दिया और जिस मार्ग से हीरा अपने जीवन को संकट में डालकर , अपने बच्चे के समीप जा पहुंची थी , राजा ने उस कठिन रास्ते का नाम रखा- ” हीरा – कुणी । “
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