लीलावती के भाग्य की कहानी
नमस्कार मित्रों आज मैं फिर से आप के बीच उपस्थित हूं एक नई मोरल स्टोरी के साथ जो आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व हुई एक सत्य घटना पर आधारित है तो कहानी कुछ इस प्रकार है भारतीय वैदिक गणित के सूत्रधार भास्कराचार्य जिन्होंने अंकगणित पाटी गणित ज्योतिष शास्त्र पर अपने विचार अपने महान ग्रंथ सिद्धांत शिरोमणि मैं प्रस्तुत किए हैं सिद्धांत शिरोमणि का अधिकांश हिस्सा भास्कर आचार्य जी की पुत्री लीलावती द्वारा लिखित है
क्योंकि लीलावती आचार्य की इकलौती पुत्री थी तो उन्होंने अपनी पुत्री का लालन-पालन बहुत अच्छी तरह से किया धीरे-धीरे समय व्यतीत होने लगा लीलावती अपने पिता के साथ खेलते कूदते बड़ी हो गई अब भास्कर आचार्य जी को लीलावती के विवाह की चिंता होने लगी क्योंकि लीलावती अपने पिता के ग्रंथ सिद्धांत शिरोमणि के लेखन में उनका सहयोग करती थी फलस्वरूप वह धीरे-धीरे अंकगणित ज्योतिष शास्त्र पार्टी गणित आदि विभिन्न विषयों में पारंगत हो गई
एक बार की बात है लीलावती ने अपने ज्योतिष विद्या से अपने आने वाले जीवन के बारे में बहुत सी गणना की और उसे बहुत से संभावित परिणाम प्राप्त हुए जिनमें से एक था कि वह विवाह के कुछ दिनों के अंदर ही विधवा हो जाएगी चुकि लीलावती अपनी गणितीय गणना में पारंगत थी तब तो यह बात भास्कर आचार्य जी को भी चिंता में डालने लगी परंतु लीलावती कहां हार मानने वाली थी उसने फिर से अपनी सारी विद्या का प्रयोग करके कई कैलकुलेशन की था एक ऐसी घड़ी को खोज निकाला जिसमें यदि लीलावती विवाह करती तो वह कभी विधवा नहीं होती
लीलावती ने खुशी-खुशी अपने सारे कैलकुलेशन अपने पिता भास्कर आचार्य जी को दिखाएं भास्कराचार्यजी ने उनका निरीक्षण कर यह निष्कर्ष निकाला कि यदि यह घड़ी में वह अपनी पुत्री विवाह कर दे तो उसका यह विधवा योग समाप्त हो सकता है तो आप क्या था विवाह की तिथि और मुहूर्त निश्चित हो गए देखभाल कर अच्छे वर की तलाश पूरी
उस समय घड़ी के स्थान पर जल घड़ी का उपयोग समय देखने के लिए किया जाता था जल घड़ी एक सामान्य संयंत्र होता था जिसमें एक बर्तन में एक बारीक छेद करके उसे एक पानी से भरे घड़े में छोड़ दिया जाता था जैसे जैसे समय व्यतीत होता उस छेद पानी बर्तन में आने लगता और जैसे ही बर्तन पूरा भर जाता तो वहां घड़े के पानी में डूब जाता बर्तन के भरने मैं लगे समय को एक घड़ी कहा जाता था
अब आपके मन में एक विचार आ रहा होगा अचानक लीलावती की बात करते-करते यह जल घड़ी बीच में कहां से आ गई? इसका जवाब आपको आगे कहानी में जरूर मिल जाएगा तो हुआ यूं की लीलावती अपने विवाह के दिन सज धज कर पूरे सोलह श्रंगार किए उस घड़ी का बेसब्री से इंतजार कर रही थी जिसमें उसका विवाह होना निश्चित हुआ था तभी अचानक लीलावती के आभूषण का एक मोती उस जल घड़ी के बर्तन में गिर गया जिससे जल घड़ी का छेद बंद हो गया जिस से पानी आना रुक गया और लीलावती की सारी कैलकुलेशन धरी की धरी रह गई और उस घड़ी में लीलावती का विवाह ना हो सका
चुकि विवाह तो निश्चित हो ही चुका था तो बारात के आने पर भास्कर आचार्य जी ने अपनी कन्या का विवाह दूसरे मुहूर्त पर कर दिया विवाह होने के कुछ दिन बाद लीलावती के पति की मृत्यु हो गई और वह विधवा हो गई तो ऐसे इतने बड़े ज्योतिष जानकार की पुत्री का भाग्य भी अपना खेल खेल ही गया
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने जीवन में भाग्य से अधिक कर्म को प्रधानता देनी चाहिए इसके बाद भी यदि आपका भाग्य आपका साथ ना दे तो इसमें आपकी कोई गलती नहीं है शो मनुष्य को अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है “हे पार्थ! तेरा अधिकार सिर्फ कर्म करने में है उसके फल में कभी नहीं अतः कर्म करते जाओ और फल की आशा ना करो“
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