लाला पटेल की लाइब्रेरी की कहानी
बहुत साल पहले की बात है। भारत में अंग्रेजों का राज था। चारों तरफ़ आजादी के नारे गूंज रहे थे। गाँवों का जीवन बदल रहा था। लाला पटेल का गाँव गुजरात में था। गाँव में बिजली आ गई थी। नई सड़कें बन रही थीं। किसान खेतों में नए बीज बो रहे थे। नई खाद डाल रहे थे।
लाला पटेल गाँव के बुजुर्ग थे। सब उनकी सलाह लेते। लाला पटेल अनपढ़ थे। वे सरकारी फ़रमान पढ़ नहीं पाते थे। सरकारी अफ़सर शहर से आते। गाँव के लोगों पर अंग्रेजी में रोब जमाते। अनपढ़ होने का ताना देते। एक दिन लाला पटेल ने सोचा, “सरकारी बाबू हमें गँवार समझते हैं। खेती करना क्या आसान है? उसमें भी सूझ-बूझ चाहिए। किसान खेत तैयार करता है। धान उगाता है। पशुओं की देखभाल करता है। मेरे पास जमीन है। मैं खेती करूँगा। इस उम्र में मुझसे लिखना-पढ़ना नहीं होगा।”
यह सोचकर लाला खेती करने लगे। एक दिन सरकारी फ़रमान आया। गाँव में लायब्रेरी’पुस्तकालय बनेगा। लोग सोच में पड़ गए। लाला पटेल से सलाह लेनी होगी।
सभा बुलाई गई। लाला पटेल सभा में आए। चौपाल पर चर्चा शुरू हुई। मुखिया ने लोगों को ‘लायब्रेरी’ के बारे में बताया- ‘लायब्रेरी’ यानी ग्रंथालय जिसमें किताबें रखी जाएँगी, अखबार रखे जाएँगे। लोग यहाँ आकर पढ़ सकते हैं। गाँव के लोग ‘लायब्रेरी’ बनवाना चाहते थे। लाला पटेल ने सभी लोगों की बात सुनी। वे साहब से बोले, “बाबू साहब, गाँववालों की यही इच्छा है। लायब्रेरी’ के लिए मैं भी राजी हूँ।”
गाँव में ‘लायब्रेरी’ बनाने की तैयारी शुरू हो गई। गाँव के एक मकान में लायब्रेरी’ बनी। ग्रंथालय के अफ़सर को ‘ग्रंथपाल’ कहते हैं। लेकिन लोगों के लिए ये नाम कठिन थे। उन्होंने अपने ही नाम ईजाद कर लिए। ‘लायब्रेरी’ के लिए ‘लायबरी’ और ‘ग्रंथपाल’ के लिए ‘किताब बाबू’। गाँव की ‘लायबरी’ के ‘किताब बाबू’ शहर से आए थे। उनका नाम था-केशव भाई।
‘लायबरी’ सबके मिलने की जगह बन गई। केशव भाई लोगों को पढ़ना-लिखना सिखाने लगे। बड़े-बूढ़े इस उम्र में सीखते-सीखते एक-दूसरे का खूब मजाक उड़ाते। लाला पटेल भी इस पढ़ने-पढ़ाने और सीखने के खेल में शामिल हो गए।
पढ़नेवालों की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी होती गई। औरतें भी लायबरी’ में आने लगीं। केशव भाई का काम बढ़ गया। वे गाँव के लोगों को साक्षर बनाना चाहते थे। लायबरी’ का यही संदेश था। एक दिन एक बढ़ई ‘लायबरी’ में आया। लकड़ी काटने की बिजली की नई मशीन के बारे में उसने सुना था। केशव भाई ने किताब निकालकर दी। उसे लकड़ी की अच्छी-अच्छी चीजें बनाने की जानकारी मिली। उसने तय किया कि वह ‘लायबरी’ ज़रूर आएगा।
एक दिन केशव भाई का चेहरा मुरझाया हुआ था। उसपर गहरी चिंता स्पष्ट दिख रही थी। लाला पटेल ने केशव भाई से पूछा, “क्या बात है केशव भाई ? किस चिंता में हो?” केशव ने जवाब दिया, “सरकार का हुकुम आया है। मुझे नौकरी से छुट्टी दे दी गई है।”
लाला को बहुत अचरज हुआ। उन्होंने केशव भाई से इस हुकुम का कारण पूछा। केशव भाई ने बताया, “हमारे गाँव के कुछ लड़के पकड़े गए हैं। वे आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए थे। पुलिस कहती है कि लड़कों को मैंने भड़काया है। मैं सरकार के खिलाफ़ हूँ… । लाला जी, मैं अपने गाँव लौटना चाहता हूँ। आप लोगों से मैंने बहुत कुछ सीखा। आपने अपनी बंजर जमीन को एक बार फिर हरा-भरा बना दिया। धान की पैदावार दुगुनी कर दी। गाँव में मेरी भी थोड़ी जमीन है। मैं उसे खेती के लिए तैयार करूँगा। उस पर खेती करूँगा। गांधी जी आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं। हम सबको उनका साथ देना है।”
‘लायबरी’ में जमा लोग परेशान थे। लाला पटेल का चेहरा उदास था। सभी सोच में डूबे थे। अब क्या होगा? अचानक लाला पटेल का चेहरा खिल उठा। वे अपनी धुन में बोले, “बाबू, यह लाला अभी जिंदा है। मरा नहीं है। लायबरी’ मैं चलाऊँगा।”
वहाँ जमा सभी लोगों के मुँह से निकला, “हाँ, केशव भाई। लाला पटेल ‘लायबरी’ के किताब बाबू होंगे।” लाला जोश में आ गए और बोले, “आप चिंता न करें केशव भाई। ‘लायबरी’, ‘चरखा’ और ‘खेत’, ये हमारे गाँव के मंदिर, मरजिद और गिरजाघर होंगे। बापू का सपना हम साकार करेंगे।” यह सुनकर लोगों की आँखों में चमक आ गई।
लोगों में नया आत्मविश्वास था। उनमें नई ताकत थी। लाला पटेल और ‘लायबरी’ का साथ था। इस तरह लाला पटेल ‘लायबरी’ के किताब बाबू बन गए। वे किसान थे। अनपढ़ थे। ‘लायबरी’ में उन्होंने पढ़ना-लिखना सीखा। ‘लायबरी’ चलाने का तरीका सीखा। लोगों ने ‘लायबरी’ का नाम-‘लाला पटेल की लायबरी’ रख दिया।
आजादी की लड़ाई में गाँववालों ने भी हिस्सा लिया। अहिंसा को अपना शस्त्र बनाकर लाला पटेल ‘लायबरी’ चलाते रहे। लाला पटेल की ‘लायबरी’ की महिमा को लोग आज भी याद करते हैं।
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