फूलों का नगर की कहानी
गुरु वेदांत के गुरुकुल में बहुत-से राजकुमार शिक्षा प्राप्त करने के लिए दूर-दूर से आते थे और गुरुकुल में रहा करते थे। सभी गुरुकुल के नियमों का पालन करते थे और निपुण बनकर वापस लौटते थे। गुरु जी भी शिष्यों को समान रूप से प्रेम करते थे और उनमें किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं करते थे। यूँ तो सभी उनकी बहुत सेवा करते थे,
पर अमृत और अनिरुद्ध दिन-रात की परवाह किए बगैर आश्रम का कार्य किया करते।
जब उनकी शिक्षा पूरी हो गई और आश्रम छोड़ने का समय आया, तो गुरु जी ने उन दोनों को बुलाकर कहा, “मैं तुम दोनों से बहुत प्रसन्न हूँ इसलिए तुम्हें दो बातें बता रहा हूँ। अगर तुम इनपर अमल करोगे, तो तुम्हारे राज्य में सदा संपन्नता और खुशहाली रहेगी।” दोनों राजकुमार एक साथ बोले, “हम आपकी आज्ञा अवश्य मानेंगे।” गुरु जी मुसकराकर बोले, “अहिंसा का मार्ग अपनाना तथा सदा प्रकृति की रक्षा करना।”
दोनों राजकुमारों ने सहर्ष हामी भर दी और अपने-अपने राज्य की ओर चल पड़े। अनिरुद्ध ने कुछ वर्षों तक तो गुरु जी की आज्ञा का पालन किया परंतु राजा बनते ही उसने शिकार पर जाना शुरू कर दिया। हरे-भरे वृक्षों को कटवाकर उसने कई नगर बसवाए। धीरे-धीरे उसके राज्य में गिने-चुने पेड़ ही बाकी रह गए, जिसकी वजह से पर्यावरण असंतुलित हो गया और सूखा पड़ने लगा।
वहीं दूसरी ओर अमृत को अपना वचन याद था। उसने राजा बनते ही शिकार पर पूर्णतः प्रतिबंध लगा दिया और जगह-जगह पेड़ लगवाने शुरू कर दिए। वह जब भी कहीं खाली जमीन देखता, तो वहाँ पर फूलों के बीज बिखरवा देता। कुछ ही दिनों बाद वहाँ पौधे उग आते और उनपर रंग-बिरंगे सुंदर फूल खिलने लगते। प्रजा भी अपने राजा
को पूरा सहयोग करती और बच्चे से लेकर बूढ़े तक कोई भी फूलों को नहीं तोड़ता था। फूलों पर रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराया करतीं और लोग ठगे-से इस मनोरम दृश्य को देखने लगते।
एक दिन अमृत दरबार में बैठा अपनी प्रजा के बारे में बात कर रहा था, तभी एक दूत दौड़ता हुआ आया और बोला, “महाराज! राजा अनिरुद्ध ने हमारे राज्य पर आक्रमण करने की योजना बनाई है और वह अपनी विशाल सेना सहित युद्ध करने के लिए राज्य में प्रवेश करनेवाला है।”
यह सुनकर अमृत परेशान होता हुआ बोला, “युद्ध होने से तो हजारों सैनिक मारे जाएँगे और मासूम प्रजा को भी कष्ट होगा।” इस पर महामंत्री ने विनम्र शब्दों में कहा, “परंतु महाराज! अगर हम युद्ध नहीं करेंगे तो वह हम सबको बंदी बना लेगा।” यह सुनकर अमृत के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आईं और वह बिना कुछ कहे अपने
कक्ष में चला गया। बिना कुछ खाए-पिए वह सारा दिन और सारी रात सोचता रहा कि युद्ध को कैसे टाला जाए।
सुबह की पहली किरण के साथ ही वह उठकर बगीचे में चला गया। रंग-बिरंगे फूलों से लदे हुए वृक्षों को देखकर अचानक उसके मन में एक विचार आया और उसने तुरंत महामंत्री को बुलाकर अपनी योजना समझा दी। महामंत्री का चेहरा भी खुशी से खिल उठा। इसके बाद राजा बेफ़िक्र होकर राजमहल चला गया। शाम के समय राजा अनिरुद्ध ने राज्य की सीमा में अपने हजारों सैनिकों के साथ प्रवेश किया और नगर
की खूबसूरती देखकर वह अचंभित रह गया। तभी उसके सेनापति ने कहा, “महाराज! अब हमें आक्रमण करना चाहिए।”
“हाँ, हाँ, क्यों नहीं,” कहता हुआ अनिरुद्ध आगे की ओर बढ़ा। जैसे ही सैनिकों ने तलवारें निकाली, मधुमक्खियों के झुंड ने उनपर धावा बोल दिया। अब उनकी तलवारें भी किसी काम की नहीं रहीं। मधुमक्खियों ने पूरी सेना को काट खाया। सैनिक जान बचाने के लिए वापस भागे।
इसी बीच मधुमक्खियों ने अनिरुद्ध को भी काट लिया। उसका शरीर सूज गया। वह घोड़े से नीचे गिर पड़ा। उसका सिर किसी नुकीली वस्तु से टकराया और वह बेहोश हो गया। जब उसको होश आया, तो वह अमृत के राजमहल में था और अमृत उसके माथे पर प्यार से हाथ फेर रहा था। अनिरुद्ध रुंधे गले से बोला, “मैं तुम्हें जान से मारने आया था और तुम्हीं ने मेरी जान बचाई है।” अमृत उसके आँसू पोंछते हुए बोला, “मैंने हमेशा गुरु जी की सीख पर अमल किया है। अहिंसा ही मेरा धर्म है।”
अमृत ने अनिरुद्ध के चेहरे पर अचरज के भाव देखकर कहा, “तुमने देखा कि मेरे राज्य में हर कदम पर फूलों से लदे हुए वृक्ष हैं और उनमें सैकड़ों मधुमक्खियों ने अपने छत्ते बनाए हुए हैं। जब तुम्हारी सेना आई तो मेरे सैनिकों की एक टुकड़ी ने गुलेलों से छत्तों पर पत्थर मारे और छिप गए जिससे गुस्से में सारी मधुमक्खियां तुम लोगों पर टूट पड़ीं।”
अनिरुद्ध अमृत की दूरदर्शिता और सूझ-बूझ देखकर हैरान रह गया। वह बोला, “मुझे माफ़ कर दो। अब मैं चलता हूँ।”
यह सुनकर अमृत बड़े प्यार से अनिरुद्ध से बोला, “मित्र! मैं तुम्हें खाली हाथ नहीं जाने दूंगा। मैं तुम्हारे राज्य की सारी स्थिति जानता हूँ। तुम जितना चाहो उतना धन ले जा सकते हो। कई बोरों में फूलों के बीज भी हैं, उन्हें तुम मिट्टी में दबवा देना ताकि जब मैं तुम्हारे यहाँ आऊँ तो तुम्हारे राज्य को खूब हरा-भरा पाऊँ।”
अनिरुद्ध अमृत का प्यार देखकर खुशी के मारे रो पड़ा और बोला, “मैं भी अपने राज्य को तुम्हारे जैसा ही ‘फूलों का नगर’ बनाऊँगा।”
कहानी से सीख
बच्चों हमें अपने गुरुजनों से प्राप्त शिक्षा का सम्मान करना चाहिए जब हमें उनके द्वारा दी गई शिक्षा को भूल जाते हैं या उनका अनादर करते हैं तब हमारा जीवन असफल सा लगने लगता है