दोलित्र (Oscillator ) क्या है
निम्न आवृत्ति की प्रत्यावर्ती विद्युत धारा तो आल्टरनेटर से उत्पन्न की जा सकती है परन्तु किलोहर्ट्ज , मैगाहर्ट्ज तथा गिगाहर्ट्ज ( kHz , MHz and GHz ) आवृत्ति की विद्युत धारा पैदा करने के लिए ट्रांसिस्टर युक्त परिपथ प्रयोग किया जाता है जो ऑसिलेटर कहलाता है । यह परिपथ वास्तव में उच्च आवृत्ति की विद्युत धारा उत्पन्न नहीं करता अपितु ट्रांसिस्टर परिपथ में विद्यमान डी.सी को ए.सी में परिवर्तित कर देता है । इसे हम निम्न परिपथों के द्वारा समझ सकते हैं
एम्प्लीफायर परिपथ Amplifier Circuit
वास्तव में एम्प्लीफायर परिपथ में धनात्मक पुनर्निवेश की व्यवस्था करके ही उसे दोलित्र परिपथ में परिवर्तित किया जाता है ।
पुनर्निवेश परिपथ Feedback Circuit
दोलित्र परिपथ के लिए पुनर्निवेश एक मौलिक आवश्यकता है । दोलनों को जारी रखने के लिए निर्गत ऊर्जा के एक अंश को प्रत्येक चक्र में निवेश परिपथ को वापिस किया जाना आवश्यक है । यदि पुनर्निवेश वोल्टेज का मान , आवश्यक मान से कम रह जाएगा , तो परिपथ लगातार दोलन नहीं कर पाएगा ।
टैंक परिपथ Tank Circuit
दोलित्र परिपथ द्वारा उत्पन्न दोलनों की आवृत्ति निर्धारित करने वाला परिपथ टैंक परिपथ कहलाता है । सामान्यत : यह एक श्रेणी अनुनाद परिपथ अथवा केलास युक्त अनुनाद परिपथ होता है ।
Oscillator कितने प्रकार के होते हैं
विभिन्न इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों में कई प्रकार के दोलित्र परिपथ प्रयोग किए जाते हैं जिनमें से प्रमुख दोलित्र परिपथ निम्नवत् हैं
1. हार्टले दोलित्र ,
2. कॉलपिट दोलित्र ,
3. फेज – शिफ्ट RC दोलित्र ,
4. वेन ब्रिज दोलित्र .
5. केलास दोलित्र
6. मल्टीवाइब्रेटर आदि ।
1. हार्टले दोलित्र Hartley Oscillator
प्रेरकीय पुनर्निवेश प्रयोग करके हार्टले नामक वैज्ञानिक ने दो प्रकार के दोलित्र परिपथ तैयार किए । ये दोनों प्रकार के परिपथ रेडियो संचार उपकरणों में प्रयोग किए गए और वर्तमान में भी इनका प्रयोग किया जाता है ।
श्रेणी पोषित परिपथ Series Fed Circuit
इस परिपथ में एक तीन सिरों वाला प्रेरित्र प्रयोग किया जाता है । प्रेरित्र के खण्ड Lɕ में से प्रवाहित होने वाली कलैक्टर धारा , प्रेरित्र के दूसरे अंश Lʙ में एक वोल्टेज प्रेरित करती है , इस वोल्टेज को संधारित्र C₁ के माध्यम से ट्रांसिस्टर के बेस को पुनर्निवेश वोल्टेज के रूप में प्रदान किया जाता है । दोलित्र का निर्गत संधारित्र C₃ के माध्यम से प्राप्त किया जाता है । परिपथ के अन्य पुजों का कार्य , CE प्रवर्द्धक परिपथ के पुों की भांति ही होता है ।
इस परिपथ में प्रेरित्र L₁ + L₂ तथा संधारित्र C₂ मिलकर टैंक परिपथ बनाते हैं । दोलित्र द्वारा उत्पन्न दोलनों की गणना आवृत्ति निम्नवत् सूत्र से की जाती है । यहाँ ,
fr = 1/2π√LC
fr = अनुनादीय आवृत्ति , हर्ट्ज में ,
L = प्रेरकत्व ( Le + Lg ) , हैनरी में तथा
C = थारकत्व ( C₂ ) , फैरड में ।
समानान्तर पोषित परिपथ Parallel Fed Circuit
स परिपथ में भी लोन सिरों वाला प्रेरित्र Lɕ प्रयोग किया जाता है । प्रेरित्र के खण्ड ! में सेकलेक्टर धारा Iɕ का केवल ए . जी . अंश ही प्रवाहित होता है , यहाँ संधारित्र C₄ लागि संधारित्र का कार्य करता है । कलैक्टर धारा , प्रेरित्र के खण्ड Lʙ , में एक सोल्टेज प्रेरित करती है जिसे संधारित्र C₁ के माध्यम से ट्रांसिस्टर के बेस को पुननिवेश वोल्टेज के रूप में प्रदान किया जाता है । दोलित्र का निर्गत , श्रेणी पोषित परिपथ के समान ही , संधारित्र C₃ के माध्यम से प्राप्त किया जाता है । परिपथ के अन्य पुर्जी का कार्य , CE प्रवर्द्धक परिपथ के पुर्जी की भाँति ही होता है । इस परिपथ को दोलन आवृत्ति का निर्धारण , श्रेणी पोषित परिपथ के लिए वचित्रर्णित सूत्र से ही किया जाता है अर्थात् /
fr = 1/2π√LC
2. कॉलपिट दोलित्र Colpitt’s Oscillator
हार्टले दोलित्र परिपथ में पुनर्निवेश वोल्टेज प्राय : ठीक 180 अंश फेज – अन्तर पर नहीं होता जिसके कारण उत्पन्न दोलन , ज्या – तरंग आकृति के नहीं होते । ज्या – तरंग आकृति ( sine – wave shape ) के दोलन पैदा करने के लिए कॉलपिट नामक वैज्ञानिक ने धारकीय पुनर्निवेश प्रयोग कर एक परिपथ विकसित किया जो शुद्ध ज्या – तरंग आकृति के दोलन पैदा करने में सक्षम है ।
कार्य प्रणाली Working Procedure
इस परिपथ में संधारित्र C₁, संधारित्र C₂ , में एक वोल्टेज विकसित करता है । इस वोल्टेज को संधारित्र C₄ के माध्यम से ट्रांसिस्टर के बेस को पुनर्निवेश वोल्टेज के रूप में प्रदान किया गया है । संधारित्र C₃ , टैंक परिपथ के लिए ब्लॉकिंग संधारित्र का कार्य करता है और कलैक्टर धारा डी.सी. अंश को उसमें जाने से रोकता है । कलैक्टर को एक RFC तथा एक प्रतिरोधक R₃ के द्वारा धन वोल्टेज प्रदान किया गया है । यहाँ RFC , कलैक्टर धारा के ए . सी . अंश को डी . सी . स्रोत पर पहुंचने से रोकती है । यह चोक , डिकपलिंग ( decoupling ) चोक कहलाती है । परिपथ के अन्य पुों का कार्य CE प्रवर्द्धक परिपथ के पुर्जी के समान होता है । इस परिपथ की दोलन आवृत्ति की गणना करने का सूत्र वही है जो कि हार्टले दोलित्र का है । यहाँ
fr = 1/2π√LC
fr = अनुनादीय आवृत्ति , हर्ट्ज में
L = प्रेरकत्व , हैनरी में
C = धारकत्व ( C₁ + C₂ ) , फैरड में ।
C = C₂C₁ ∕ C₁ + C₂ जबकि
अनुप्रयोग Application
यह परिपथ ए.एफ. ऑसिलेटर , संकेत जनित्र ( सिग्नल जनित्र ) आदि यन्त्रों में शुद्ध ज्या – तरंग आकृति के दोलन पैदा करने के लिए प्रयुक्त होता है ।
3. फेज – शिफ्ट RC दोलित्र Phase – shift RC Oscillator
सामान्य प्रकार के दोलित्र परिपथों में पुनर्निवेश वोल्टेज पैदा करने के लिए प्रेरित्र अथवा संधारित्र प्रयोग किया जाता है । फेज – शिफ्ट प्रकार के परिपथ में 180 अंश कला – अन्तर पर धनात्मक पुनर्निवेश वोल्टेज पैदा करने एवं आवृत्ति के मान का निर्धारण करने के लिए प्रतिरोधको एवं संधारित्रों का एक संजाल ( network ) प्रयोग किया जाता है इसीलिए यह परिपथ , फेज – शिफ्ट RC दोलित्र परिपथ कहलाता है । इस परिपथ को आई . सी . के रूप में बनाया जा सकता है ।
Working Procedure
इस दोलित्र परिपथ में संधारित्रों C₁,C₂ , व C₃ , तथा प्रतिरोधकों R₁ , R₂ , व R₃ , से निर्मित संजाल से धनात्मक पुनर्निवेश वोल्टेज , कलैक्टर से बेस को प्रदान किया गया है । शुद्ध संधारकीय परिपथ में वोल्टेज , धारा से 90 अंश पीछे रहता है परन्तु परिपथ के प्रतिरोध एवं अतिरिक्त संयोजित प्रतिरोध के कारण RC परिपथ में पिछड़ने का कोण लगभग 60 अंश रह जाता है । इसलिए वोल्टेज तथा धारा में 180 अंश का कला – अन्तर पैदा करने के लिए तीन RC युगल प्रयोग किए जाते हैं । दोलित्र परिपथ के निर्गत दोलन C₄ संधारित्र के माध्यम से प्राप्त किए जाते हैं । परिपथ के अन्य पुर्जी का कार्य , CE प्रवर्डक परिपथ के पुर्जी के समान होता है । इस परिपथ को दोलन आवृत्ति की गणना निम्नवत् सूत्र से की जाती है
fr = 1/2πRC
यहाँ Fr = दोलन आवृत्ति , हर्ट्ज में
R = कुल प्रतिरोध ( R₁ + R₂ + R₃ ) , ओह्म में
C = कुल धारकत्व कॅरड में ।
अनुप्रयोग Application
इस परिपथ का उपयोग CRO , कम्प्यूटर आदि में निश्चित मान की आवृत्ति ( 100 MHz तक ) पैदा करने के लिए किया जाता है । परिवर्ती आवृत्ति दोलित्र के रूप में इसका प्रयोग नहीं किया जा सकता ।
4.. वेन ब्रिज दोलित्र Wein Bridge Oscillator
यह एक ऐसा R – C दोलित्र परिपथ है जिसकी आवृत्ति को एक निश्चित सीमा के अन्दर परिवर्तित किया जा सकता है जबकि फेज – शिफ्ट R – C दोलित्र में आवृत्ति परिवर्तन की कोई व्यवस्था नहीं होती ।
कार्य प्रणाली Working Procedure
इस परिपथ में दो ट्रांसिस्टर प्रयोग किए जाते हैं । ट्रांसिस्टर Q₁ 180 अंश कला परिवर्तक का कार्य करता है तथा ट्रांसिस्टर Q₂, दोलित्र तथा प्रवर्द्धक का कार्य करता है । ब्रिज परिपथ की एक भुजा में R₁, तथा C₁ , को श्रेणी में तथा R₂C₂ को समानान्तर में संयोजित किया गया है । ब्रिज परिपथ की दूसरी मुजा में प्रतिरोधक R₃ तथा एक टग्स्टन लैम्प संयोजित किया गया है । यहाँ धनात्मक पुनर्निवेश वोल्टेज , संधारित्र C₃ के द्वारा ट्रांसिस्टर Q₂ , के कलैक्टर से प्राप्त किया गया है । R₁C₁ , एवं R₂C₂ , दोलन आवृत्ति का मान निर्धारित करते हैं ।
इस परिपथ में अल्प मात्रा में ऋणात्मक पुनर्निवेश वोल्टेज भी प्रयोग किया जाता है जो निर्गत दोलन आवृत्ति के मान को स्थिरता प्रदान करता है । यह ऋणात्मक पुनर्निवेश वोल्टेज प्रतिरोधकों R₆ , R₇ , से प्राप्त किया जाता है । टंग्स्टन लैम्प , तापमान सुग्राही युक्ति है , यह भी निर्गत दोलन आवृत्ति के मान को स्थिरता प्रदान करने में सहायक होती है । परिपथ के अन्य पुर्जी का कार्य , CE प्रवर्द्धक परिपथ के पुर्जी के समान होता है । इस परिपथ की दोलन आवृत्ति की गणना निम्नवत् सूत्र से की जाती है
fr = 1/2πRC
यहाँ fr = दोलन आवृत्ति हर्ट्ज में ,
R₁ = ब्रिज में श्रेणी प्रतिरोध , ओह्म में
R₂ = ब्रिज में समानान्तर प्रतिरोध , ओह्म में ,
C₁ = ब्रिज में श्रेणी धारकत्व , फैरड में तथा
C₂ = ब्रिज में समानान्तर धारकत्व , फैरड में
अनुप्रयोग Application
इस परिपथ का उपयोग 100 kHz तक की नियम आवृत्ति मान के दोलन पैदा करने के लिए किया जाता है । आवृत्ति मान को थोड़ा – बहुत परिवर्तित करने के लिए R₁ एवं R₂ के स्थान पर परिवर्ती प्रतिरोधक ( potentiometer ) प्रयोग किए जाते हैं ।
5. केलास दोलित्र Crystal Oscillator
क्वार्ट्ज व रोशेल – साल्ट ( quartz and rochelle – salt ) आदि के केलासों में आवृत्ति स्थिरता का गुण विद्यमान होता है । केलास की कम्पन आवृत्ति , उसकी मोटाई के व्युत्क्रमानुपाती होती है । क्वार्ट्ज केलास प्रयोग करके 50 kHz से 50 MHz आवृत्ति के दोलित्र बनाए जाते हैं जिनकी आवृत्ति स्थिरता ( frequency stability ) 0.02 % होती है ।
कार्य प्रणाली Working Procedure
इस परिपथ की दोलन आवृत्ति का निर्धारण , बेस परिपध में संयोजित केलास के द्वारा होता है । केलास प्रथम अर्धचक्र में यान्त्रिक ऊर्जा के रूप में वैद्युतिक ऊर्जा एकत्र कर लेता है और द्वितीय अर्द्धचक्र में उसे वैद्युतिक ऊर्जा के रूप में मुक्त कर परिपच को प्रदान कर देता है । बेस परिपथ व संयोजित RFC बैस बायस को स्थिरता प्रदान करने में सहायक होती है । इस परिपथ का निर्गत , ट्रांसफॉर्मर की कुण्डली L₂ से प्राप्त किया जाता है । जबकि कुण्डली L₃ , बेस परिपथ को पुनर्निवेश वोल्टेज प्रदान करता है । संधारित्र C₂, ब्लॉकिग संधारित्र का कार्य करता है । परिपथ के शेष पुढे का कार्य , CE प्रवर्द्धक परिपथ के पुजों के समान होता है ।
अनुप्रयोग Application
इस दोलित्र परिपथ का उपयोग रेडियो प्रेषित्रों ( radio transmitters ) में किया जाता है ।
6. मल्टीवाइब्रेटर Multivibrator
यह एक विशेष प्रकार का ऑसिलेटर परिपथ है जो मूल आवृत्ति के साथ ही अनेक हॉमोनिक आवृत्तियाँ भी पैदा करता है । इसीलिए इसका नाम मल्टीवाइब्रेटर अर्थात् ‘ बहु आवृत्तियाँ उत्पादक परिपथ ‘ रखा गया है । इस परिपथ की एक विशेषता यह है कि इसे बाहा सिंक . पल्स या ट्रिगर पल्या ( sync pulse or trigger pulse ) प्रदान करने पर यह पल्स की आवृत्ति पर दोलन करने लगता है और इस प्रकार यह पल्स आवृत्ति को शक्तिशाली बनाने में सहायक होता है ।
प्रकार Types
कार्य प्रचालन स्थिति के आधार पर मल्टीवाइब्रेटर परिपथ निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं
एस्टेबिल या फ्री – रनिंग मल्टीवाइब्रेटर Astable or Free – running Multivibrator
इस परिपथ में कोई पूर्व – निर्धारित प्रचालन स्थिति नहीं होती है । दो में से कोई भी एक ट्रांसिस्टर पहले प्रचालन प्रारम्भ कर सकता है । इसमें दो PNP ट्रांसिस्टर Q₁व Q₂प्रयोग किए गए हैं । एक ट्रांसिस्टर के कलेक्टर से दूसरे ट्रांसिस्टर के लिए बेस – वायस तैयार की जाती है । जब ट्रांसिस्टर Q₁, प्रचालन स्थिति में होता है , तो ट्रांसिस्टर Q₂ कट – ऑफ ‘ स्थिति में होता है । इसी प्रकार , ट्रांसिस्टर Q₂ प्रचालन स्थिति में होने पर ट्रांसिस्टर Q₁ कट – ऑफ ‘ स्थिति में आ जाता है । ट्रांसिस्टर Q₁व Q₂ की प्रचालन स्थितियां परिवर्तित होती रहती है और परिपथ दोलन करता रहता है ।
मोनोस्टेबिल मल्टीवाइब्रेटर Monostable Multivibrator
इसमें संधारित्र C₂ के स्थान पर एक प्रतिरोधक प्रयोग किया जाता है और ट्रांसिस्टर Q₁ के बेस पर एक संधारित्र C₃ के माध्यम से इनपुट सिंक पल्स प्रदान की जाती है । इसके साथ ही ट्रांसिस्टर Q₂ के कलैक्टर से एक संधारित्र ( जोड़ा गया संधारित्र ) के माध्यम से आउटपुट प्राप्त किया जाता है । सिंक , पल्स प्रदान करने पर ही परिपथ दोलन प्रारम्भ करता है और पहले ट्रांसिस्टर Q₁ प्रचालित होता है । क्योंकि इस परिपथ की एक प्रचालन स्थिति पूर्व निर्धारित है इसीलिए यह मोनोस्टेबिल वाइब्रेटर कहलाता है ।
बाइस्टेबिल मल्टीवाइब्रेटर Bistable Multivibrator
इस परिपथ में दो प्रचालन स्थितियाँ होती है इसीलिए यह बाइस्टेबिल परिपथ कहलाता है । इसमें पहले ट्रांसिस्टर Q₁ , अथवा Q₂ , को प्रचालित किया जा सकता है । सिंक पल्स प्रदान करने पर ट्रांसिस्टर्स की प्रचालन स्थितियों परिवर्तित होने लगती हैं ।
उपयोग
मल्टीवाइब्रेटर परिपथों का उपयोग कम्प्यूटर्स में किया जाता है ।
हमें उम्मीद है कि आपको मेरा article जरूर पसंद आया होगा! दोलित्र (Oscillator ) क्या है और कितने के होते हैं | What is Oscillator and how many are there in Hindi हमे कोशिश करता हूं कि रीडर को इस विषय के बारे में पूरी जानकारी मिल सके ताकि वह दूसरी साइड और इंटरनेट के दूसरे article पर जाने की कोशिश ही ना पड़े। एक ही जगह पूरी जानकारी मिल सके।
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