दर्द सभी को होता है
वासु और अक्षत दोनों अच्छे दोस्त थे । दोनों ही चौथी कक्षा में पढ़ते थे । वे प्रतिदिन अपनी साइकिल से स्कूल जाते थे । वे दोनों थे तो गहरे मित्र किंतु दोनों के स्वभाव में दिन – रात का अंतर था । वासु सहनशील और दयालु था , जबकि अक्षत को पशु – पक्षियों को तंग करने तथा पौधों या चीजों को तोड़ने फोड़ने में बड़ा मज़ा आता था । स्कूल से लौटते समय अक्षत प्राय : बेकसूर कुत्तों बिल्लियों को साइकिल से टक्कर मारते हुए चलता था । इससे कभी – कभी जानवरों को चोट भी लग जाती थी । वह ऐसा करते हुए स्वयं भी कई बार साइकिल से गिर चुका था । वासु ने उसे बहुत समझाया कि “ दोस्त , तुम इस तरह जीवों को सताया मत करो । ” उत्तर में अक्षत बोला , “ डरपोक कहीं का ! तू क्या जाने ऐसा करने में कितना आनंद आता है ? ” स्कूल से घर पहुँचकर शाम को दोनों मित्र पार्क में घूमने जाते । रास्ते में अक्षत सड़क के किनारे लगे पौधों को छड़ी से पीटता । इससे पौधों की नरम – नरम पत्तियाँ सड़क पर बिखर जातीं । यह देखकर वासु को वह उसे समझा – समझाकर हार चुका था । अक्षत बहुत दुख होता हमेशा वासु की सलाह को उसका दब्बूपन और कायरता कहकर खिल्ली उड़ा देता था । उसे तो पौधों और जीवों को तंग करने में आनंद आता था ।
एक दिन स्कूल से लौटते समय अक्षत अपनी आदत के अनुसार लहरा – लहराकर साइकिल चला रहा था । पीछे से एक स्कूटर वाला हॉर्न दिए जा रहा था । जैसे – तैसे साइड में जगह मिलने पर स्कूटर वाला सामने आया । उसने गुस्से में अक्षत को पकड़ा और दो – चार चाट लगा दिए । अक्षत क्रोध से तमतमाते हुए स्कूटर वाले को जाता देखता रहा । अचानक मुड़कर वासु की ओर देखते हुए बोला , “ तुम कैसे दोस्त हो ? तुमने मेरी मदद नहीं की । ” इस बार वासु बोला , “ पर अक्षत गलती तो तुम्हारी ही थी । ” भला अक्षत अपनी गलती मानने वाला कहाँ था । वह वासु से कुट्टी करके , गुस्से से भरा हुआ , अपनी साइकिल उठाकर तेजी से आगे बढ़ गया ।
रास्ते में अक्षत ने गुस्से से एक छोटे से पिल्ले पर साइकिल चढ़ा दी । पिल्ला चीखकर एक ओर जा गिरा । उसकी माँ गुर्राती हुई दौड़कर आई और अक्षत का पीछा करने लगी । अक्षत ने और तेज साइकिल दौड़ाई लेकिन कुतिया भी उसकी पैंट को पकड़ ही लिया । वह साइकिल समेत धड़ाम से सड़क पर गिर पड़ा । उसके हाथ पाँव में काफी चोटें लगीं । वह सड़क पर पड़ा कराह रहा था , तभी पीछे से वासु तेजी से साइकिल चलाता हुआ उसके पास पहुँच गया । उसने तुरंत अक्षत को उठाया और पास ही के नर्सिंग होम में ले गया । अक्षत की आँखों में आँसू थे । वासु ने अक्षत के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा , “ दोस्त पौधा हो या पिल्ला या मनुष्य , चोट लगने पर दर्द तो सभी को होता है । डॉक्टर साहब यह जो दर्द निवारक तेल तुम्हें दे रहे हैं , यह भी पौधों से ही बनता है । ”
शर्म से अपनी गर्दन झुकाए हुए अक्षत बोला , “ आज के बाद मैं पौधों या जीवों को कभी तंग नहीं करूँगा । “