गति किसे कहते हैं
किसी पिंड को विराम में तब समझा जाता है जब वह अपना स्थान किसी दूसरे स्थिर संकेत बिंदु से समय के साथ – साथ नहीं बदलता गति ( Motion ) अगर कोई वस्तु अपनी जगह , किसी स्थित संकेत बिंदु से समय के साथ – साथ बदलता है , तो वह पिंड गति में समझा जाता है । एक विमा में गति ( Motion in one dimention ) सीधी रेखा पर की गई गति एकविमीय गति कहलाती है । लंबी व सीधी सड़क पर गतिशील कार की गति इसका बेहतरीन उदाहरण है ।
गति का सूत्र (Formula of Motion)
गति का फार्मूला (सूत्र) :- विस्थापन / समय
गति कितने प्रकार की होती है
1. स्थानान्तरी गति ( Translatory motion ) किसे कहते हैं
स्थानान्तरी गति तब होती है जब किसी वस्तु की अलग – अलग स्थितियों ( Positions ) को जोड़ने वाली रेखा की दिशा नहीं बदलती । ऊँचाई से गिरता हुआ पत्थर , सीधी पटरियों पर दौड़ती ट्रेन आदि ।
2. चक्रीय गति ( Rotatory motion ) किसे कहते हैं
चक्रीय गति तब होती है जब किसी गतिशील वस्तु में प्रत्येक बिन्दु एक वृत्त पर घूमता है । बड़े – बड़े झूलों की गति , कुम्हार के चाक की गति आदि ।
3. आवर्त्त गति ( Periodic motion ) किसे कहते हैं
आवर्त्त गति तब होती है जब कोई गतिशील वस्तु एक नियमित समयांतराल बाद गति को दुहराता है ।” सरल लोलक की गति , आवर्त गति का उदाहरण है । कुछ गतियाँ निम्न प्रकार की भी हो सकती हैं
4. यादृच्छिक गति ( Random motion ) किसे कहते हैं
जब कोई वस्तु किसी टेढ़े – मेढ़े पथ से गमन करता है , तब कैसे गति को यादृच्छिक गति कहते हैं । उदाहरण – मक्खी की गति , फुटबॉल के मैदान में फुटबॉल खिलाड़ी की गति इत्यादि ।
5. वृत्तीय गति ( Circular motion ) किसे कहते हैं
जब कोई वस्तु वृत्ताकार पथ में गमन करता है , तो इसके गति को वृत्तीय गति कहते हैं । पृथ्वी की गति , नाभिक के चारों ओर इलेक्ट्रॉन की गति इत्यादि उपर्युक्त के उदाहरण हैं
6. दोलनी गति ( Oscillatory motion ) किसे कहते हैं
जब कोई वस्तु किसी निश्चित बिन्दु के आगे पीछे गति करता है , तो यह दोलनी गति कहलाता है । झूले की गति , पेण्डुलम की गति इत्यादि इसके उदाहरण हैं ।
7.एक समान त्वरित गति किसे कहते हैं
यदि कोई वस्तु एकसमान त्वरण से एक सरल रेखा में गति कर रही हो , तो उसका वेग – समय ग्राफ भी एक सरल रेखा होता है , जो समय – अक्ष के साथ कुछ निश्चित कोण बनाती है
8. वृत्तीय गति ( Circular Motion ) किसे कहते हैं
जब कोई वस्तु किसी वृत्ताकार मार्ग पर गति करती है , तो उसकी गति को वृत्तीय गति कहते हैं । Note : समरूप वृत्तीय गति एक त्वरित गति होती है , क्योंकि वेग की दिशा प्रत्येक बिन्दु पर बदल जाती है ।
9. प्रक्षेप्य गति ( Projectile Motion ) किसे कहते हैं
जब किसी पिंड को क्षैतिज गति से कुछ कोण बनाते हुए ऊर्ध्वाधर तल में प्रक्षेपित किया जाता है , तो उसका पथ परवलय होता है । पिंड की इस गति को ‘ प्रक्षेप्य गति ‘ कहते हैं । तथा इसके पथ को ‘ प्रक्षेप्य पथ ‘ कहते हैं । जैसे – तोप से छूटे गोले की गति , ईंधन समाप्त हो जाने के बाद रॉकेट की गति , छत पर खड़े होकर क्षैतिज दिशा में फेंके गये गेंद की गति आदि प्रक्षेप्त गति के उदाहरण हैं ।
गति के समीकरण
1.प्रथम समीकरण
v = u + at
जहां, u – प्रारम्भिक वेग
v – अंतिम वेग
a – त्वरण
t – समय
2.द्वितीय समीकरण
S = ut + at²/2
3.तृतीय समीकरण
v² = u²+ 2as
न्यूटन के गति सम्बन्धी नियम ( Newton’s Laws of Motion ) 1687 ई ० में सर आइजक न्यूटन की पुस्तक प्रिंसिपिया ( Principia ) का प्रकाशन हुआ । न्यूटन ने गति के नियमों ( Laws of motion ) की व्याख्या की । वैज्ञानिक न्यूटन के सम्मान में उपर्युक्त नियमों को न्यूटन के गति के नियम ( Newton’s laws of motion ) कहा गया ।
( 1 ) प्रथम नियम ( First law of motion )
गैलीलियो द्वारा प्राप्त किये गये निष्कर्षों को ही न्यूटन ने गति के प्रथम नियम के रूप में पेश किया था । अतः यदि कोई वस्तु स्थिर हो या एक समान गति से चल रही है तो वह उस समय तक स्थिर रहेगी अथवा एक समान गति से चलती रहेगी जब तक उस पर कोई असंतुलित अथवा बाह्य बल न लगे । उपर्युक्त नियम को गैलीलियो का जड़त्व का नियम ( Gallileos law of Inertia ) भी कहा जाता है ।
2 ) न्यूटन का द्वितीयक नियम ( Newton’s Second law of Motion ) :
किसी वस्तु के संवेग परिवर्तन की दर उस पर लगाये गये बल के समानुपाती होता है । बल एवं संवेग परिवर्तन की दिशा समरेखीय होती है
यदि आरोपित बल F , बल की दिशा में उत्पन्न त्वरण a एवं वस्तु का द्रव्यमान m हो ,
तो न्यूटन के गति के दूसरे नियम से
F = ma
यदि F = 0 , तो a = 0 ( m ≠ 0 ) अर्थात् यदि वस्तु पर बल न लगायी जाय , तो वस्तु में त्वरण भी उत्पन्न नहीं होगा । अतः त्वरण के शून्य होने का अर्थ है कि वस्तु या तो विरामावस्था में है या नियम वेग से गतिमान है ।
अत : न्यूटन का वेग विषयक द्वितीय नियम प्रथम नियम का ही एक रूप है । इस नियम से बल का व्यंजक प्राप्त होता है । बल का मात्रक Kg – m / s² या N ( न्यूटन ) होता है ।
( 3 ) न्यूटन का तृतीय नियम ( Newton’s third law of motion ) –
इस नियम के अनुसार प्रत्येक क्रिया के बराबर एवं विपरीत प्रतिक्रिया होती है । परिमाण में बराबर पर दिशा में एक – दूसरे के विपरीत एवं प्रतिक्रियात्मक बलों की क्रिया – रेखा एक ही होती है G यदि F1 क्रिया – बल तथा F2 प्रतिक्रिया – बल हो ,
तो F2 = – F1 इन दोनों बलों में से एक बल को क्रिया तथा दूसरे को प्रतिक्रिया बल कहते हैं । क्रिया तथा प्रतिक्रिया परिमाण में बराबर तथा दिशा में एक – दूसरे के विपरीत होती है । स्मरण रहे कि क्रिया और प्रतिक्रिया सदैव भिन्न पिंडों पर लगती है । इसलिए वे एक – दूसरे को निरस्त ( Cancel ) नहीं करती है ।