आमदनी से खर्च ज्यादा कैसे ?
नेपोलियन बोनापार्ट फ्रांस का शासक था । वह बड़ा परिश्रमी और उद्यमी था और अपने कर्मचारियों को भी वह उसी रूप में देखना चाहता था । अपने कर्मचारियों को वह वेतन भी अच्छा देता था । उसके कार्यालय में काम करने वाले एक अधिकारी को प्रति मास एक हजार फ्रैंक वेतन मिलता था । फिर भी उसका घर का व्यय इतना था कि उस पर दस हजार फ्रैंक ऋण चढ़ गया । इससे उसकी नींद उड़ गई । एक रात जब उसको नींद नहीं आ रही थी , तो वह उठ कर अपने कार्यालय चला गया और वहां बैठकर काम में डूब कर अपनी चिंता भुलाने लगा ।
रात्रि में किसी समय नेपोलियन की नींद खुली तो उसको कार्यालय में प्रकाश दिखाई दिया । वह उठ कर वहां आ गया , तो उसने देखा कि उसका एक अधिकारी वहां काम में व्यस्त है । नेपोलियन कार्यालय के उस कक्ष में गया और अधिकारी से पूछने लगा , आप इस समय काम क्यों कर रहे हैं ? दिन – भर परिश्रम करने के उपरान्त रात्रि को विश्राम करना शरीर के लिए आवश्यक होता है , किन्तु आप काम में व्यस्त हैं , क्यों ?
उसने कहा , ‘ श्रीमान् ! मुझ पर बहुत ऋण हो गया है । साहूकार लोग हर रोज प्रति मेरे दरवाजे पर खड़े होकर मुझे परेशान करते हैं । मैं बहुत चिंताग्रस्त हूं , इसी से मुझे आजकल नींद नहीं आती । इसीलिए यह अतिरिक्त कार्य कर रहा हूं , जिससे कि कुछ अतिरिक्त आय हो सके । ‘ ” कितना ऋण हो गया है ? ‘ दस हजार फ्रैंक । ‘
‘ मैं तुम्हें प्रति माह एक हजार का वेतन देता है , फिर भी तुम पर इतना अधिक ऋण हो गया है । इसका अभिप्राय है कि तुम्हारे जीवन में अनुशासन और विवेक नहीं है । तुम बेहिसाब व्यय करते हो , अवसर मिलने पर तुम सरकारी तंत्र का भी दुरुपयोग कर सकते हो । मैं ऐसे व्यक्ति को अपने कार्यालय में नहीं रख सकता । समझो , मैंने तुम्हें इसी समय से नौकरी कर से निकाल दिया है , अब तुम जा सकते हो । ‘
अधिकारी चुपचाप उठा और अपने घर के लिए चल दिया । पहले ही क्या वो कम परेशान था , जो अब यह नौकरी भी हाथ से निकल गई । चिंता का अब कोई ओर – छोर नहीं था । परिवार बड़ा था , अर्जन करने वाला वह अकेला ही था । इसी चिंता में उसे बाकी रात नींद नहीं आई । किसी प्रकार रात बीती और प्रातःकाल हुआ कि द्वार पर दस्तक हुई । उसने उठकर द्वार खोला तो देखा कि कार्यालय का सेवक हाथ में कोई लिफाफा पकड़े हुए है , जिसे उसकी ओर बढ़ा रहा है । उसने सोचा , ‘ नौकरी से हटा देने का लिखित आदेश होगा । ‘ उसने लिफाफा ले लिया और भीतर आकर लिफाफा खोला ।
लिफाफे में एक पत्र था और उसके साथ दास हजार तक के नोट को पत्र नेपालियन का था । उसने लिखा था , मैंने तुम्हारे विषय में रात – भर विचार किया और अंत में इस निर्णय पर पहुंचा कि तुम परिश्रमी हो , तुम्हें नौकरी से निकालना उचित नहीं लगा । जो एक बार मेरा आश्चित हो गया , उसके परिवार की चिंता करना भी मेरा ही कर्तव्य होना चाहिए । ”
‘ ये दस हजार फ्रैंक भेज रहा हूं । इससे आपना ऋण उतार कर तुम चिंतामुक्त हो जाओ और कल से उसी प्रकार निरन्तर अपने कार्य पर आ जाओ । नौकरी से बर्खास्तगी का आदेश में वापस लेता हूं । किन्तु भविष्य में अनुशासन , संयम और विवेक से जीवनयापन का यत्न करोगे , तो फिर यह कठिनाई नहीं आएगी ।
अधिकारी ने मन ही मन ईश्वर का धन्यवाद किया और नेपोलियन के प्रति भी कृतज्ञता व्यक्त की
चादर के बाहर पैर पसारने , कर्ज लेने का मतलब संयम खोना है । कर्ज यानी आमदनी की कैंची । कर्ज कभी – भी वेतन के बराबर माह लिया जाता । उससे कई गुना अधिक होता है । ऐसे संयम खोना , नींदें उड़ा देने को काफी है । हल क्या है ?