बल क्या है
बल वह भौतिक कारण है जो किसी वस्तु पर लगकर उस की विराम की अवस्था अथवा सरल रेखा में एक समान गति की अवस्था मे परिवर्तन लाता है अथवा लाने का प्रयत्न करता है बल (force) कहलाता है। बल लगाकर किसी वस्तु की आकृति ओर आकार में परिवर्तन लाया जा सकता है।
जैसे हवा से भरे बैलून को यदि हाथ से जोर से दबाया जाय तो उस की आकृति ओर आकार दोनो ही बदल जाते है।
बल का मात्रक और सूत्र
बल का मात्रक ‘ न्यूटन ‘ होता है । इसे N से सूचित किया जाता है।
- 1 न्यूटन बल वह बल है जो 1 किग्रा द्रव्यमान की किसी वस्तु में 1 मीटर/सेकंड² का त्वरण उत्पन्न कर देता है
- 1 न्यूटन ( N ) = 1 किग्रा – मीटर / सेकंड²
- 1 न्यूटन = 10⁵ डाइन
- C.GS. पद्धति में बल का मात्रक डाइन ( Dyne ) है
- Dyne – lgm – cm / sec²
- बल का एक अन्य मात्रक किलोग्राम भार है इसे गुरुत्वीय मात्रक भी कहते हैं
- 1 किलोग्राम भार उस बाल के बराबर होता है जो 1 किलोग्राम की वस्तु पर गुरुत्व के कारण लगता है
- गुरुत्वीय बल = द्रव्यमान × गुरुत्वीय त्वरण
- किसी वस्तु पर लगने वाले गुरुत्वीय बल को वस्तु का भार भी कहते हैं । इसे W से सूचित किया जाता है
- W = mg [ जहाँ g – 9.8 मीटर /सेकंड² होता है ।]
- 1 किग्रा भार = 1 किग्रा x9.8किग्रा – मीटर / सेकंड² = 9.8 किग्रा मीटर/ सेकंड² =9.8 न्यूटन होता है ।
- अत ; भार ( W : Weight ) एक बल है और उसका मात्रक न्यूटल है । द्रव्यमान m का मात्रक किया है । इसलिए सूत्र : g = w/m
- गुरुत्वीय त्वरण को न्यूटना किग्रा मात्रक में व्यक्त किया जाता m
बलों के प्रकार ( types of forces)
बल मुख्यतः दो रूपों में लगाए जाते हैं खींचने के रूप में अथवा धकेलने के रूप में ।बल को मुख्यतः चार भागों में विभाजित किया जाता है सभी प्रकार के बल इन के अंतर्गत आ जाते हैं ये बल निम्नलिखित है
1) गुरुत्वीय बल
2) विद्युत चुंबकीय बल
a) स्थिर विद्युत बल
b) चुंबकीय बल
3) दुर्बल बल
4) प्रबल बल
गुरुत्वीय बल ( gravitational force)
ब्रह्मांड के प्रत्येक कण एक-दूसरे कण को अपने द्रव्यमान के कारण आकर्षित करते हैं पृथ्वी भी अपने केंद्र की ओर प्रत्येक वस्तु को आकर्षित करती है पृथ्वी के इस प्रकार के आकर्षण बल को गुरुत्व बल (force of Gravity) कहते है ।यहां बल बहुत ही कमजोर होता है जिसके कारण हम इसका अनुभव नहीं कर पाते।यहां दो पिंडों के बीच लगता है
जैसे- सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी, आदि यहां बल इतना प्रभावी होता है कि पिंड अपने अक्ष पर घूर्णन करते रहते हैं तथा एक पिंड दूसरे पिंड साथ संतुलन बनाए रखते हैं
विद्युत चुंबकीय बल ( electromagnetic force)
यहाँ बल मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं
स्थिर विद्युत बल( electro-static force)
दो स्थिर बिंदु आवेशों के बीच लगने वाले बल को स्थिर विद्युत बल कहते हैं इस प्रकार के बल मे सजातीय आवेश एक दूसरे को विकसित करते हैं लेकिन विजातीय आवेश एक दूसरे को आकर्षित करते हैं।
चुंबकीय बल( magnetic force)
दो चुम्बकीय ध्रुवों के बीच लगने वाले बल को चुंबक की बल कहते हैं चुंबकीय बल, वह बल है जो विद्युत आवेशित कणों के बीच उनकी गति के कारण उत्पन्न होता है। 2 मैग्नेट के ध्रुवों के बीच चुंबकीय बल देखा जा सकता है। यह वस्तु के उन्मुखीकरण के आधार पर प्रकृति में आकर्षक या प्रतिकारक है। इसे चुंबकीय बल(इलेक्ट्रोस्टैटिक फोर्से) का उदाहरण कहा जा सकता है।
दुर्बल बल
प्रबल बल के परिणाम से दुर्बल बल का परिणाम लगभग 1/10¹³ गुना कम होता है जो बहुत ही कम है इसलिए से दुर्बल बल कहते हैं इसके द्वारा संचालित छयें प्रतिक्रियाएं बहुत धीमी गति से चलती है ऐसा समझा जाता है कि यह बल boson नामक कण के आदान-प्रदान द्वारा अपना प्रभाव दिखाते हैं यहां अत्यधिक लघु परास वाला बल है इसका प्रभाव इन कणों के अंदर तक ही सीमित रहता है
प्रबल बल
परमाणु के नाभिक में प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन एक दूसरे के इतने करीब रहते हुए भी प्रोटॉन के बीच प्रतिकर्षण नहीं होता इसका कारण यह है कि इनके पीछे शक्तिशाली आकर्षण बल कार्य करता है जिसे प्रबल बल कहते हैं यहां बल कण के आवेश पर निर्भर नहीं करता सभी meson एवं baryon मूल कणों के बीच प्रबल बल ही कार्य करता है
सुपर बल (Super force)
यह माना जाता है कि विश्व की उत्पत्ति के समय उपर्युक्त चारों प्रकार के मूल बल एकीकृत (Unified) रूप में थे अर्थात् उस समय केवल एक ही बल था, जिसे सुपर बल कहते है ।
बल की प्रबलता के आधार पर बल
संतुलित बल (Balanced forces)
जब किसी वस्तु पर एक से अधिक बल एक साथ कार्य हों तथा इन सभी बलों का परिणामी शून्य हो, तो वह वस्तु संतुलित अवस्था में होगी।इस स्थिति में वस्तु पर लगने वाले सभी बल संतुलित बल कहलाते हैं।
असंतुलित बल (Unbalanced force)
जब दो या दो से अधिक बल किसी वस्तु पर लगाते हैं, तो वस्तु किसी एक बल की दिशा में गति करने लगती है। ऐसे बल को असंतुलित बल कहते हैं।
अभिकेन्द्रीय बल (Centripetal force)
जब कोई वस्तु किसी वृत्ताकार पथ पर चलती है, तो उसपर एक बल वृत्त के केन्द्र की ओर कार्य करता है।इस बल को अभिकेन्द्रीय बल कहते हैं।इस बल के बिना वस्तु वृत्ताकार पथ पर नहीं चल सकती है।
अभिकेद्रीय बल का परिणाम तो नियत रहता है लेकिन बल की दिशा हमेशा केंद्र की ओर होने के कारण लगातार बदलती रहती हैै
अपकेन्द्रीय बल (Centrifugal Force)
जब कोई पिंड किसी वृत्तीय पथ पर चलता है, तो उसपर पथ के केन्द्र से बाहर की ओर एक बल कार्य करता है, जिसे अपकेन्द्रीय बल कहते है यह बल अभिकेन्द्रीय बल के परिमाण के बराबर, लेकिन दिशा में विपरीत होता है।
अपकेन्द्रीय (Centrifuge)-
यह एक ऐसा यंत्र है, जिससे किसी द्रव में उपस्थिति विभिन्न द्रव्यमान के कणों को पृथक् किया जाता है।
इस प्रकार के यंत्र के उदाहरण हैं-क्रीम निकालने की मशीन (Cream Separator), अपकेन्द्रीय पंप (Centrifugal Pump) तथा अपकेन्द्रीय शोषक (Centrifugal Drier) वाशिंग मशीन (Washing Maschine)आदि।
मौत का कुआँ
मौत का कुआँ अभिकेन्द्रीय बल तथा अपकेन्द्रीय बल का एक अच्छा उदाहरण है।
सर्कस में ‘मौत का कुआँ’ के खेल में मोटर साइकिल सवार पर दीवार द्वारा अभिकेन्द्रीय बल अन्दर की ओर लगाया जाता है जबकि इसका प्रतिक्रिया बल (अपकेन्द्रीय बल) सवार द्वारा दीवार पर बाहर की ओर लगाया जाता है।
न्यूटन का तृतीय नियम (Newton’s third law of motion)-
इस नियम के अनुसार प्रत्येक क्रिया के बराबर एवं विपरीत प्रतिक्रिया होती है। परिमाण में बराबर पर दिशा में एक-दूसरे के विपरीत एवं प्रतिक्रियात्मक बलों की क्रिया-रेखा एक ही होती है।यदि F क्रिया-बल तथा F2 प्रतिक्रिया-बल हो, तो F2 = – F1
इन दोनों बलों में से एक बल को क्रिया तथा दूसरे को प्रतिक्रिया बल कहते हैं क्रिया तथा प्रतिक्रिया परिमाण में बराबर तथा दिशा में एक-दूसरे के विपरीत होती है। स्मरण रहे की क्रिया और प्रतिक्रिया सदैव इन विंडो पर लगती है इसलिए वह एक दूसरे को निरस्त नहीं करती