कृष्ण और सुदामा की चने वाली कहानी
वैसे तो श्री कृष्ण और उनसे जुड़ी हुई अनेक कहानियां प्रचलित है श्री कृष्ण भगवान का यह अवतार लीला अवतार के नाम से जाना जाता है इस अवतार में भगवान ने कई लीलाएं की और सामान्य जनमानस को जीवन उपयोगी विभिन्न शिक्षाएं प्रदान की है यह वही कृष्ण है जो गोपी के घर माखन चोरी की लीला करते हैं तो कहीं कालिया नाग का मर्दन कर उसके अभिमान को हरते हैं कभी गोवर्धन गिरधारी होते हैं तो कभी रासबिहारी होते हैं कैसे से कृष्ण को सभी सामान्य जनमानस और रसिक जनों ने बारंबार महिमा का वर्णन करते हुए महिमामंडन किया है वैसे तो भगवान की कई भक्त हुए परंतु यह बूढ़ी औरत जो उज्जैन के निकट 1 ग्राम में रहती थी बहुत बड़ी नारायण भक्त थी उसके घर में गरीबी थी सो वह भिक्षा मांग कर अपना जीवन यापन करती थी
एक समय की बात है वह बूढ़ी औरत अपना झोला लेकर भिक्षा मांगने के लिए निकली उस दिन उसे भिक्षा में कुछ भी नहीं मिला यह क्रम 5 दिनों तक चलता रहा 5 दिन तक उस बूढ़ी औरत को कोई भी भिक्षा नहीं मिली वह अपने घर आकर नारायण का स्मरण करती और पानी पीकर सो जाती छठवें दिन वह भिक्षा मांगने गई तो उसे उस दिन भिक्षा में कुछ चने मिले प्रसन्न मन से वह बूढ़ी औरत ने चने को लेकर अपने घर को आई उसने सोचा कि सुबह स्नान ध्यान करके नारायण को भोग लगाने के बाद यह चने खाऊंगी ऐसा विचार करके बुढ़िया ने एक कपड़े की पोटली में उन चलो को रखकर अपने सिरहाने रख दिए और जल पीकर सो गई
उसी रात को कुछ चोर बुढ़िया के झोपड़े में आए उनको उस झोपड़े में चोरी के लिए कोई भी वस्तु नहीं मिली तो उन्होंने वह चने की पोटली चुरा ली आहट पाकर बुढ़िया की नींद खुली उसने शोर मचाया पकड़ो पकड़ो यह मेरे चने चुरा ले जा रहे हैं ऐसा स्वर सुनकर सभी गांव वाले जाग गए और चोरों का पीछा करने लगे गांव वालों को अपने पीछे आता देख चोरों ने उस चने की पोटली को सांदीपनि मुनि के आश्रम में रखकर वहीं पर छुप गए बुढ़िया ने उन चोरों को श्राप दिया कि जो कोई मेरे यहां चने खाए वह उम्र भर के लिए दरिद्र हो जाएगा
सुबह हुई तो सांदीपनि मुनि की पत्नी अपने आश्रम की सफाई कर रही थी तो उसे यह चने की पोटली मिली उसने यह पोटली संभाल कर रख दी इधर श्री कृष्ण और सुदामा की मित्रता हो चुकी थी वह रोज वन में जाकर जलाने के लिए लकड़ियां लाते थे आज गुरु मां ने चने की पोटली दोनों को देते हुए कहा वन में तुम लोगों को भूख लगे तो यह चने खा लेना ऐसा कहकर गुरु माँ ने वह चने की पोटली सुदामा के हाथ में दे दी सुदामा ब्रह्मज्ञानी थे उनका स्पर्श होते ही वह सब बातें समझ गए
दोनों मित्र कृष्ण और सुदामा अपने नित्य कर्म के अनुसार वन में लकड़ी लाने के लिए चल दिए लकड़ी लाने में बहुत समय बीत गया वर्षा होने लगी कृष्ण जी पेड़ पर चढ़े हुए थे नीचे सुदामा खड़े थे क्योंकि सुदामा सब बात जानते थे उन्होंने उस बुढ़िया के श्राप के बारे में विचार किया और सोचा कि यदि श्री कृष्ण ने यह चने खा लिए तो सारी सृष्टि ही दरिद्र हो जाएगी ऐसा विचार करके उन्होंने सोचा कि मैं ही अकेला क्यों ना दरिद्र हो जाऊं जिससे मेरे प्रभु श्री कृष्ण और सारी सृष्टि दरिद्र होने से बच जाएगी सुदामा के मन में ऐसा विचार चल रहा होता है
श्री कृष्ण वृक्ष के ऊपर से सारी बातों को देख रहे थे धीरे-धीरे वर्षा और तेज होने लगी सुदामा ने चुपके से जाने निकालकर खाना प्रारंभ कर दिया कृष्ण ने जैसे ही कट कट की आवाज सुनी उन्होंने पूछा सुदामा क्या हो रहा है सुदामा ने झूठ बोलते हुए कहा कुछ नहीं कृष्ण ठंड के कारण मेरे दांत किट किट कार रहे हैं सुदामा ने धीरे-धीरे सारे चने खा लिए कृष्ण जी वृक्ष के ऊपर से सहारा दृश्य देखते रहे
उस बूढ़ी औरत के श्राप से सुदामा जी चने खाने के कारण जीवन भर दरिद्र रहे और कृष्ण जी द्वारिका में अपने राज्य में राजसी वैभव के साथ रहे यह और बात है की कृष्ण ने सुदामा से यह वादा किया था कि जब सुदामा तुम मेरे द्वार पर आओगे तो तुम्हें जो चाहिए होगा वह मैं अवश्य दूंगा सुदामा जी द्वारिका गए भी थे संतु संकोच बस उन्होंने कृष्ण से कुछ नहीं मांगा परंतु कृष्ण तो अंतर्यामी थे उन्होंने अपनी योग माया द्वारा वर्तमान पोरबंदर के निकट सुदामापुरी नाम का एक भव्य नगर बसाया जिसमें सुदामा के लिए एक भव्य महल नौकर चाकर दास दासिया और सारे सुख साधन दे दिए ऐसे यह चने जिसके कारण सुदामा जी अपने जीवन के अधिकतर समय में गरीबीके साथ रहे और अंत में कृष्ण की कृपा द्वारा सारे साधनों से युक्त राजश्री वैभव को प्राप्त किया
ऐसे यहां उस बूढ़ी औरत का श्राप फलित हुआ और सुदामा जी पर श्री कृष्ण की कृपा हुई इतना सब कुछ पाकर भी सुदामा जी नित्य कृष्ण भक्ति में लीन रहते और कम से कम संसाधनों में अपना गुजर-बसर करते थे