ऊर्जा क्या है
किसी वस्तु के कार्य करने की कुल क्षमता को ऊर्जा कहते हैं यह एक अदिश राशि है, ऊर्जा ना तो नष्ट की जा सकती है ना ही उत्पन्न की जा सकती है ऊर्जा केवल एक रूप से परिवर्तित की जा सकती है जब भी ऊर्जा किसी रूप में लुप्त होती है तब ठीक होती ही ऊर्जा अन्य रूपों में प्रकट होते हैं
ऊर्जा के मात्रक क्या है
इसका SI मात्रक जूल होता है इसके अतिरिक्त इसका मात्रक इलेक्ट्रॉन वोल्ट (ev) होता है।1 ev= इलेक्ट्रॉन द्वारा 1 वोल्ट के विभवान्तर पर त्वरित करने से प्राप्त ऊर्जा है।
1ev-1.6×1/10¹⁹
1kev = 1.6×1/10¹⁶J
1Mev = 1.6×1/10¹³1
(CGS पद्धति में ऊर्जा का मात्रक अर्ग होता है।)
विद्युत ऊर्जा की माप के लिए प्रयुक्त होने वाला मात्रक निम्न है-वाट-घंटा तथा किलोवाट-घंटा (kWh),.
जहाँ [1 Wh=3.6 K]
ऊष्मा ऊर्जा या खाद्य पदार्थों में उपस्थित ऊर्जा के लिए प्रयुक्त होने वाले मात्रक कैलोरी तथा किलो कैलोरी हैं।
1J = 0.24 कैलोरी; 1 कैलोरी = 4.186 जूल
परमाणु के कणों की ऊर्जा की माप के लिए प्रयुक्त होने वाला उपकरण इलेक्ट्रॉन-वोल्ट (ev) है।
ऊर्जा का विमीय सूत्र क्या है ?
अतः ऊर्जा का विमीय सूत्र = { ML²/T²} है।
कैलोरी (Calorie)
एक ग्राम पानी का ताप 1°C से बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊष्मा के मात्रक को 1 कैलोरी कहते हैं।
इलेक्ट्रॉन वोल्ट (Electron Volt)
किसी इलेक्ट्रॉन को 1 वोल्ट विभवान्तर वाले बिंदुओं के बीच त्वरित करने के लिए आवश्यक ऊर्जा की मात्रा 1 इलेक्ट्रॉन-वोल्ट ऊर्जा कहलाता है।
ऊर्जा र्के विभिन्न रूप के बारे में आप क्या जानते हैं
(i) यांत्रिक ऊर्जा (Mechanical Energy)
(ii) प्रकाश ऊर्जा (Light Energy)
(iii) ऊष्मा ऊर्जा (Heat Energy)
(iv) ध्वनि ऊर्जा (Sound Energy)
(७) चुम्बकीय ऊर्जा (magnetic Energy)
(vi) नाभिकीय ऊर्जा (Nuclear Energy)
(vii) सौर ऊर्जा (Solar Energy)
(viii) पवन ऊर्जा (Wind Energy)
(ix) विद्युत ऊर्जा (Electrical Energy)
(x) रसायनिक ऊर्जा(Chemical Energy)
ऊर्जा कितने प्रकार की होती है
यह दो प्रकार के होते हैं-
(1) गतिज ऊर्जा
(2) स्थितिज ऊर्जा।
गतिज ऊर्जा किसे कहते हैं
किसी वस्तु में उसकी गति के कारण उत्पन्न ऊर्जा को गतिज ऊर्जा कहते हैं। इसकी माप कार्य के उस परिमाण से की जाती है जो किसी गतिमान अवस्था से विराम अवस्था में आने में वस्तु को करना पड़ता है।
यदि पिण्ड का द्रव्यमान m एवं इसका वेग v है तो
गतिज ऊर्जा
गतिज ऊर्जा=mv²/2
स्थितिज ऊर्जा किसे कहते हैं
जब किसी वस्तु में विशेष अवस्था (state) या स्थिति के कारण कार्य करने की क्षमता आ जाती है तो उसे स्थितिज ऊर्जा कहते हैं जैसे बाँध बनाकर इकट्ठा किए गए पानी की ऊर्जा, घड़ी की चाभी में संचित ऊर्जा-यह सब स्थितिज ऊर्जा का उदाहरण है।
गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा के लिए पृथ्वी की स्थिति को मानक स्थिति माना गया है।अतः पृथ्वी तल पर वस्तु की गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा शून्य मानी गई है।
यदि m द्रव्यमान की कोई वस्तु पृथ्वी तल से h ऊँचाई पर है तो उसमें
गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा (P.E.) = mgh (h<R, R = पृथ्वी की त्रिज्या)
(A) प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा (Elastic Potential Energy)
वस्तु की आकृति में परिवर्तन के कारण वस्तु की ऊर्जा को प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा कहते हैं।
(B) गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा (Gravitational Potential Energy)
किसी वस्तु को जमीन की स्थितिज सतह से ऊपर उठाने पर वस्तु में संचित ऊर्जा को गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा कहते हैं।
* गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा = वस्तु का द्रव्यमान X गुरुत्वीय त्वरणX जमीन से ऊचाई
अत: PE = mgh
ऊर्जा रूपान्तरित करने वाले कुछ उदाहरण
1. माइक्रोफोन-ध्वनि ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में।
2.ट्यूबलाइट-विद्युत ऊर्जा को प्रकाश ऊर्जा में।
3. सोलर सेल-सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में ।
4. मोमबत्ती-रासायनिक ऊर्जा को प्रकाश तथा ऊष्मा ऊर्जा में।
5. डायनेमो-यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में ।
6. सितार-यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में।
7. विद्युत मोटर-विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में।
8. विद्युत सेल-रासायनिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में।
9. विद्युत बल्ब-विद्युत ऊर्जा को प्रकाश एवं ऊष्मा ऊर्जा में ।
10. ईंजन-ऊष्मा ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में।
11. प्रकाश-विद्युत सेल-प्रकाश ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में ।
ऊर्जा का संरक्षण
जब स्थितिज ऊर्जा और गतिज ऊर्जा का आपस में रूपान्तरण होता है, तो रूपान्तरण के दौरान उन दोनों ऊर्जाओं का योग हमेशा नियत होता है, बशर्ते कि घर्षण बल शून्य हो।
ऊर्जा का अपव्यय (Dissipation of Energy)
प्रत्येक ऊर्जा-रूपांतरण में ऊर्जा का कुछ-न-कुछ अंश अनुपयोगी ऊष्मा-ऊर्जा में परिणत हो जाता है। इस प्रकार का अनुपयोगी रूप से रूपांतरण को ऊर्जा का क्षय या ऊर्जा का अपव्यय कहते हैं।
कार्य-प्रमेय (Work-Energy Theorem)
बल द्वारा किया गया कार्य वस्तु की गतिज ऊर्जा में परिवर्तन के बराबर होता है
किया गया कार्य = अंतिम गतिज ऊर्जा – प्रारंभिक गतिज ऊर्जा
वस्तु पर किया गया कार्य = गतिज ऊर्जा में वृद्धि
जब कोई चालक किसी ऊँचाई पर अपना वाहन चढ़ाता है, तो उसकी चाल को बढ़ा देता है, क्यों ?
जब चालक वाहन को ऊंचाई पर चढ़ाता है, तो वाहन की स्थितिज ऊर्जा उसकी गतिज ऊर्जा की कीमत पर बढ़ती है।
अतः, स्थितिज ऊर्जा में वृद्धि के कारण गतिज ऊर्जा की कमी को पूरा करने के लिए चालक अपनी वाहन की गति को बढ़ा देता है।
सौर ऊर्जा (Solar Energy)-
1. पृथ्वी पर ऊर्जा का विशाल स्रोत सूर्य है।
2. संसार के सभी देशों द्वारा एक वर्ष में जितनी ऊर्जा की खपत होती है, उसकी लगभग 50,000 गुना ऊर्जा सूर्य की किरणें पृथ्वीतल पर प्रतिदिन प्रदान करती है।
3. सूर्य का निर्माण लगभग 70% द्रव्यमान हाइड्रोजन से, 28% हीलियम से तथा 2% अन्य भारी तत्वों से हुआ है।
4. सूर्य के क्रोड़ (Core) का ताप 1.5×10⁷K (केल्विन) तथा दाब 2×10¹⁶ न्यूटन प्रति वर्गमीटर है।
5. 1.5×10⁷k ताप पर कोई भी पदार्थ ठोस और द्रव अवस्था में नहीं रह सकता।
6. अतः सूर्य गैसीय पदार्थ का बना है।
7. सूर्य के केन्द्र में अति उच्च ताप और दाब के कारण हाइड्रोजन नाभिकीय संलयन (Fusion) अभिक्रिया करके हीलियम नाभिक बनाते हैं, जिससे अत्यधिक ऊर्जा उत्पन्न होती है।
8. सूर्य से प्रति सेकंड 3.86×10²⁶ जूल ऊर्जा निकलती है।
9. यह ऊर्जा विद्युत-चुम्बकीय तरंगों तथा आवेशित कणों के रूप में निकलती है।
10. पृथ्वी पर सूर्य की ऊर्जा मुख्यतः विद्युत-चुम्बकीय तरंगों के रूप में पहुँचती है।
11. इसे ही सौर-ऊर्जा या सौर-विकिरण कहते हैं।
12. विकिरण के गुण उसके अंदर उपस्थित तरंगों के तरंगदैर्ध्य पर निर्भर करते हैं।
13. कुछ तरंगे; जैसे-अवरक्त विकिरण के द्वारा हमें ऊष्मा का अनुभव होता है तथा कुछ तरंगें हमें वस्तुओं को देखने में मदद करती है, जिन्हें दृश्य प्रकाश या विकिरण कहते हैं।
सौर ऊर्जा का व्यय-
1. वायुमंडल के ऊपरी भाग में प्रति वर्गमीटर पर प्रति सेकंड लगभग 1370 जूल सौर ऊर्जा आपतित होती है।
2. इस ऊर्जा के कुछ भाग अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाते हैं तथा कुछ को वायुमंडल में उपस्थित जलवाष्प, ओजोन, धूलकण तथा CO2 अवशोषित कर लेते हैं।
3. अंत में केवल 47% भाग (लगभग 640 जूल) पृथ्वीतल पर प्रति वर्गमीटर प्रति सेकंड पहुँचता है।
सौर-सेल (Solar Cell)
1. सौर-सेल वह युक्ति है, जो सौर-प्रकाश को सीधे ही विद्युत्-ऊर्जा में परिवर्तित कर देती है।
2. सबसे पहले सौर-सेल सन् 1954 ई० में बनाया गया था।
3. यह सेल लगभग 1.0% सौर-ऊर्जा को विद्युत्-ऊर्जा में परिवर्तित कर सकता था।
4. आजकल सौर-सेल प्रायः सिलिकॉन तथा गैलियम-जैसे अर्द्धचालकों से बनाए जाते हैं।
5. इनकी दक्षता लगभग 10-18% होती है।
6. अर्द्धचालक में यदि कोई अशुद्धि (Impurity) मिला दी जाए, तो उसकी विद्युत्-चालकता बहुत अधिक बढ़ जाती है।
7. प्रकाश पड़ने पर भी अर्द्धचालकों की चालकता बढ़ती है।
8. सौर-सेल का प्रयोग केवल छोटे-छोटे कार्यों; जैसे-कैलकुलेटर आदि को चलाने में किया जाता है।
9. अधिक बड़े कार्यों के लिए सेलों के संयोजनों का उपयोग किया जाता है, जिसे सौर-सेल पैनल कहते हैं।
10. इसमें अनेक सौर-सेल विशेष क्रम में संयोजित रहते हैं, जिनसे विभिन्न कार्यों के लिए पर्याप्त परिमाण में विद्युत प्राप्त की जाती है ।
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